मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

अमरलता

अमरलता

--- --- मनोज कुमार


हे अमरलता !

हे अमरबेल !


दिखने में कोमल पर क्रूर,

चूसे पादप को भरपूर,

टहनी-टहनी, डाली-डाली,

छिछल रही है तू मतवाली,

री ! परजीवी

खेल रही तू,

शोषण का

व्यापक यह खेल।

हे अमरलता !

हे अमरबेल !


ना जड़ है, ना पत्र पुहुप,

वृष्टि शीत या गृष्म धूप,

फैली शाखाएँ चहूं ओर,

दिखे न तेरा ओर-छोर,

उसका ही

करती विनाश,

करती जिससे

तू हेल-मेल।

हे अमरलता !

हे अमरबेल !


ना औषधि है, कोई खाद्य,

तू प्रकृति विनाशनि शक्ति आद्य,

शोषक का जग में क्या उपयोग?

बस भोग, निरन्तर भोग, भोग,

बढ़ते हैं

जग मे वही आज,

जो देते

औरों को धकेल।

हे अमरलता !

हे अमरबेल !



*** ***

आने वाले नए वर्ष की मंगल कामनाएँ !

24 टिप्‍पणियां:

  1. कल के बाद आज दुबारा शानदार प्रस्तुति । बहुत सुंदर प्रतीक का प्रयोग। शुभकामनाएं ।

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  2. कितनी अलग सोच है आपकी नये नये विषय को कितने बेहतरीन ढंग से भावनाओं में पिरो लेते है..मैने इससे पहले भी एक कैटरपिलर वाली कविता पढ़ी थी वो भी लाज़वाब थी और आज की यह प्रस्तुति भी..बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी!!!

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  3. बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना धन्यवाद

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  4. बहुत बढ़िया.


    यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

    हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

    मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

    नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    आपका साधुवाद!!

    नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

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  5. बहुत अच्छी कविता।
    आने वाला साल मंगलमय हो।

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  6. एक अनछुआ सा विषय .....अमरबेल के माध्यम से सच को दर्शाती खूबसूरत रचना...

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  7. ye kavita aaj ke hamen chus kar khokhle karne vale har paribal par fit hoti hai ye chahe bhrashtachar ho naitikata aur paschimi havase behta svechchhachar ....
    Manoj ji ek behatar kavita ...
    NAVVARSHKI SHUBHKAMANAYEN AAPKO BHI ....

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  8. वाह क्या बिम्ब चुना है आपने सच को बताने के लिए। विनोद जी से सहमत हूं। बधाई।

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  9. एक नए विचार लिए सारगर्भित रचना

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  10. बेहतरीन ढंग से भावनाओं में पिरोती इस रचना के लिए आपको साधुवाद।

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  11. बढ़ते हैं जग मे वही आज, जो देते औरों को धकेल।
    बहुत अच्छी लगी यह कविता।

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  12. बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना धन्यवाद

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  13. बढ़ते हैं

    जग मे वही आज,

    जो देते

    औरों को धकेल।
    अमर बेल के माध्यम से आज के मानव का सही चित्रण ।बधाई

    जवाब देंहटाएं
  14. अनुपम बिम्ब ! सुन्दर छंद !! सम्मोहक रचना !!!

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  15. शानदार प्रस्तुति । बहुत सुंदर प्रतीक का प्रयोग।

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  16. लाजवाब प्रस्तुति ........ अमर बेल की तरह समाज के कुछ चरित्रों का सजीव चित्रण .......
    आपको और आपके पूरे परिवार को नये साल की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ........

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  17. waah !!
    kavita to bahute neek lagal hamra..
    sahi prateek aur bimb.
    bahut sundar, saargarbhi..
    नववर्ष की शुभकामनाएं...!!!

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  18. aapkee kavitaa'kaitarpeelar" aur ab "amarbela" dono kuchh khaas hai. khaas na sirf is kaarana ki isme pryukta bimba aur prateek tajagee se bhare hai balki is baat ki doobaaraa yaad dilaati hai ki "jahaan na jaaye ravi, tahaan jaaye kavi. wah vilaxana drishti jisase aapne in do atayant samanya se paaye jaane vaalee vastuon par apne aoothe bhao ka avlamb kar behatareen kavitaa kee rachnaa kee hai. ek pathak ke taur par to nissandeh hame chamtkrit kiyaa hai.
    anekaane shubhkamnao sahit.
    prem prakaash

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  19. .

    हे अमरलता ! हे अमरबेल !
    दिखने में कोमल पर क्रूर, /चूसे पादप को भरपूर,
    टहनी-टहनी, डाली-डाली/ छिछल रही है तू मतवाली,
    री ! परजीवी /खेल रही तू, /शोषण का व्यापक यह खेल।
    हे अमरलता ! हे अमरबेल !

    @
    हे अमरलता ! हे अमरबेल !
    आचार-संहिता की नकेल.
    हर तरु पर छाती एक भाव
    ये प्रजातंत्र का है प्रभाव.

    टहनी-टहनी डाली-डाली
    जा-जाकर रोक रही जाली
    नैसर्गिक सुन्दरता भंगुर
    माली देता रहता गाली.

    री कर-जीवी ! तू खेल रही
    श्रमिकों की आय पर गुलेल.
    हे अमरलता ! हे अमरबेल !
    तू पास और सब हुए फेल.

    .......मनोज जी , आपकी कविता बेहद मजेदार लगी. उसमें यथार्थ के दर्शन हुए.

    .

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