सोमवार, 28 जनवरी 2013

खड़ा शीश पर नौटंकी का कालू


खड़ा शीश पर नौटंकी का कालू
श्यामनारायण मिश्र
कोई दिन
हो गया कलेऊ
कोई दिन ब्यालू
बूढ़ी चाची
कहती बेटे
सबके राम दयालू
 
सोच-सोचकर
हुआ अजीरन
मन है खट्टा-खट्टा
अभी रसोई में
बाक़ी है
चूल्हा और सिलबट्टा
कल के लिये सुरक्षित
सींके पर
रक्खे दो आलू
 
धनिया के
आलिंगन का सुख
दुख ने बढ़ा दिया है
यौवन जैसा
ज्वार देह में
ज्वर ने चढ़ा दिया है
उसने भी
कर दिया विदा
अपना स्वभाव झगड़ालू
 
रात बिताई
अंधकार में
इच्छायें खेते
थिगड़े कंबल
में अपनी ही
गर्मी सेते-सेते
खड़ा शीश पर
हरिश्चन्द की
नौटंकी का कालू
***

सोमवार, 21 जनवरी 2013

किस्मत टूटी नाव चढ़ी है


किस्मत  टूटी नाव चढ़ी है

श्यामनारायण मिश्र
मन में चलती बुन उधेड़ है
रामरती  का पति अधेड़ है

घर में दो दो समवयस्क हैं कहने को बेटे
मर्द सुनाता दिले शेर के किस्से लेटे लेटे
ठिठुरा कुल परिवार पड़ा है
सर  पर जाड़ा प्रेत खड़ा है
नंगे  सभी  ऊन  देने को
घर  में केवल एक भेड़ है

देहरी  से  पनघट  तक  चलते  चर्चे ही चर्चे
बनिया का लड़का आंगन में फेंक गया है पर्चे
आने को खलिहान जुआर है
खाते  में  लिक्खा उधार है
सूद चुकाने को  संध्या का
अंधकार और बड़ी  मेड़ है

मन  में  सपनों  की  किताब का कोरा है पन्ना
जिसमें ताजमहल लिखने की धूमिल हुई तमन्ना
किस्मत  टूटी नाव चढ़ी है
खेने को कुल  उमर पड़ी है
व्यथा सुनाने को आंगन में
तुलसी का बस एक पेड़  है

सोमवार, 14 जनवरी 2013

कस्तूरी मृग पर है दृष्टि भयानक बाघ की

कस्तूरी मृग पर है दृष्टि भयानक बाघ की

श्यामनारायण मिश्र

फागुन

उनके नाम लिखे हैं

अपने हिस्से में हैं रातें माघ की

 

उमर पराई हुई

बंजरों से लड़ते-लड़ते

उनके खेत मेड़ तक जिनके

पांव नहीं पड़ते

झुठलाने को

तुला हुआ है

समय कहावत घाघ की

 

औरों की डोली

देने को कंधे हैं अपने

उपवासों के भोगे अनुभव

पारण के सपने

अपना ही

मन रहे रिझाते

दुहराते धुन फाग की

 

तोते हो गये अपने ओंठ

बोल औरों के कहते

हम कुम्हार के चाक हो गये

चक्कर सहते-सहते

अपने

कस्तूरी मृग पर है

दृष्टि भयानक बाघ की

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

नया जब साल आया है…




नया जब  साल आया है

-- करण समस्तीपुरी


जश्न हो, खूब मस्ती हो।
हर महंगी चीज सस्ती हो।
ये भ्रष्टाचार मिट जाए
भले सरकार मिट जाए।
नया जब  साल आया है।
तो दिन खुशहाल जाए।
हो टू जी, सी डब्ल्यू जी।
एक जन लोकपाल जाए।
नया जब  साल आया है।
तो दिन खुशहाल जाए।


शतकों पे शतक जल्दी,
सचिन के बल्ले से निकले।
रनों से हो, विकेट से हो,
या अंपायर की गलती से।
हारें मैच कोई हम,
कोई फ़ार्मेट, कोई दल हो।
विजय धोनी के हाथों में,
मगर हर हाल जाए।
नया जब  साल आया है।
तो दिन खुशहाल जाए।

भले दुल्हन बने कोई,
हो शादी सल्लू मियाँ की।
अनुपम खेर के सर पे,
भी अब कुछ बाल जाए!
न कोई दामिनी हो,
 ना घटे दिल्ली की दुर्घटना,
हवश चढ़ने से पहले उसका,
 अंतिम काल आ जाए,
बहन-बेटी की अस्मत के,
लूटेरे छूट जाएँ गर,
जले दुनियाँ, गिरे बिजली,
 या फिर भूचाल आ जाए।



रहे कायम अमीरों की अमीरी,
मेरे मौला!
मगर मुफ़लिस की थालीं में भी,
रोटी दाल जाए।
तरसता है जो सदियों से करण,
इक-पैसे की खातिर,
उसके घरों में स्वीस बैंक का,
 माल जाए।
नया जब  साल आया है,
तो दिन खुशहाल जाए



नव वर्ष 2013 आप सबों के लिये अतिशय मंगलमय हो!