शनिवार, 5 मार्च 2011

खट्टर पुराण - प्रथमो अध्यायः


अथ श्री खट्टर पुराण - प्रथमो अध्यायः

नमस्कार मित्रों !

आज है शनिवार और मैं हूँ फुर्सत में। शास्त्रों में कहा गया है, 'काव्य-शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धिमिताम् !' एक समय मिथिला में एक ऐसे ही HMJHA.jpg
प्रत्युत्पन्नमति विभूति हुए थे खट्टर काका। 'काव्य और शास्त्र से विनोद' ही उनका प्रिय कौतुक था। आज-कल मैं भी खट्टर-पुराण के अध्ययन-अनुशीलन से अपना मनोरंजन कर रहा हूँ। खट्टर काका से आपका परिचय आलरेडी हो चुका है इस ब्लॉग पर। उनका व्यंग्य कहीं-कहीं इतना नुकीला हो गया है कि आलोचकों का अंतःकरण तक तिलमिला उठता है। मैं फिर दुहराना चाहता हूँ कि खट्टर काका की रचनाओं का मूल स्वर है रुढियों पर प्रहार और सामजिक विद्रूपताओं को शास्त्र की आड़ लेकर नग्न करना। खट्टर-पुराण के परिचय के बाद आज पढ़िए, इसका प्रथम अध्याय !! -- करण समस्तीपुरी

सत्यनारायण पूजा

खट्टर काका भंग के लिए सौंफ और काली मिर्च चुन रहे थे. मैं ने कहा- खट्टर काका, आज मेरे घर पूजा है आइयेगा !
खट्टर काका- कैसी पूजा ?
मैं- आज हमारे घर सत्यनारायण जी की पूजा है !
खट्टर काका- सच ?
मैं- सच नही तो मैं आप से क्या झूठ बोलूँगा ?
मुझे मुंह देखते हुए पाकर खट्टर काका ने कहा - जी, मुझे तो संदेह होता है कि सत्य के नाम पर कहीं असत्य .... !
मैं ने बात को बीच में काटा- खट्टर काका, सत्यनारायण महाराज के विषय में ऐसी बातें मजाक में भी नही करनी चाहिए। नही तो ... !
खट्टर काका- नही तो वे क्रोधित हो जायेंगे। अनिष्ट कर देंगे। जैसे उन्होंने क्रुद्ध हो कर महाजन को बंधवा दिया था। यही ना ? अगर गलती से भी वे ऐसे दुष्ट हैं तो फिर नर और नारायण में क्या अन्तर ?
मैं- लेकिन जो उनकी पूजा करता है उसे फल भी तो देते हैं।
खट्टर काका- तो फिर ये कहो कि वे खुशामदी हैं। जो उनका दरबार करेगा उसका उपकार करेंगे और जो नही करेगा उसे किसी बहाने सतायेंगे। फिर भगवान् और बबुआन में क्या फर्क हुआ ?
मैं- भगवान् की प्रभुता अनंत है।

खट्टर काका- लेकिन, यदि सत्यनारायण की कथा अगर सत्य है तो उनका हृदय बहुत ही संकीर्ण है। बेचारा महाजन पूजा करना भूल गया तो चोरी का झूठा इल्जाम लगा कर सिपाहियों से पकरवा दिया। और ऐसे प्रपंच करने वाले को तुम कहते हो, "सत्यनारायण" !
मैं- मैं क्या पूरी दुनिया कहती है।
खट्टर काका - इसीलिए तो मैं दुनिया को पागल कहता हूँ। अजी मैं कहता हूँ कि नारायण ख़ुद नकली भेष धारण कर के एक अवला के साथ छल करने गए तो असत्य नही हुआ और बेचारा महाजन अपने धन की रक्षा के लिए अगर कह दिया की नाव में लता-पत्र इत्यादि है तो असत्य हो गया। ये कैसा न्याय है ?

