कौवों से भी काला पनकौवा
वैज्ञानिक नाम: फैलाक्रोकोरेक्स नाइगर (Phalacrocorax niger)
सामान्य नाम : Little Cormorrant या छोटे पनकौवा
गण : बक (Order Ciconiformes)
कुल : जलकाक (Family Phalacrocoracidae)
स्थानीय नाम : बंगाल में इसे पनकौरी कहा जाता है। पंजाबी में जलकान, गुजराती में नानो काज्यो, मराठी में पनकाउला, तेलुगु में नातिकाकि, तमिल में नीर कागम, मलयालम में काक्तारावु और कन्नड़ में पुट्टा नीरू कागे।
पहचान
लगभग 50 से.मी. के आकार का यह आवासी प्रवासी पक्षी कौवों से भी अधिक काला होता है। इसकी कई जातियाँ सारे संसार में पाई जाती हैं। इसके पंख काले और चमकदार होते हैं। ये अपना अधिक समय पानी में ही बिताते हैं और पानी के भीतर मछलियों की तरह तैर लेते हैं। यह पानी में डूब कर मछलियों को पकड़ता है। तैरते समय इसका शरीर पानी के भीतर होता है, गरदन सीधी होती है और सिर और चोंच थोड़ा ऊपर की तरफ़ होते हैं। इसकी चोंच हुक के समान मुड़ी हुई होती है। चौड़ी पूंछ सीधी और तनी हुई होती है। इसके गले पर एक छोटा सा सफेद छाप होता है। इसकी टाँगें छोटी और उँगलियाँ ज़ालपाद होती है। बड़ा पनकौवा (Large Cormorrant) भी देखने में इसी की तरह होता है पर उसका आकार हंस के समान होता है और उसके दोनों तरफ़ बड़ा सफेद छाप होता है। नर और मादा पनकौवा में कोई अंतर नहीं होता। अकेला या 20 पक्षियों के झुंड में पाया जाता है। कभी-कभी झुंड इससे बड़ा भी होता है।
आवास-प्रवास
यह पक्षी पोखर, तालाब, झील, जलाशय, लैगून और सिंचाई के लिए बनाए गए जलस्रोतों के निकट पाया जाता है। मुख्यतः यह मछली, मेढ़क, घोंघे औए सीपी खाता है। शिकार पर ये दल बनाकर टूट पड़ते हैं। यह पानी में डूब कर मछलियों को पकड़ता है। हुक के समान मुड़ी चोंच में फंस कर शिकार निकल नहीं पाता। भरपेट भोजन खा लेने के बाद ये किनारे, चट्टानों, टीले, पेड़ों की शाखाओं आदि पर बैठ कर फ़ुरसत से अपने पंखों को फैलाकर सुखाते रहते हैं।
प्रजनन
इसके प्रजनन का कोई निश्चित समय नहीं होता। देश के विभिन्न भागों में इनका प्रजनन काल अलग-अलग देखा गया है। हां यह निश्चित है कि जिस समय इन्हें बहुतायत में भोजन मिलता है, उसी समय इनका प्रजनन काल शुरू हो जाता है। इसका कारण यह है कि इनके बढ़ते हुए चूजों को उस समय उचित खुराक मिल पाता है। उत्तर भारत में इस पक्षी में प्रजनन वर्षा ऋतु या मॉनसून के आगमनके समय, यानी जुलाई माह में शुरू होता है जो सितम्बर तक रहता है। क्योंकि इस मौसम में मछली और मेढ़कों की भरमार होती है। दक्षिण भारत में प्रजनन नवंबर से लेकर फरवरी तक होता है। जलाशयों के आसपास पाए जाने वाले वृक्षों पर यह अपना घोंसला बनाता है। यह चार से पांच नीले-हरे रंग का अंडा देता है। नर और मादा दोनों ही अंडों को सेते हैं।
अन्य प्रजातियां :
इस पक्षी की कई जातियाँ सारे संसार में पाई जाती हैं। सितकर्ण जलकौवा या इंडियन शैग (फेलाक्रोकोरेक्स फुसिकोलिस) : इसकी गरदन पतली और चोंच लंबी होती है। यह पक्षी देश भर में पानी के नजदीक पाया जाता है। बड़ा पनकौवा (Great Cormorant – P. carbo) 80 से.मी. के आकार का होता है। इसमें पीला gular pouch होता है।
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संदर्भ
1) The Book of Indian Birds – Salim Ali
2) A pictorial Guide to the Birds of the Indian Sub-continent – Salim Ali
3) Pashchimbanglar Pakhi – Pranabesh Sanyal, BiswajIt Roychowdhury
4) The Book Of Indian Birds – Salim Ali
5) Birds of the Indian Subcontinent – Richard Grimmett, Carol Inskipp and Tim Inskipp
6) Latin Names of Indian Birds – Explained – Satish Pande
7) हमारे पक्षी – असद आर. रहमानी
The Birds – R. L. Kotpal
यहाँ भी यह दिखाई देता है.. शायद यही है जिसे मैं पेलिकन टाइप का पक्षी समझता था.. इसकी आवाज़ बड़ी कर्कश होती है (अगर ये वही है जो मैं समझ रहा हूँ तो).. मज़ा आ गया इस पक्षी विहार में!!
जवाब देंहटाएंपेलिकन सफेद और इसके forehead का पर concave crescent बनाता है।
हटाएंमज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारीपूर्ण !
जवाब देंहटाएंवाह पक्षियों के बारे में रोचक जानकारी से भरी श्रंखला!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (08-02-2014) को "विध्वंसों के बाद नया निर्माण सामने आता" (चर्चा मंच-1517) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छी व रोचक जानकारी
जवाब देंहटाएंसाभार !
रोचक जानकारी
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