शनिवार, 10 जुलाई 2010

अमूमन सप्ताहांत में फुर्सत मिल जाती है...

-- करण समस्तीपुरी

नौकरी ने फुरसत नहीं दिया तो क्या हम तो फुर्सत के लम्हे याद कर ही लिए। अभी गयी रात भोजनोपरांत बुद्धू-बक्से के आगे बैठ गया। दिन में चाहे कुछ हो... मगर वो क...... क......क....क.... क्या कहते हैं कि रात की रानी तो वही हैं, अरे अपनी एकता दीदी। लेकिन एक बात है, एकता दीदी के सीरियल में बहुत अनेकता दिखती है।
अब क्या बताएं ... ? अमूमन सप्ताहांत में फुर्सत मिल जाती है.... पर मुआ सोम को भारत क्या बंद हुआ... अपने फुर्सत की भी वाट लग गयी। शनिवार को भी कार्यालय आना पड़ा। लेकिन तुम डाल-डाल तो मैं पात-पात। नौकरी ने फुरसत नहीं दिया तो क्या हम तो फुर्सत के लम्हे याद कर ही लिए। अभी गयी रात भोजनोपरांत बुद्धू-बक्से के आगे बैठ गया। दिन में चाहे कुछ हो... मगर वो क...... क......क....क.... क्या कहते हैं कि रात की रानी तो वही हैं, अरे अपनी एकता दीदी। लेकिन एक बात है, एकता दीदी के सीरियल में बहुत अनेकता दिखती है। यमराज को सैक कर टीवी लोक में जीवन-मृत्यु का ठेका तो इन्होने ले ही रखा है साथ ही भाषा और साहित्य में भी चार चाँद लगा देती हैं।


कभी ये मुहूर्त का वक़्त ही बिता देती हैं तो कभी भविष्य में आने वाली पीढ़ी की चिंता करने लगती हैं। अब भैय्या मुहूर्त तो वक़्त ही है... और आने वाली पीढी तो भविष्य में ही होगी... परन्तु दीदीजी मानती ही नहीं हैं। और हम ने उनको इलेक्ट्रोनिक चिट्ठी लिख कर ये सब बातें बताई तो जवाब का दी, "अभी हमारे पास जो स्क्रिप्ट-रायटर हैं उन्ही से काम चला लेते हैं। जब सीरियल में व्याकरण पढ़ाने की जरूरत महसूस होगी तो आपको बुला लेंगे।"

फिर हम भी चुप-चाप बैठ गए। लेकिन उस रात तो उन्होंने संस्कृत की एक प्रसिद्द सूक्ति की कान ही उमेठ ली। एक धारावाहिक की बहुत पढी-लिखी संभ्रांत नायिका कक्षा में श्याम पट्ट पर "यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः !" लिख कर छात्रों को पढ़ा रही थी। हमने कहा लो... अब उपनिषद भी दीदी की अनेकता का शिकार हो गया.... ! जो भी हो हमें भी घर की औरतों के बीच बांह पुजाने का मौका मिल गया.... ! बिना वक़्त गंवाए मैं ने कहा, "इन्होने गलत लिखा है। यह होना चाहिए, "यात्रा नार्यस्तु पूज्यन्ते.... !" लेकिन मेरे दिल के अरमां आंसुओं में ही बह गए।

तुम एक नंबर के सीरियल किलर हो..... (स्सस्सस्स..... जरा धीरे पढियेगा। ये वो वाले सीरियल किलर की बात नहीं कर रही हैं !) छोटी-छोटी बातों में यूँही खोंट निकाल के सीरियल का मजा किरकिरा कर देते हो.... देखा तुमने प्रतीज्ञा की साड़ी पर इयरिंग कितनी मैच कर रही थी।
प्राईम-टाइम में तो महिलाओं पर पी सी सरकार का जादू भी न चले... मेरी क्या बिसात थी ? झटक दिए गए, "तुम एक नंबर के सीरियल किलर हो..... (स्सस्सस्स..... जरा धीरे पढियेगा। ये वो वाले सीरियल किलर की बात नहीं कर रही हैं !) छोटी-छोटी बातों में यूँही खोंट निकाल के सीरियल का मजा किरकिरा कर देते हो.... देखा तुमने प्रतीज्ञा की साड़ी पर इयरिंग कितनी मैच कर रही थी।

हम ने कहा लो भई.... हम भी किस के आगे बीन बजाने चले गए.... ! खैर सही हो या गलत नायिका तो श्लोक कह के निकल गयी पर मैं सोचने लगा, "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः" ! अर्थात जहाँ औरतों की पूजा होती है वहां देवता रमन करते हैं ! लेकिन मुझे आज तक यह समझ नही आया कि आख़िर देवता लोग वहाँ क्यूँ रमन करते हैं ?? पूजा तो औरतों की है ! वहाँ देवताओं का भला क्या काम ? बहुत कोशिश के बाद भी मुझे कुछ भी संतोषप्रद जवाब नहीं मिला.... हो सकता है बुरबकचंद बी.ए. पास और चौपटनाथ चारो-वेदवाला के मध्य हुए संवाद से आपको कुछ तथ्य मिल जाए !

अथ श्री बुरबकचंद बी.ए. पास च चौपटनाथ चारो-वेदवाला मध्ये "त्रिया चरित्र" विषयक शास्त्रार्थ विनियोगः
बुरबकचंद जी :- "नृपस्य चित्तं कृपणस्य वित्तं, त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम ! देवो न जानाति कुतो मनुष्यः !!"

