कोई चिराग नहीं है, मगर उजाला है ! ग़ज़ल की शाख पे इक फूल खिलने वाला है !!
मित्रों ! काव्य-प्रसून में आज आपके पेश-ए-खिदमत है एक ग़ज़ल ! -- करण समस्तीपुरी
पूछ मत आज मुझसे ये क्या हो गया !
जिस्म से जान बिल्कुल जुदा हो गया !!
आँख की रोशनी छिन गयी आंख से,
जो न सोच वही बकया हो गया !!
पूछ मत आज मुझसे ये क्या हो गया !!
मुद्दतों सिद्दतों मिन्नतों से मिली,
वो खुशी थी खुशी के महल में पली !!
पर अचानक ये क्या माजरा हो गया !
जिस्म से जान बिल्कुल जुदा हो गया !!
वो खुशी ऐसी थी की बहकने लगा !
मेरी किस्मत का तारा चमकने लगा !!
एन मौके पे रब ही खफा हो गया !
जिस्म से जान बिल्कुल जुदा हो गया !!
चांदनी चार दिन के लिए ही सही !
चांदनी से मुझे कुछ शिकायत नही !!
चाँद ही लुट गया, चांदनी मिट गयी !
बस अँधेरा मेरा आशियाँ हो गया !
पूछ मत आज मुझसे ये क्या हो गया !!
चाँद भी आसमा पे खिला है मगर,
उसके अमृत में दिखता है मुझको जहर !
फूल कांटे बने, साँस भरी हुई,
दिल कलेजे से जैसे बिदा हो गया !
पूछ मत आज मुझसे ये क्या हो गया !!
जिस्म से जान बिल्कुल जुदा हो गया !!
SUNDAR PRASTUTI
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
nice
जवाब देंहटाएंचांदनी चार दिन के लिए ही सही !
जवाब देंहटाएंचांदनी से मुझे कुछ शिकायत नही !!
चाँद ही लुट गया, चांदनी मिट गयी !
बस अँधेरा मेरा आशियाँ हो गया ! waah bahut sundar panktiyan
बेहतरीन गीत!!
जवाब देंहटाएंनिराशा के अंधेरे को दूरकर आशा का दीप जलाओ। आपस में स्नेलह जगा कर मानवता को अपना धर्म बनाओ
जवाब देंहटाएंWahwa.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और शानदार रचना हैं! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंक्रोध पर नियंत्रण स्वभाविक व्यवहार से ही संभव है जो साधना से कम नहीं है।
जवाब देंहटाएंआइये क्रोध को शांत करने का उपाय अपनायें !
बहुत सुंदर, सशक्त और अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंBahut Badia
जवाब देंहटाएंरचना बहुत अच्छी लगी. आभार
जवाब देंहटाएं...बहुत सुन्दर !!!
जवाब देंहटाएंbahut achha laga pad kar bahut khub
जवाब देंहटाएंhttp://kavyawani.blogspot.com/
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बेहतरीन गीत!!
जवाब देंहटाएंचाँद भी आसमा पे खिला है मगर,उसके अमृत में दिखता है मुझको जहर !फूल कांटे बने, साँस भरी हुई, दिल कलेजे से जैसे बिदा हो गया !पूछ मत आज मुझसे ये क्या हो गया !!
जवाब देंहटाएंजिस्म से जान बिल्कुल जुदा हो गया !!
अत्माभिव्यक्ति। उत्तम प्रस्तुति।
बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना हैं! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंचांदनी चार दिन के लिए ही सही !
जवाब देंहटाएंचांदनी से मुझे कुछ शिकायत नही !!
चाँद ही लुट गया, चांदनी मिट गयी !
बस अँधेरा मेरा आशियाँ हो गया !
पूछ मत आज मुझसे ये क्या हो गया !!
बेहतरीन प्रस्तुति।
इसमें थोड़ा कसाव और प्रांजलता की कमी है, अन्यथा रचना अत्माभिव्यक्ति लगती है।
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्द चयन और बिंबों का अच्छा प्रयोग इसे ग्राह्य बना रहा है।
चाँद भी आसमा पे खिला है मगर,
जवाब देंहटाएंउसके अमृत में दिखता है मुझको जहर !
फूल कांटे बने, साँस भरी हुई,
दिल कलेजे से जैसे बिदा हो गया !
पूछ मत आज मुझसे ये क्या हो गया !!
जिस्म से जान बिल्कुल जुदा हो गया !!
बहुत सुन्दर रचना!
शब्दों का अच्छा चयन किया है आपने!
सभी पाठकों का हृदय से धन्यवाद ! यह मेरी आरंभिक रचनाओं में से एक थी!! संकोचवश प्रस्तुत करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था !!! हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया !!!!
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