श्रद्धा-सुमन
आचार्य
परशुराम राय
क्या कहूँ
बापू,
आपके बन्दरों ने
जीना हराम कर दिया -
एक सुनता नहीं,
एक देखता नहीं
और
एक कुछ कहता नहीं।
जो देखता है, बोलता नहीं,
जो बोलता है, सुनता नहीं
और
जो सुनता है,
वह न देखता है, न बोलता है।
इन तीनों से
आ मिले हैं
दो और बन्दर,
एक बात-बात पर
देता रहता है
बन्दर-घुड़की
और दूसरा
सब कुछ
छीन लेता है।
इनकी जनसंख्या भी
इतनी हो गई है
कि क्या कहूँ,
इनके आतंक से
त्रस्त जनता
किंकर्तव्यविमूढ़ है।
इनके द्वारा
आपकी समाधि पर
चढ़ाने के लिए फूल
लाए गए हैं
उजाड़कर
फुलवारियों को।
पर,
पास मेरे
जो बचे
श्रद्धा सुमन,
स्वीकार
करें इनको
बापू।
****
इनके द्वारा
जवाब देंहटाएंआपकी समाधि पर
चढ़ाने के लिए फूल
लाए गए हैं
उजाड़कर
फुलवारियों को।
पर, पास मेरे
जो बचे श्रद्धा सुमन,
स्वीकार करें इनको
बापू।
BAHUT SUNDAR SHRADDHANJALI .SAADAR PRANAM.
सच में बहुत दुखी कर रखा है..
जवाब देंहटाएंविश्व-वन्द्य महात्मा गाँधी और परमादरणीय भारत के सपूत लालबहादुर शास्त्री जी को सादर कोटि-कोटि नमन।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंपर, पास मेरे
जो बचे श्रद्धा सुमन,
स्वीकार करें इनको
बापू।
हृदय से सादर नमन ....
गुरुवर की चिंता सही, मूक बधिर कपि सूर |
जवाब देंहटाएंजनसंख्या बढती चली, भारत माँ मजबूर |
भारत माँ मजबूर, पुकारे बापू आजा |
सत्ता शासक क्रूर, बजाये सबका बाजा |
तीन चिकित्सक श्रेष्ठ, बुलाये अब तो रविकर |
आँख कान सह कंठ, ठीक कर देवे गुरुवर ||
रविकर जी धन्यवाद।
हटाएंइन तीनों से
जवाब देंहटाएंआ मिले हैं
दो और बन्दर,
एक बात-बात पर
देता रहता है
बन्दर-घुड़की
और दूसरा
सब कुछ
छीन लेता है।
vaah bahut badhiya ...
पर, पास मेरे
जवाब देंहटाएंजो बचे श्रद्धा सुमन,
स्वीकार करें इनको
आदरणीय महात्मा गाँधी और लालबहादुर शास्त्री जी को मेरा भी नमन.
गांधी जी के वर्त्तमान लोकतंत्र में औचित्य पर यह कविता, राष्ट्र के गांधीवाद के मृतप्राय, विद्रूप स्वरुप को इतनी सरलता और सहजता से प्रस्तुत करती है कि ह्रदय आंदोलित हो जाता है.. आचार्य जी की कविता पहली बार पढ़ने को मिली (इन दिनों फेसबुक पर छिटपुट रचनाएँ दिख जाती हैं)और मन श्रद्धा से भर आया..
जवाब देंहटाएंआज के दिन राष्ट्र के उस विस्मृत सपूत को भी इसी मंच से स्मरण करना चाहूँगा जिसका नाम लाल बहादुर था!! हे भारत के लाल, तुम्हें शत शत नमन!!
लगता है कि आप भूल रहे हैं। मेरी कई कविताएँ इसी ब्लॉग पर प्रकाशित हुई हैं और उनपर आपकी बड़ी प्यारी उत्साहवर्धक टिप्पणियाँ भी मैंने पढ़ी हैं।
हटाएंओह! तब तो भूल हुई या स्मृति ने छल किया है मेरे साथ!!
हटाएंइससे पहले कि इस टिप्पणी को स्पैम खा जाए, कृपया इसे बचा लें!!
जवाब देंहटाएंअब तो वो तीनों बन्दर कटहे भी हो गए हैं.
जवाब देंहटाएंबापू को नमन
इन तीनों से
जवाब देंहटाएंआ मिले हैं
दो और बन्दर,
एक बात-बात पर
देता रहता है
बन्दर-घुड़की
और दूसरा
सब कुछ
छीन लेता है।
bahut hi sundar rachana .....bapu ko shat shat pranam
सच ही ऐसे बंदरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है ... बापू और शास्त्री जी को नमन
जवाब देंहटाएंकुछ पुष्प बचे हैं मन के ..करने को अर्पित तुम्हें.
जवाब देंहटाएंsach bandaron ki bheed bahut hai ..bandar bant khoob chal rahi hai ..
जवाब देंहटाएंbahut badiya samyik prastuti
Baapu ko naman!
बापू के जन्मदिन पर हमारी ओर से भी श्रद्धा सुमन...
जवाब देंहटाएंआपके साथ मैं भी बापू को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।
जवाब देंहटाएंजो कुछ बचे हैं श्रद्धा सुमन ...
जवाब देंहटाएंनमन !
बापू और शास्त्र जी के जन्मदिवस के अवसर पर उन्हें आदर सहित श्रद्धासुमन समर्पित।
जवाब देंहटाएंएक गूंगा बन्दर देश डूबा रहा है बाकि मिलकर को लूट रहे हैं .
जवाब देंहटाएंachcha vyora diya bandaron ka......
जवाब देंहटाएंतृप्त हुई होगी बापू की आत्मा इस कविता को पढ़कर। कोई तो है जो देख-बोल-सुन सब सकता है!
जवाब देंहटाएंअति उत्तम कृति .
जवाब देंहटाएंआपकी समाधि पर
जवाब देंहटाएंचढ़ाने के लिए फूल
लाए गए हैं
उजाड़कर
फुलवारियों को।katu satya ....
wah! sachchi shradhanjali hai ye
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब! वाह!
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी देखें-
नाहक़ ही प्यार आया
जवाब देंहटाएंफैलती रहें अनीतियाँ ,अमर बेल की तरह
छल्ले फँसाती शाखा-प्रशाखाओं में बिना किसी अवरोध के !
सच के कँटीले रास्ते से भाग ,
यहाँ बैठे रहें ,अंध, मूक,बधिर बने,
गज़ब का संयम ओढ़े ,
सबसे तटस्थ,निर्लिप्त !
इस कमरे के अंदर ;
परम संत बने आत्ममुग्ध ,
ये तीन बंदर !
man ko aandolit karti kavita
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