चौपटनाथ चारो-वेदवाला :- भगवन को भले ही औरतों का चरित्र मालूम न हो पर मैं तो इतना दावे के साथ कह सकता हूँ कि औरतों के पेट में बात नही पचती !

बुरबकचंद जी :- (ठठा कर हँसते हुए) तो बात पचती है किसके पेट में ! अन्तर यही है कि पुरूष अपनी बात नही पचा पाते और औरतें दूसरों की !”

चौपट नाथ :- (कुछ झुंझलाते हुए) औरतों के पास दिमाग नाम की कोई चीज नही होती !

बुरबकचंद जी :- तो भैय्या दिमाग होता किसके पास है ? औरतों के पास दिमाग होता तो वे हम पुरुषों पर भरोसा क्यूँ करती और मर्दों के पास दिमाग होता तो वे शादी क्यूँ करते ?
चौपट नाथ :- (मन में ) आज बुरबकचंद जी कुछ ज्यादा ही होशियार हुए जा रहे हैं ! अब इन्हे उदहारण देकर समझाना पड़ेगा ! (प्रकट) औरतें टेलीविज़न की तरह होती हैं !
बुरबकचंद जी :- ना ! कतई नही !! दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है !
चौपट नाथ :- क्या फर्क है ?
बुरबकचंद जी :- सुन लीजिये,

"बीवी और टीवी में है फर्क इस तरह , चलती है दोनों पर टीवी के पैर नही !!
टीवी बिगरे तो चुप हो जाए, बीवी बिगरे तो खैर नही !!"

चौपट नाथ :- (मन में) ये बुरबकचंद का बच्चा तो पूरा स्पीड पकर चुका है ! अब इसे प्रश्नों के प्रहार से ही काबू में किया जा सकता है ! (प्रकट हो कर) तो आप औरत की तुलना किस से करते हैं ?
बुरबकचंद जी :- "मोबाइल" से !
चौपट नाथ :- सो कैसे ?
बुरबकचंद जी :- अव्वल तो यह कि जब भी कोई आदमी शादी करता है या मोबाइल खरीदता है तो बाद में इसीलिए पछताता है कि काश कुछ दिन रुक जाते तो कुछ और अच्छा मॉडल मिल जाता !

और भी समानता है दोनों में,
दोनों आपकी खुशी छीन लेती है !
बिना रुकावट बात जारी रखती है !
जब आप व्यस्त हों तो डिस्टर्ब करती है !
और जब इनकी सख्त जरूरत हो,
"देअर इज नो सर्विस"
कृपया कुछ देर बाद कोशिश कीजिये !!

आश्चर्य तो यह कि इतनी कठिनाइयों के बावजूद आदमी इन्हे छोड़ना नही चाहता !!
और जब ये छोड़ के जाती है, तो बहुत याद आती है !

आप उनके याद में रोते रहें, लेकिन वे भूल कर भी कभी याद नही करेगी !!
और आदमी की बदकिस्मती देखिये कि कुछ वक्त ग़म-ऐ-जुदाई में बिताने के बाद फिर से एक नयी मुसीबात पाल लेता है !!

(चौपट नाथ बगली झांकने लगते हैं तभी उन्हें सामने से काका हास्यरसी आते दीखते हैं !)
चौपट नाथ :- (मन में ही बुदबुदाते हैं,) बुरबकचंद पूरे रंग में है ! आज इस से पार पाना मुश्किल है ! (सामने से काका हास्यरसी को आते हुए देख कर खुशी से बोल उठते हैं ) काका जी, राम राम ! आइये आइये ! आज कुछ अपनी बानगी सुनाइये !!
बुरबकचंद :- अहा ! काका जी,
सुहाना मंजर है, साईकिल पंचर है !!
शाम खुशनसीब है ! शायर भी करीब है !!
तो क्यूँ न कुछ शेरो-शायरी हो जाए ??

(बुरबक चंद के मुंह से बात छिनते हुए चौपट नाथ बीच में ही शुरू हो जाते हैं )

चौपट नाथ :- अजी शाम से याद आया,
"फिर वही शाम वही ग़म वही तन्हाई है !
दिल को बहलाने तेरी याद चली आयी है !!"

(लेकिन शे'र पर दाद के बदले काका हास्यरसी कहते हैं)

काका हास्यरसी :- अमां यार ये शे'र तो हम बीस साल पहले अर्ज करते थे ! अब तो आलम यह है कि
"फिर वही रात वही रोटी वही तरकारी है !
कल एसिडिटी हुई थी आज डायरिया की बारी है !!"

-: इती संवादः :-
कुछ तथ्य मिला ... ? मिला या नहीं मिला... अब इस बतकुच्चन में क्या लगे हुए हैं ? देखिये कहीं रोटी-तरकारी भी न छूट जाए !!!

5 टिप्‍पणियां:

  1. थोड़ी विस्फोटक सी लगी अतः छिपकर पढ़ी ।

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  2. यहाँ दो तरह के लोग होते हैं। एक वो जो काम करते हैं और दूसरे वो जो सिर्फ क्रेडिट लेने की सोचते है।

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  3. मजेदार ढंग से अपनी बात कही है..हांलांकि चुटकुले पुराने हैं पर कहने का अंदाज़ अच्छा है

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  4. अच्छा हास्यरस से सराबोर किया है। मजेदार है।
    करण जी, आपकी चहुँमुखी प्रतिभा धीरे-धीरे सामने आ रही है। नए नए क्षेत्रों में आपकी कलम प्रवेश कर रही है। आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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