काम करती मां
--- --- मनोज कुमार
जब मां आटा गूंथती थी
तो सिर्फ अपने लिए ही नहीं गूंथती थी,
सबके लिए गूंथती थी,
झींगुर दास के लिए भी !
मां जब झाड़ू देती थी
तो सिर्फ घर आंगन ही नहीं बुहारती थी
ओसारा, दालान और
झींगुर दास का प्रवास क्षेत्र भी बुहार देती थी।
मां जब बर्तन धोती थी
तो सिर्फ अपना जूठन ही नहीं धोती थी
घर के सभी लोगों के जूठे बर्तन धोती थी
झींगुर दास के चाय पिए कप को भी !
यह सब करके मां का चेहरा
खिल उठता था फूल की तरह
जिसकी सुगंध पर सबका हक़ था
झींगुर दास का भी !
अब बहू आ गई है
बहू ने अपने घर में बाई को रख लिया है
वह झाड़ू, पोछा, चौका-बर्तन कर देती है
पर मां अपना घर आज भी बुहार रही है।
*** ***
सच कहा आपने । सब बदल जाते हैं । नही बदलती है तो सिर्फ माँ । माँ का स्नेह । बहुत ही सच्ची कविता ।
जवाब देंहटाएंघर घर की कहानी , मार्मिक ……
जवाब देंहटाएंनतमस्तक!!
जवाब देंहटाएंवास्तविकता से परिचय करा रही पंक्तियाँ......अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (12-05-2014) को ""पोस्टों के लिंक और टीका" (चर्चा मंच 1610) पर भी है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
माँ ,तुम्हें कब मिलेगा आराम ?
जवाब देंहटाएंमाँ तुझे प्रणाम
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जवाब देंहटाएंमातृदिवस पर बहुत सुंदर रचना ।
RECENT POST आम बस तुम आम हो
मार्मिक ... ऐसा कितना कुछ है जो आज भी माँ कर रही है ... शायद जब बहू माँ बने तो वो भी शुरू करे ... पर उस माँ के लिए क्यों नहीं ...?
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंआज के सत्य को परिभाषित करती सटीक रचना
जवाब देंहटाएंहर पीढ़ी पिछली से बदल रही है। बहू सास जैसी नहीं, तो आगे की पीढ़ी की बच्ची उससे भी आगे। परिवर्तन संसार का नियम है... हालांकि अच्छी आदतें पिछली पीढ़ी को विरासत में अगली पीढी तक पहुंचानी चाहिए। परंपराएं घर से ही शुरू होती हैं।
जवाब देंहटाएंuff.... wakai maayen apna ghar swayam buharti hain...marmik
जवाब देंहटाएंमाँ ने आभाव देखा है इसलिए ज्यादा से ज्यादा काम खुद कर लेना चाहती है...कुछ पैसे बचेंगे...बहू ने तो सिक्स्थ पे कमीशन देखा है...
जवाब देंहटाएंआपकी कविता में बहुत कुछ अनकहा, इशारे की सी बात है। यह आपकी कविता की खूबसूरती है कि वह अपने पाठक को अपने अनुभव के हिसाब से एक निजी तस्वीर गढ़ने की आजादी देती है। हर कोइ झिंगुर दास को अपनी से देखा सकते हैं।
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