रविवार, 20 दिसंबर 2009

राम भरोसे हिंदू होटल

-- करण समस्तीपुरी

आज पूरे हफ्ते भर बाद फुर्सत में हूँ। वैसे तो आज कल नयी-नयी अट्टालिकाएं चार-पाँच तारे लगा कर शहर की शान बढ़ा रही हैं। और ऊंची रसूख वाले लक्ष्मीनंदन वहाँ जाकर अपनी शान में नए कसीदे जोड़ते हैं। परन्तु मेरे जैसे 'नहि इच्छा नहि बाहुबल, नहि गाठन कछु दाम....' वाले लोगों के लिए तो अभी भी 'राम भरोसे हिंदू होटल' ही एकमात्र शरणस्थल है। उजड़े आशियाने के टीन वाले बदरंग साइन-बोर्ड के नीचे आते ही श्रद्धा से नत मन बच्चन की तरह गाने लगता है, 'कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को....?'
ऐसा नही है कि 'राम भरोसे हिंदू होटल' हमेशा इसी तरह दीन-हीन रहा है। पाँच रुपया में भर पेट भोजन करवाने वाला यह आज का चारागार कभी शहर का सबसे आलीशान मीटिंग पॉइंट हुआ करता था। वकील साहब उलझे हुए मुकदमे के पेंच यहीं सुलझाते थे। शागिर्दों के साथ नेता जी की आगे की रणनीति भी यहीं बनती थी। प्रतिष्ठित पत्रकारों के बीच समाचारों का आदान प्रदान भी यहीं होता था। शहर में राहत शिविर चलाने वाले समाजसेविओं की टोली भी यहीं बैठती थी। और जिला-समाहरणालय के छोटा बाबू से लेकर बड़े साहब तक रूटीन-वाइज यहाँ की सेवा ग्रहण अवश्य करते थे। राम भरोसे हिंदू होटल ने वो दिन भी देखें हैं, जब रोज गलासे फूटती थीं। लेकिन एक दिन यह भी है जब ग्लासें भी होठों से लगाने वाले के इंतिजार में तरसती हैं।
खैर मैं अब भी यहाँ नियमित आता हूँ। पता नही कैसे, लेकिन इससे मुझे मातृभूमि सा लगाव महसूस होता है। हाँ उदर-भरण उद्योग में व्यस्त होने के कारण यह सिलसिला अब साप्ताहिक हो चला है। किसी जमाने में सूर्ख रंग में लिखी फख्र की इबादत पर आज फिर फुरसत में नजर पड़ीं। 'राम भरोसे हिंदू होटल' ! मलीन कपड़ों में सजे हुए कर्मचारियों की निस्तेज आंखों में स्वर्णिम इतिहास की गवाही झलक रही है। लेकिन कभी महज नाम जैसा लगने वाला 'राम भरोसे' आज नाम की सार्थकता सिद्ध कर रहा है। सच में, अब यहाँ आते ही कौन हैं ? या तो मेरे जैसे लोग या इस होटल जैसे। ना चाहते हुए भी मेरा तीक्ष्ण दिमाग आज इसके नाम के मतलब पर बेहद अनुशीलन कर रहा है।
हालांकि अपने नाम की भांति ही राम भरोसे हिंदू होटल शहर की भीड़ में भी ख़ुद को बेगाना कर लिया है किंतु मुझे तो यह आज भी बहुत अलग नही लगा। आख़िर यही होटल क्यूँ... ? आज-कल तो बहुत कुछ राम भरोसे है। हिन्दुस्तान में तो राशन से लेकर राजनीति तक राम भरोसे ही है। एक दिन में भारत के राम भरोसे जनता के करोड़ों रूपये को राम भरोसे खर्चने वाले संसद का सत्र भी तो राम भरोसे ही चलता है वरना आवादी भले चाहे जितनी हो मुद्दे तो हैं ही नही। सड़क तो सड़क संसद पे भी हमला हुआ। आकाश तो आकाश पाताल से भी बम-गोले बरसे लेकिन देश की सुरक्षा तो अब भी राम भरोसे ही है। किसान की खेती सूखी, कर्मचारियों की कामधेनु भी अल्पदुग्धा हुई लेकिन मंहगाई सातवें आसमान पर। नेता, नौकरशाह और टाटा-बिरला तो चांदी काट कर रहे हैं लेकिन आम जनता तो राम भरोसे ही है।
इस मंदी में भी जो चकाचक है, वो है क्रिकेट। लेकिन इसका भी क्या कहा जाए... ? बीस साल मैदान में बिसाए टॉप-आर्डर चला तो ठीक वरना राम भरोसे। बल्ले-बाजी में तो कुछ 'गंभीरता' भी है लेकिन गेंदबाजी तो भैय्या राम भरोसे ही है। और गेंदबाजी का भी क्या कहें ? कभी लाइन तो कभी बेलाइन लेकिन फील्डिंग तो सोलह आने राम भरोसे ही है। बीस ओवर में छः-छः कैच टपकाने के बाद भी जीत जाएँ तो राम भरोसे ही।
अब क्रिकेट का ही क्या कहें... ? लोग कहते हैं इक्कीसवीं सदी का भगवान तो कंप्यूटर है। लेकिन मुझे तो इसके निर्माता पर भी तरस आता है। भाई सब कुछ तो बना बहुत सही। बहुत सटीक। अत्याधुनिक और तकनिकी रूप से अत्यन्त सुदृढ़। लेकिन मुझे पता चला कि कंप्यूटर भी राम भरोसे ही है। राम (RAM- Random Access Memory) गया तो साब जी, आपका कंप्यूटर भी राम भरोसे ही समझिये।
अब और क्या गिनाएं ? सब कुछ राम भरोसे ही है। लेकिन राम किसके भरोसे हैं ? बेचारे आजन्म संघर्ष ही करते रहे और 'शिव-शिव' जप कर समय काटते रहे। लेकिन जब शिव जी से मेरा साक्षात्कार हुआ तो वो बेचारे ख़ुद रोने लगे। बोले, "हे कलयुगी भक्त शिरोमणि ! देवाधिदेव की उपाधि तो मुझे दे दी और 'अष्ट सिद्धि-नव निधि' के स्वामी ख़ुद बने बैठे हो। तुम्हारे पास तो सारी अत्याधुनिक सुविधाएं हैं... जरा मेरी हालत देखो। तुम्हारे सैर सपाटे के लिए हवा से बात करने वाले अत्याधुनिक स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल्स हैं और जरा मेरा देखो... बूढा बैल। बीवी शेर पर सवारी करती हैं, एक बेटा मयूर पर और एक बेटा चूहा पर। सब लोग एक साथ कहीं जा भी नही सकते। आना जाना तो छोड़ो, यहाँ तो खाने को अन्न और पहनने को वस्त्र तक के लाले हैं। भांग-धतूर खा कर और मृगछाला से किसी तरह इज्जत ढक कर खुले आसमां के नीचे पत्थर पर गुजर करते हैं। माथे पर चन्द्रमा और चन्द्रमा में अमृत और नीचे बाघम्बर। डर तो इतना बना रहता है कि कहीं चन्द्रमा से अमृत टपक गया तो बाघ जिन्दा होकर परिवार को ही 'तस्मै स्वाहा' ना कर दे। एक तो गर्दन में कालकूट अंटका हुआ है। डर से थूक तक नही निगलता। उपर से पूरे बदन पर विषधर लोटता है। मारे डर के दिन-रात राम-राम जपते बीतता है।"
हूँ... ! शिवजी की हालत देख कर मुझे भी तसल्ली मिली। हाँ भाई, जब देवाधिदेव ही राम भरोसे हैं फिर 'राम भरोसे हिंदू होटल हुआ तो कौन सी अचरज की बात !!!

