ऐसा ही बचा हुआ गांव है
श्यामनारायण मिश्र
आमों के बाग कटे
कमलों के ताल पटे
भटक रहे ढोरों के ढांचे
दूर-दूर तक बंजर फैलाव है
ऐसा ही बचा हुआ गांव है
पेड़ पर गिलहरी से चढ़ते
अध नंगे बालक
छड़ियों सी क्षीणकाय
पीली पनिहारियां
पत्तों की चुंगी में
बची-खुची तंबाखू
सुलगाते बूढ़े
सहलाते झुर्रियां
द्वार पर पगार लिए
कामगार बेटे का
हफ़्तों से ठंडा उरगाव है
ऐसा ही बचा हुआ गांव है
मेड़ों पर उगी
बेर की कटीली
कास की गठीली
खेतों तक फैल गई झाड़ियां
जोहड़े से कस्बे तक
लाद-लाद ईंटें
बैल हुए बूढ़े टूट चुकी गाड़ियां
मिट्टी की फटी-फटी
कच्ची दीवारों पर
झुके हुए छप्पर की
आड़ी सी छांव है
ऐसा ही बचा हुआ गांव है
कुत्तों के रोने सा साइरन बजातीं
बल विवेक खाती
फैल रही भट्टियां
देखते ही देखते
मोची के छातों सी
तन गई हैं झोपड़ पट्टियां
हाथ नहीं
हिंसक ये पंजा
गर्दन में ज़ोर का कसाव है
ऐसा ही बचा हुआ गांव है
जीवंत शब्द-चित्र खींचा है पूज्य मिश्र जी ने. मानो आँखे पढ़ नहीं रही है बल्कि देख रही हो..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया नवगीत....
जवाब देंहटाएंआभार..
अनु
कल यानि रविवार को हिंदी नव गीत के जनक देवेन्द्र शर्मा इन्द्र जी घर पर पधारे थे और वही श्याम नारायण जी की गीतों की चर्चा हुई.... एक और बढ़िया गीत पढवाने का आभार
जवाब देंहटाएंसादर-
जवाब देंहटाएंआभार-
इस प्रस्तुति पर ||
हाथ नहीं
जवाब देंहटाएंहिंसक ये पंजा
गर्दन में ज़ोर का कसाव है
ऐसा ही बचा हुआ गांव है,,,,,,
श्याम नारायण जी की नवगीत(रचना) पढवाने के लिये आभार,,,मनोज जी,,
RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
बढ़िया नवगीत....आभार..
जवाब देंहटाएंवाह सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत ... आभार
जवाब देंहटाएंमिट्टी की फटी-फटी
जवाब देंहटाएंकच्ची दीवारों पर
झुके हुए छप्पर की
आड़ी सी छांव है
ऐसा ही बचा हुआ गांव है
बहुत सुंदर ....
वहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंयहाँ बचा हुआ गाँव 70% भारतीयों के जीवन का स्वरूप है। जिनके लिए न सरकार है और न ही विकास।
जवाब देंहटाएंश्याम नारायण जी की रचना पढवाने के लिये आभार...........
जवाब देंहटाएंहाथ नहीं
जवाब देंहटाएंहिंसक ये पंजा
गर्दन में ज़ोर का कसाव है
ऐसा ही बचा हुआ गांव है
क्या शाब्दिक चित्र खींचा है मिश्र जी इस सुंदर गीत के माध्यम से.
बहुत अरसे बाद पढ़ा इन्हें ...
जवाब देंहटाएंआपका आभार !
गाँव तड़पने लगा।
जवाब देंहटाएंसही तस्वीर खींची है शब्दों से\
जवाब देंहटाएंकुत्तों के रोने सा साइरन बजातीं
जवाब देंहटाएंबल विवेक खाती
फैल रही भट्टियां
देखते ही देखते
मोची के छातों सी
तन गई हैं झोपड़ पट्टियां
जीवंत तस्वीर
असली गांव ऐसा ही है
जवाब देंहटाएंरुपहले पर्दे की रंगीनियों से दूर
अपने अस्तित्व के लिए जूझता
ताकि बचा रहे यह देश
बचे रहें हमारे पुरखे
सभ्यता और संस्कृति है जिनसे!
मिट्टी की फटी-फटी
जवाब देंहटाएंकच्ची दीवारों पर
झुके हुए छप्पर की
आड़ी सी छांव है
ऐसा ही बचा हुआ गांव है
मनोज जी...अद्भुत भाव, शिल्प और शब्द गूंथ कर रची इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें... ऐसी शाश्वत रचनाएँ ब्लॉग जगत में दुर्लभ हैं...गाँव का जीवंत चित्रण...वाह.
नीरज