लघुकथा
तस्वीर
मनोज कुमार
उसने अपने मृत पिता की तस्वीर
बेड रूम में लगा ली।
रोज़ सुबह अपने जन्म-दाता को
देखकर दिन की शुरुआत करता। तस्वीर के इर्द-गिर्द उसने अपनी, बीवी और बच्चों की
तस्वीरें भी रख दीं, जैसे पिता का परिवार पूरा हो गया हो। आशीष-वर्षा की कल्पना में मन
सन्तोष से भर उठा।
एक दिन दूर का रिश्तेदार घर
आया। उसकी पत्नी ने इसकी पत्नी के कान में कहा, “मरे हुए लोगों के साथ अपनी तस्वीरें
नहीं रखनी चाहिए। और वह भी बेड रूम में ! ........ अशुभ होता है।”
पत्नी के मन में शंका के बीज
पलने लगे।
पिता की तस्वीर अब स्टोर रूम
की शोभा बढ़ा रही थी।
***
संस्कारों की ऐसे ही धज्जियाँ उडती रहीं तो एक दिन माँ-बाप की तस्वीरें ये बच्चे कूड़ेदान में डालते नज़र आयेंगे और वहां पर नग्न तस्वीरें लगाने में अपनी शान समझेंगे।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट मार्मिक और दिल दहला देने वाली है।
कुंवर जी आपकी ताज़ा ग़ज़ल के इस शे’र पर बनी यह लघुकथा..
हटाएं“घरों से देवताओं- देवियों के चित्र ग़ायब हैं,
घरों में अब नज़र आती हैं कुछ बेकार तस्वीरें”
जी,ये लघुकथा बदलते संस्कारों की हूबहू तस्वीर खींचती हुई है।मगर कुछ लोग पत्नी(लघुकथा की पात्र) के उस कृत्य को भी justify करते हुए नज़र आयेंगे,आप टिप्पणी में देखिएगा.
हटाएंप्रस्तुत कथा हकीकत बयान करती नज़र आ रही है।
हटाएंअपनों को हम याद रखें, वही शुभ है..
जवाब देंहटाएंसहज प्रतिक्रिया है ये....मानव स्वभाव है ही ऐसा..अपने हित से परे कुछ सोचता नहीं.
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
पत्नी के मन में शंका के बीज पलने लगे।
जवाब देंहटाएंपिता की तस्वीर अब स्टोर रूम की शोभा बढ़ा रही थी।
जो बड़े बुजुर्ग हमें इस लायक बना गए कि हम सही गलत का अंदाज़ा लगा पायें वही मरने के बाद सम्मान न पायें विचारणीय . रही बात चित्रों कि तो वो सब आपकी सोच का परिणाम होते हैं बस हम आप मौके कि तलाश में रहते हैं न किसी धारणा के मिला अवसर और कर ली अपने मन की.थोप दिया दुसरे पर .
किसी के कहने में आकर अपने पति और परिवार के हित के लिये स्त्रियाँ ऐसा करती हैं !
जवाब देंहटाएंदारुण लेकिन आज का सच , अब सोच का क्या कहना .
जवाब देंहटाएंकिसी की मृत्यु के साथ हमारी संवेदनाएं, भावनाएं और जुड़ाव भी मर जाते हैं। जीवित अवस्था में जिस व्यक्ति के लिए हम कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं, उसके मृत शरीर से डरने लगते हैं और सारे कर्मकांड भी इसी भय के कारण करते हैं।
जवाब देंहटाएं...जिसके अंदर भाव ही न हों,तस्वीर लगाने का क्या मतलब...?
जवाब देंहटाएंनेह पिता का सर्वदा, हरदम आशिर्वाद ।
जवाब देंहटाएंकूड़े कचरे में पड़े, पर बाकी उन्माद ।
पर बाकी उन्माद, अगर आश्रम में होते ।
गुरु नानक सा हाथ, किये चिर निद्रा सोते ।
अब रविकर आश्वस्त, नहीं डिस्टर्ब होयगा ।
'धूप' 'अगर' उजियार, शोर बिन यहाँ सोयगा ।।
aansu aa gaye....bhawnayien dam tod rahi hai..lagbhag sab jagah ..dar lagta hai aane waale samay se.
जवाब देंहटाएंयादों में हर पल रहें
जवाब देंहटाएंसुंदर लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसंसार में जितने भी प्रचलित अंधविश्वास हैं वे किसी न किसी भय के कारण ही जन्में हैं। कुछ लोग इस भय के भूत से पीड़ित रहते हैं, कुछ लोग पूर्वाग्रह से पीड़ित रहते हैं।
बहुत कुछ कह गयी कहानी....
जवाब देंहटाएंये लोग ! इतनी जानकारियाँ रखते और देते हैं कि घर आशीष विहीन हो जाता है
जवाब देंहटाएंअंधविश्वासों ...या अपने हितों से ऊपर भी कुछ होता है ...यह लोग क्यों भूल जाते हैं...मर्म को छू गयी आपकी रचना ...!
जवाब देंहटाएंसच्चाई बयाँ करती दमदार लघुकथा,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST LINK...: खता,,,
लोगों को भी चैन नहीं..
जवाब देंहटाएंlogon ka kaam hai kahna kuchh to log kahenge...
जवाब देंहटाएंre man baawre tu apne man ki sun le.
