वह प्राचीन क़िला
श्यामनारायण मिश्र
आसमान से बातें करता,
वह प्राचीन क़िला।
हमको मरे हुए कछुए-सा,
औंधा पड़ा मिला।
गुंबद गले, छत्र टूटे,जल के सपनों-सा टूटा,
दीवारों में बीवांई।
भव्य बावली में है
जल की जगह, सड़ी काई।
पत्थर में कमल खिला।
फानूसों की जगह हो गया,तोत मैना नहीं
जालों का अनुबंध।
इत्र-सुगंधों की वारिस
सीलन औ’ दुर्गन्ध।
चहकते उल्लू मूड़ हिला
राजकुमारी झांड़ू देती,दादा से दिल्ली कंपती थी,
बर्तन मलती रानी।
राजकुमार बावला,
कुल की, अंतिम एक निशानी।
पोतों को दूभर है,
अपना ही तहसील, ज़िला।
कल हैदराबाद के किसी नवाब की बात हो रही थी !
जवाब देंहटाएंआज उस नवाब का पोता कुछ ऐसे ही हालातों में है
समय के साथ बहुत कुछ परिवर्तन होता है ...यही इस रचना
में पढने को मिला ....आभार सुन्दर रचना के लिए !
दादों से दिल्ली कंपती थी..बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंपरदेसी के हाथ हमेशा इज्ज़त बिकी यहाँ पर ,
जवाब देंहटाएंजनमें जब ऐसे कपूत तो दोष धरोगे किस पर !
राजकुमारी झांड़ू देती,
जवाब देंहटाएंबर्तन मलती रानी।
राजकुमार बावला,
कुल की, अंतिम एक निशानी।
दादा से दिल्ली कंपती थी,
पोतों को दूभर है,
अपना ही तहसील, ज़िला।
....क्या यह सामयिक विडम्बना ही है ???
वाह....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया....
हलके शब्दों में भारी अभिव्यक्ति....
सादर
अनु
कुल की, अंतिम एक निशानी।
जवाब देंहटाएंदादा से दिल्ली कंपती थी,
पोतों को दूभर है,
अपना ही तहसील, ज़िला,,,,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,
दुर्गा अष्टमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें *
RECENT POST : ऐ माता तेरे बेटे हम
आसमान से बातें करता,
जवाब देंहटाएंवह प्राचीन क़िला।
हमको मरे हुए कछुए-सा,
औंधा पड़ा मिला।
इन पुण्य आत्माओं की अप्रतिम रचनाएं पढ़वा संजोके आप एक बड़ा काम कर रहें हैं .
दफ़न यादों में सब कुछ है कोई शिकवा गिला .
जवाब देंहटाएंसहेजा मान मर्यादा फिर सब खोया कहाँ मिला .
besutiful lines to remember
ऐतिहासिक धरोहरों का यही हाल रहा ... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक ऐतिहासिक चित्रात्मक प्रस्तुति ..आभार
जवाब देंहटाएंराजनितिक गीत.. बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसार्थक ऐतिहासिक चित्रात्मक प्रस्तुति ..बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंकृपया आप इसे अवश्य देखें और अपनी अनमोल टिप्पणी दें
यात्रा-वृत्तान्त विधा को केन्द्र में रखकर प्रसिद्ध कवि, यात्री और ब्लॉग-यात्रा-वृत्तान्त लेखक डॉ. विजय कुमार शुक्ल ‘विजय’ से लिया गया एक साक्षात्कार
मनोज जी! आपके पास जिस रूप में भी इनकी कविताओं का सनाकलन है.. कृपया मुझे भेजें.. एक एक नवगीत मुझे लालच दिलाता है पूरा पढ़ जाने का!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन चित्रण है..
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण प्रस्तुति...
बेहतरीन कविता....
जवाब देंहटाएंसब समय का फेर लगता है....
जवाब देंहटाएंआसमान से बातें करता,
जवाब देंहटाएंवह प्राचीन क़िला।
हमको मरे हुए कछुए-सा,
औंधा पड़ा मिला।....dard ki parakashtha hai.....
दादा से दिल्ली कंपती थी,
जवाब देंहटाएंपोतों को दूभर है,
अपना ही तहसील, ज़िला।
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति.
मुग़ल-वंश की वर्तमान हालात सी व्यथा या फिर डूबते सूरज का सच..
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