-- सत्येन्द्र झा
“बड़े दु:ख की बात है। मेरे पड़ोसी ने अपनी पतनी को डायवोर्स दे दिया।”
“डायवोर्स…. मतलब?”
“डायवोर्स मतलब तलाक…. पति-पत्नी के मध्य किसी प्रकार का संबंध नहीं। न शारीरिक ना ही वैचारिक। डायवोर्स में पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।”
“यह तो अच्छी बात है….!”
“दूर्र…. तुम पगली हो क्या?”
“हाँ, मैं पगली हूँ… क्योंकि मैं वर्षों से देखती आ रही हूँ कि मेरा बाप सवेरे उठ कर कहीं चला जाता है। आधी रात को दारू के नशे में टुन्न होके आता है। माँ को गाली देता है। आये दिन मारता-पीटता भी है। माँ भीख-दुख से हम पाँचो भाई-बहनों का पेट भरती है लेकिन कभी अपनी माँग में सिन्दूर लगाना नहीं भूलती।
“…………………..”
आंसुओं की कई बूंदे जमीन को गीली कर देती हैं। किसके आँसू पता नहीं।
(मूल कथा मैथिली में ’अहींकेँ कहै छी’ में संकलित डायवोर्स से हिन्दी में केशव कर्ण द्वरा अनुदित।)