मंगलवार, 10 नवंबर 2009

काम करती माँ !

--- मनोज कुमार
जब मां आटा गूंथती थी
तो सिर्फ अपने लिए ही नहीं,
सबके लिए गूंथती थी,
झींगुर दास के लिए भी !


मां जब झाड़ू देती थी
तो सिर्फ घर आंगन ही नहीं,
देहरी, दालान और
झींगुर दास वाला ओसारा भी बुहार देती थी।

मां जब बर्तन धोती थी
तो सिर्फ अपना जूठन ही नही,
घर के सभी लोगों के जूठे बर्तन धोती थी
झींगुर दास के चाय पिए कप को भी !

यह सब करके मां का चेहरा
खिल उठता था फूल की तरह
जिसकी सुगंध पर सबका हक़ था
झींगुर दास का भी !


अब बहू आ गई है
बहू ने अपने घर में बाई को रख लिया है
वह झाड़ू, पोछा, चौका-बर्तन कर देती है
पर मां अपना घर आज भी बुहार रही है।
*** ***

21 टिप्‍पणियां:

  1. एक-एक शब्द मे कटु व्यंग्य ! हर छंद ह्रदय-भेदी ! प्रतीक... झींगुर दास - उपेक्षित वर्ग का प्रतिनिधि यहाँ समान संवेदना का अधिकारी ! आलंबन माँ - भाव को सफलतापूर्वक बहन करने मे सक्षम ! विषय पीढीगत विषमता और सन्देश.... हाय रे निर्लज्ज आधुनिकता... !!

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  2. मनोज कुमार जी!
    आपने बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है!
    बधाई!

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  3. Kavita bahut aachi lagi. "MAA" hi wo hai jo ghar awom parivaar ke baare me sochti hai ,apni nahi.Par aaj ke adhunik daur me bhartiya naari paschimi sabhayata ko apna rahi hai. Aaj unke ghrao me naukar chakar hai.Par "MAA" aaj bhi wahi hai jo apna kaam swaym karti hai woh dusroo par nirbhar nahi rahana chahti.(MOHSIN)

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  4. Maa k upar aapki yeh kavita parh sach dil bhar aaya.Swarth se duur maa aur aapki yeh kavita bahut kuch siikh deti hai.Bahut achha laga aapki yeh kavita parh k.

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  5. एक सिहरन से भर दिया है आपकी कविता ने. बहुत बडा सच है ये...बधाई बहुत ही सुन्दर रचना.

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  6. मां की भावना और उसके स्नेह को दर्शाती एक भावभीनी रचना। आपको बधाई।

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  7. बहू जी के राज में झिंगुरदास की क्या स्थिति है ?

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  8. गिरिजेश जी अगले मंगलवार को उनके बेरे में भी प्रस्तुत करूंगा।

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  9. dilke karib maa ka hona svabhavik hai ...aur ye naye jamane ki katu vastavikta hai ...

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  10. ye tho ghar-ghar ki sachai hai. thanks for a daring poem.
    - thaygarajan

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  11. Manoj ji

    Apki ye kavita dil ko chhu gai...kya kahu is kavita ke bare me...excellent poem..aur aj ke samaj ka kathore sach..jo apne is poem ke madhyam se darsaya hai...Maa bilkul aise he hoti hai...kabi apne bare me sochti he ni..
    Apko bahooooooooooooooot bahoooooooooooooooot badhai aur dhero subhkamnayen...Dhanyabaad..

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  12. बहुत सारी भावनाओं को समेटे हुए कविता

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  13. काम का इतना सम्मान मैंने अपने जीवन में नहीं के बराबर देखा है। काम के सम्मान के प्रति लिखी गई यह रचना काफी आकर्षक है। औऱ अन्य लोगों को प्रेरणा प्रदान करती है।

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  14. MAA TO MAA HI HAI .... ITNA SAB KUCH KAR KE BHI APNE LIYE KUCH NAHI MAANGTI ... GAHREE BHAAVNAYEN SIMETE RACHNA .....

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  15. ek ehsas jo Jhingur ke madhyam se aapne vyakt kiya... Maa ka dard nahi samjhe koi, Dar bhatke sheraweali ke...... Hey Janni tun amar rahe...

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  16. Bahut sundar rachna.Vartmaman samajik jeevan ka chitra prastut karti kavita man moh leti hai.Saadar.

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  17. बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने सच्चाई को बखूबी शब्दों में पिरोया है! माँ के बारे में जितना भी कहा जाए कम है ! माँ हमारे लिए कितना संघर्ष करती हैं! बच्चे को तकलीफ न हो इसी वजह से वो सारे दर्द सहती हैं और अपना सारा प्यार अपने बच्चे पे लुटाती है!

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  18. sach hai maa k baare me kitna bai khei kam hai maa parmatma ka roop hai aapki kriti pad k mann bhar aaya namm aakho se dhanyavaad ise pad k muje apni maa yaad aa gayi jo ab is kathor dunia se dur hai

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