शिक्षा का अभाव ऐसी मूर्खताओं का सँजोकर रखता है। क्या किया जाय, बस दुख व्यक्त किया जा सकता है ऐसी मूर्खताओं पर।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ३० /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
आदरणीय मनोज जी ये लघु कथा बहुत बड़ी बात कह गयी ..शंका को इसी लिए लोग डायन भूत कहते हैं अपना घर जलाने वाले दूजे का कैसे भला देख सकते हैं
जवाब देंहटाएंमाँ बाप का आशीष सदा ही बरसता रहता है जय श्री राधे
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
जो दूसरों के कहने से चलते हैं उनका खुदा ही मालिक है...अपने तो हर हाल में शुभ ही होते हैं...आजकल लोग अपटूडेट होने के चक्कर में...अपनी जड़ों-मूल्यों की तिलांजलि देने से नहीं चूकते...
जवाब देंहटाएंमाना कि किसी ने कहा कि मरे हुये लोगों की फोटो के साथ जिंदा लोगों की तस्वीर नहीं लगाते ..... तो यह भी हो सकता था कि अपनी तस्वीर हटा देते .... पिता की ही क्यों ?
जवाब देंहटाएंइस लघुकथा से स्पष्ट हो रहा है कि बुजुर्ग केवल बेकार की ही वस्तु रह गए हैं .... सशक्त लघुकथा ।
बहुत बारीक बिंदु पर बेबाक टिप्पणी देने के लिए आपको दाद देता हूँ,संगीता जी।
हटाएंये है आज का सच ………
जवाब देंहटाएंआज का सच। सशक्त लघुकथा। आभार,
जवाब देंहटाएंइन शंकाओं के लिए तो कोई औषधि नहीं है !
जवाब देंहटाएंaabhar ...
सशक्त रचना ..
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक कथा
जवाब देंहटाएंसंकीर्ण सोच की कोई काट है क्या ..
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रकरण!! कुछ ऐसी ही पोस्ट मैंने अपने शुरुआती के दौर में लिखी थी जहाँ मेरे एक मित्र जो प्रातः काल में अपने माता-पिता के चरण स्पर्श के बाद ही आँखें खोलते थे, विवाहोपरांत मुझसे यह कहते हुए मिले कि मैं उन लोगों का चेहरा तक देखना नहीं चाहता. मैं तो पत्नी को दोष ही नहीं देता.. दोष स्वयं उनका है.. आप तस्वीरों की बात करते हैं हमने जीवित माता-पिता के साथ यह सलूक होते देखा.. और विश्वास कीजिये मनोज भाई, आज तक उस अभिन्न मित्र से सम्बन्ध नहीं स्थापित हो पाए हैं!!
जवाब देंहटाएंमार्मिक किन्तु सत्य!!
पिता की तस्वीर की जगह हुसैन का घोडा लगाने का चलन तो काफी लोकप्रिय और स्वीकार्य है कई सालों से
जवाब देंहटाएंकुछ तो लोग कहेंगे,लोगों का काम है कहना मगर हमारा काम है सही और गलत के अंतर को देखते हुए निर्णय लेना॥
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ,शुक्रिया ,शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंमनोज कुमार
उसने अपने मृत पिता की तस्वीर बेड रूम में लगा ली।
रोज़ सुबह अपने जन्म-दाता को देखकर दिन की शुरुआत करता। तस्वीर के इर्द-गिर्द उसने अपनी, बीवी और बच्चों की तस्वीरें भी रख दीं, जैसे पिता का परिवार पूरा हो गया हो। आशीष-वर्षा की कल्पना में मन सन्तोष से भर उठा।
एक दिन दूर का रिश्तेदार घर आया। उसकी पत्नी ने इसकी पत्नी के कान में कहा, “मरे हुए लोगों के साथ अपनी तस्वीरें नहीं रखनी चाहिए। और वह भी बेड रूम में ! ........ अशुभ होता है।”
पत्नी के मन में शंका के बीज पलने लगे।
पिता की तस्वीर अब स्टोर रूम की शोभा बढ़ा रही थी।
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Posted by मनोज कुमार at 6:00 am
तस्वीर पर माला चढ़ाने से बोध होता है नहीं पन का,किसी के कालातीत हो जाने का .तस्वीर से बोध होता है यहीं कहीं हैं आस पास .दीवार पे क्यों टांगें .
कान में जो भी फुसफुसाया वह नकारात्मक सोच है ,केकड़ा वृत्ति है एक केकड़ा दूसरे को बढ़ते देख उसकी टांग खींचता है .ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से .
मार्मिक लघुकथा में सीख भी है.
जवाब देंहटाएंlaghuktha me aaj ka sach hai...
जवाब देंहटाएंवर्तमान पीढ़ी की सच को उद्भभाषित करती आपकी लघु कथा बहुत ही अच्छी लगी। धन्यवाद, सर।
जवाब देंहटाएंअनिष्ट का भय संस्कारों पर भारी पड़ता दिखता है !
जवाब देंहटाएंवैसे भी बुजुर्गों की जगह आजकल स्टोर रूम में ही है । यह तो तस्वीर है । सुंदर लगुकथा सत्य को उजागर करती ।
जवाब देंहटाएंek katu satya ujagar kiya aapne ...kash shubh-ashubh ka gyan swayam samjh paate ham log...
जवाब देंहटाएंuff
जवाब देंहटाएंwaese store ki safaii kab due haen
यही होता है, मार्मिक...
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंसंस्कार पर रूढ़ि के जीत में नारी मनोविज्ञान का गौण पक्ष आलोच्य हो गया है।
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