रंगारंग फ़ागुन में...
- करण समस्तीपुरी
सूना मोरा देश रंगारंग फ़ागुन में।
पिया बसे परदेस
रंगारंग फ़ागुन में॥
छत पर कुजरे काग,
कबूतर, कोयलिया,
ले जाओ संदेश,
रंगारंग फ़ागुन में॥
फ़ूले सरसों
गदराया महुआ का तन।
बौरी अमराई में
भँवरों का गुंजन॥
पहिर चुनरिया
धानी धरती अँगराई
ले दुल्हन का
वेश, रंगारंग फ़ागुन में॥
खन-खन चूरी, कंगन
चुभे कलाई में।
होंठों की लाली
भी अब अंगार हुई,
यौवन करे क्लेश,
रंगारंग फ़ागुन में॥
गाए देवर फ़ाग,
ननदिया ताने दे।
बैरी सास-ससुर
पीहर न जाने दे॥
कटा टिकट तत्काल
पकड़ लो ट्रेन सुबह,
राजधानी
एक्स्प्रेस, रंगारंग फ़ागुन में॥
(रंग लूटऽ... हो... लूटऽ ! आ गइल फ़गुआ बहार.... !!)