आओ बात करें बस हिन्दुस्तान कीज्ञानचन्द ’मर्मज्ञ’ |
बनारस की रसमयी धरती के सपूत श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ समकालीन कविता में एक अमूल्य हस्ताक्षर के रूप में उभरे हैं। जन्म से भारतीय, शिक्षा से अभियंता, रोजगार से उद्यमी और स्वभाव से कवि, श्री मर्मज्ञ अपेक्षाकृत कम हिन्दीभाषी क्षेत्र बेंगलूर में हिंदी के प्रचार-प्रासार और विकास के साथ स्थानीय भाषा के साथ समन्वय के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। लगभग एक दशक से हिंदी पत्र-पत्रिकाओं की शोभा बढ़ा रहे ज्ञानचंद जी की अभी तक एक मात्र प्रकाशित पुस्तक "मिट्टी की पलकें" ने तो श्रीमान को सम्मान और पुरस्कार का पर्याय ही बना दिया। श्री मर्मज्ञ के मुकुट-मणी में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी शलाका सम्मानजैसे नगीने भी शामिल हैं। मित्रों ! मर्मज्ञ जी जितने संवेदनशील कवि हैं उतने ही सहृदय सज्जन ! आप चाहें तो +91 98453 20295 पर कविवर से वार्तालाप भी कर सकते हैं !!! ना हिन्दू ना सिख ना मुसलमान की,आओ बात करें बस हिन्दुस्तान की। अपनी मिट्टी से अपनी पहचान की, आओ बात करें बस हिन्दुस्तान की।। देख मुखौटों वाले चेहरे, मानवता गड़ गई शर्म से, धर्म किसी का कभी भी नहीं, बड़ा हुआ है राष्ट्रधर्म से, मातृभूमि की पूजा है भगवान की। आओ बात करें बस हिन्दुस्तान की।। वो जो प्यार के फूल मसल कर, नफ़रत के कांटे बोते हैं, इक दिन ऐसा भी आता है, बैठ अकेले वो रोते हैं, चलो बचा लें कुछ ख़ुश्बू इंसान की। आओ बात करें बस हिन्दुस्तान की।। गंगा की लहरें गाती हैं, भाईचारे के गीतों को, दूर कहीं से कोई पुकारे, सद्भावों के मनमीतों को, रंग ले आओ किरणें नए विहान की। आओ बात करें बस हिन्दुस्तान की।। सूनी आंखें, लाल है मंज़र, मन मैला हाथों में खंज़र, द्वेष-राग फल फूल रहे हैं, विश्वासों के खेत हैं बंजर, कितनी कम है क़ीमत दुर्लभ जान की। आओ बात करें बस हिन्दुस्तान की।। काली रातों को समझाना, शान्ति-प्रेम के दीप जलाना, ताक़त एक, एकता ऐसी, नामुमकिन है हमें हिलाना, इतनी भी औकात नहीं तूफान की। आओ बात करें बस हिन्दुस्तान की।। |
सोमवार, 23 अगस्त 2010
आओ बात करें बस हिन्दुस्तान की
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बहुत ही अच्छी कविता . आभार....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंज्ञानचन्द ’मर्मज्ञ’ ने बहुत बढ़िया गीत रचा है !
जवाब देंहटाएंइसे पढ़वाने के लिए आपका आभार!
आपका संदेश फैलता जाये,फैलता जाये ।
जवाब देंहटाएंबहुत ओजपूर्ण गीत। रचनाओं राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत है।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!
राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।
बहुत खूब भईया ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक ने हटा दिया है.
जवाब देंहटाएंकहीं-कहीं मात्रादोष के बावजूद कविता में रवानगी है. सन्देश बहुत ही सार्थक और समीचीन हैं, जो पाठकों के मनः-मष्तिष्क में राष्ट्रीयता की भावना को उद्वेलित करते हैं. मैं स्वयं को कुछ अधिक भाग्यवान महसूस कर रहा हूँ क्योंकि उम्मीद है कि प्रस्तुत कविता श्री मर्मज्ञ जी के सुरीले कंठ से मुझे सुनने को भी मिलेगी !!! ब्लॉग पर सहयोग और इतनी अच्छी रचना से पाठकों के अमूल्य समय के साथ न्याय करते हुए मनोरंजन करने के लिए कोटिशः साधुवाद !!!
जवाब देंहटाएंदेश प्रेम की भावना से ओत्-प्रोत रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव से सजी अच्छी कविता ...
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत भावपूर्ण गीत है। यह गीत जन-मन में देशप्रेम की भावना जगाने में सफल होगा, ऐसी आशा है। कहीं कम कहीं अधिक मात्राएं प्रवाह में बाधक हैं। हालाकि गायन में स्वर को अधिक लम्बाई देकर इसे खपाया जा सकता है तथापि यह काव्यगत दोष तो है ही। फिर भी, ज्ञानचन्द जी की भावनाएं तो हम सब तक सम्प्रेषित हो ही रही हैं। मैं आपकी भावनाओं का आदर करता हूँ। आशा है आप मेरी टिप्पणी को अन्यथा नहीं लेंगे।
जवाब देंहटाएंआभार।
कविता रामधारी सिंह दिनकर के समय की ओजपूर्ण कविताओं की याद दिलाती है... मंचीय कविता के भी गुण हैं इनमे.. बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंहम भी पढ़ चले।
जवाब देंहटाएंना हिन्दू ना सिख ना मुसलमान की,
जवाब देंहटाएंआओ बात करें बस हिन्दुस्तान की।
अपनी मिट्टी से अपनी पहचान की,
आओ बात करें बस हिन्दुस्तान की।।
बिलकुल सही सहमत आपसे !
अच्छी रचना!!!!!!!!!!!!! क्या अंदाज़ है बहुत खूब
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकानाएं !
समय हो तो अवश्य पढ़ें यानी जब तक जियेंगे यहीं रहेंगे !
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_23.html
सुंदर गीत पढवाने के लिये आभार आपका.
जवाब देंहटाएंरामराम
बहुत सुंदर प्रस्तुति.धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसच बात है, बात हिन्दुस्तान की ही होनी चाहिये।
जवाब देंहटाएंमर्मज्ञ जी, ई कबिता का सबसे बड़ा बिसेसता इसका सरलता है... बचपन में जईसे इस्कूल में बच्चा लोग को पढा दिया जाता था वैसे ही ई कबिता भी राष्ट्रप्रेम का भावना से ओतप्रोत त हइये है, साथ ही गेय भी है. हमको लगता है आप मन ही मन गाते गाते कोई धुन के आधार पर ई कबिता लिखे हैं. इसलिए ई गीत जादा लगता है हमको. बहुत अच्छा संदेस देने वाला कबिता अऊर आसानी से जुबान पर चढ जाने वाला है..
जवाब देंहटाएंराष्ट्रप्रेम और शाश्वत मूल्यों पर बल देना हर युग की ज़रूरत रही है।
जवाब देंहटाएंआदर्श नागरिक ही सजग राष्ट्र के प्राण होते हैं। हमारे भीतर मूल्यों का जिस क़दर क्षरण हुआ है,उसकी ओर सामयिक संकेत और आग्रह करते हुए आपने विवशता और व्याकुलता का सुंदर समन्वय किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाये.....
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंरक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
भावना प्रधान गीत है लेकिन गेयता के सम्बन्ध में करण समस्तीपुरी और हरीश जी से सहमत हूँ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
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