17 टिप्‍पणियां:

  1. आपके लेखन की यह विधा बहुत अच्छी लगती है । मजा आ गया । धन्‍यवाद.........

    जवाब देंहटाएं
  2. wah samastipuriji wah! majaa aa gaya kya kahen aap ke baare mein ab to aapki taarif mein likhne ko dictionary mein sabd dundene padte hain. ek milta nahin hai ki aap turat ek nukliyar misile daag dete ho, aur wo bhi ek se badkar ek bilkul sahi samay aur nisane pe. the best write up till dat "which i hav read".it's really-really stupendous.Aapne thik hi likha shayad kyonki aaj kal jab aap jaise achhe lekhak raam bharose hai to bakiyuon ki to baat hi chodo.

    जवाब देंहटाएं
  3. अरे भाई राम भरोसे आप को यह टिपण्णी दे रहे है, जब राम ने ठेका ले लिया है इस देश को चलाने का तो डर केसा, लेकिन यह राम भरोसे होटल है कहां, मै आ रह हुं शयद एक खाट ही मिल जाये सोने के लिये

    जवाब देंहटाएं
  4. --- --- पढ़कर लोट-पोट होने लगा। आपके प्रयास का जवाब नहीं ! बधाई स्वीकारें।

    जवाब देंहटाएं
  5. Karan ji..kuch to bat hai apke lekhaki me...har din kuch naya hota hai..har lekh kuch hatkar hota hai....sach me sab kuch RAM BHAROSE he hai...bt ye blog aplog apne he bhorse rakhna .... Bhahut acha raha ye lekh...thanks...n wish u all d best

    जवाब देंहटाएं
  6. सच में सब राम भरोसे ही है। बहुत अच्छा व्यंग्य।

    जवाब देंहटाएं
  7. Rachna ko bahut badiya se prastut kiya hai.Badhai.

    जवाब देंहटाएं
  8. Rachna ko bahut badiya se prastut kiya hai.Badhai.

    जवाब देंहटाएं
  9. Rachna ko bahut badiya se prastut kiya hai.Badhai.

    जवाब देंहटाएं
  10. इससे मुझे मातृभूमि सा लगाव महसूस होता है... bahut badhiya laga keshav ji :)

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।