भारतीय
काव्यशास्त्र – 128
आचार्य
परशुराम राय
पिछले अंक में यमक
अलंकार के भेदोपभेद पर चर्चा की गई थी। इस अंक में यमक अलंकार के संदर्भ में
पुनरुक्तवदाभास पर चर्चा करने का विचार था। लेकिन यह एक मात्र उभयालंकार है,
अर्थात् इसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों की विशेषताएँ पाई जाती हैं। बाद में
विचार आया कि पहले शब्दालंकारों की चर्चा समाप्त कर ली जाए, फिर इस अलंकार पर
चर्चा ठीक रहेगी। अतएव इस अंक में श्लेष अलंकार पर चर्चा अभिप्रेत है। विषय पर आगे
बढ़ने से पहले यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि श्लेष शब्दालंकार भी है और अर्थालंकार
भी। यहाँ शब्द-श्लेष पर ही चर्चा होगी।
काव्यप्रकाश में
आचार्य मम्मट ने श्लेष शब्दालंकार का लक्षण इस प्रकार किया है-
वाच्यभेदेन भिन्ना यद् युगपद्भाषणस्पृशः।
श्लिष्यन्ति शब्दाः
श्लेषोSसावक्षरादिभिरष्टधा।।
अर्थात् अर्थ-भेद के कारण भिन्न-भिन्न शब्द एक साथ उच्चरित होने से जब
आपस में मिल जाते हैं, तो उसे श्लेष अलंकार कहते हैं।
“अर्थभेदेन शब्दभेदः अर्थात् अर्थ के
भेद के कारण शब्दों का भेद होता है” तात्पर्य यह कि प्रत्येक अर्थ के लिए अलग-अलग शब्द का प्रयोग किया जाता
है या वाक्य में प्रयुक्त एक शब्द एक ही अर्थ का बोध कराता है। इस सिद्धांत के अनुसार
काव्य में उदात्त, अनुदात्त, स्वरित स्वरों के भेद के कारण शब्दों का भेद नहीं
होता है। इन स्वरों के आधार पर शब्दों का भेद केवल वेदों में ही माना जाता है। इस
नियम के चलते, अर्थात् काव्य में उदात्त, अनुदात्त और स्वरित स्वरों का बिना विचार
किए जब शब्द एक साथ उच्चारण के कारण परस्पर जुड़ जाते हैं या दूसरे शब्दों में
अपने स्वरूप की भिन्नता को छोड़ देते हैं, तो वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि दो या अधिक अर्थों के लिए एक ही शब्द पर्याप्त
होने पर उसका कई बार प्रयोग न कर एक बार ही प्रयोग किया जाता है, तो उसे
शब्द-श्लेष अलंकार कहते हैं। कवि उन्हें एक बार प्रयोग कर दो या अधिक अर्थों को
अभिव्यक्त करता है।
साहित्यदर्पण में इसकी परिभाषा निम्नवत दी गई है- श्लिष्टैः
पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते। अर्थात् श्लिष्ट पदों से अनेक अर्थों का
अभिधान (संकेत) होने पर श्लेषालंकार होता है।
जबकि हिन्दी में कहा जाता है कि जहाँ एक शब्द अनेक अर्थ श्लिष्ट (चिपके)
हों, तो वहाँ श्लेष अलंकार होता है। व्यावहारिक तौर दोनों एक ही हैं। अन्तर इतना
है कि संस्कृत परिभाषाओं के अनुसार पद (शब्द) श्लिष्ट होते हैं, जबकि हिन्दी में
दो या अधिक अर्थ के श्लिष्ट होने की बात बताई जाती है।
संस्कृत में शब्द-श्लेष अलंकार के निम्नलिखित आठ भेद बताए गए हैं-
वर्णश्लेष, पदश्लेष, लिंगश्लेष, भाषा-श्लेष, प्रकृति-श्लेष, प्रत्यय-श्लेष, विभक्ति-श्लेष
और वचन-श्लेष। हिन्दी में शब्द-श्लेष अलंकार को केवल एक अलंकार ही माना गया है।
इसका कारण दोनों भाषाओं की प्रकृति है। क्योंकि हिन्दी और संस्कृत - दोनों भाषाओं की
प्रकृति काफी भिन्न है।
इस
अंक में बस इतना ही। अगले अंकों में शब्द-श्लेष के विभिन्न रूपों पर चर्चा की
जाएगी।
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शब्द-श्लेष अलंकार के बारे में विस्तार से जानकारी मिली ..आभार.
जवाब देंहटाएंशब्द-श्लेष अलंकार Ati uttam!
जवाब देंहटाएंrazor wire
Nice
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