मैं- खट्टर काका, "हरि अनंत हरि कथा अनंता" !
खट्टर काका- हाँ ! कथा तो अनंत है ही। तभी तो महाजन को बंधबा भी दिया और जब उसकी बेटी ने चढावा चढाया तो मुक्त भी करा दिया। ये तो भगवान् क्या हुए, जमींदार हो गए।

मैं- खट्टर काका - उन्होंने आदर्श दिखाया है।


खट्टर काका सौंफ को साफ करते हुए बोले- सुनो ! कलावती दूसरे के घर रात भर इनकी पूजा देखते रही, सो तो इन्हे खूब पसंद आया लेकिन एक बार बेचारी जल्दी में प्रसाद लेना भूल गयी तो उसके पति को ही डुबो दिया। अगर वह युवती अपने पति का आगमन सुन कर दौर पड़ीं तो इसमे इनके ऊपर कौन सा पहाड़ टूट पड़ा ? ऐसा जलन तो बॉयफ्रेंड को भी नही होता है !
मैं- खट्टर काका ! आप भगवान की तुलना इंसान से क्यूँ करते हैं ?
खट्टर काका- अरे इंसान रहते तब तो ठीक ही था। इन्होने तो बिकाऊ आदमी का भी नाक-कान काट लिया। "मेरी पूजा करो तो सुख-संतति-सौभाग्य सब मिलेगा और नही तो जिंदगी भर आंसुओ के घूँट पीने पर मजबूर कर दूंगा" ! ना खुश होते देर ना रुष्ट होते देर। ऐसा जल्दबाज कहीं आदमी हुआ है।
मैं- खट्टर काका ! आप ऐसे क्यूँ बोलते हैं ?
खट्टर काका- कैसे नही बोलूं ? पहले तो निर्दोष बनिए को दामाद सहित बंधवा दिया और जब कलावती की कला के वशीभूत हुए तो उलटा चन्द्रकेतु पर ही बिगड़ गए। स्वप्न दिया कि अहले सुबह दोनों ससुर दामाद को यथोचित विदाई के साथ ससम्मान छोड़ दो अन्यथा राज-पाट सब के साथ तेरे बेटे का भी संघार कर दूंगा !" जैसे घुसखोर दरोगा भय दीखता है कि "दो नही तो जेल में ठूस दूंगा, फांसी करवा दूँगा, लुटवा दूंगा ... ! जिसने हाकिम को नजराना दिया उसका सौ खून माफ़ और जिसने नही दिया वो फांसी पर चढ़े। और ऐसे चरित्र को तुम कहते हो सत्यनारायण कथा ! नारायण ! नारायण !!


मैं ने कान बंद करते हुए कहा- खट्टर काका ! भगवान् की ऐसी निंदा नही करनी चाहिये।
खट्टर काका- मैं भगवान् की निंदा कहाँ करता हूँ ? मैं तो उनकी आलोचना करता हूँ जो ऐसी कहानी गढ़ कर भगवानके नाम को बदनाम करते हैं। इस कथा में शुरू से अंत तक भगवान की छलक्षुद्रता और स्वार्थपरता दिखाई गयी है। सुनने पर यही लगता है कि भगवान अव्वल दर्जे के लोभी, दुष्ट और ईर्ष्यालु थे। ऐसी कथा से लोगों में भक्ति क्या आयेगी ? बल्कि जो भक्त हैं वो भी अभक्त हो जायेंगे।


मैं- खट्टर काका ! कथा सुन कर लोगों को भय होता है।
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खट्टर काका- इसीलिए तो कथा रची गयी है। सत्यनारण की पूजा करो नहीं तो शनि की तरह पीछे पड़ जाएंगे। बारह वर्षों तक ख़ाक छानते फिरोगे। उन्हें प्रसाद चढाओ नहीं तो ऐसे निगल जायेंगे जैसे राहू सूर्य को निगल जाता है। जैसे बनिया को बंधवा दिया उसी तरह तुम्हे भी बंधवा देंगे। जैसे भगवान ना होकर शैतान गो गए ! ऐसे भगवान् से लोगों को प्रेम क्या होगा ?
मैं- खट्टर काका,'भय बिनु होंहि ना प्रीति !'
खट्टर काका- ये प्रीति नही भीति ! मेरे एक फूफा थे, लुत्ती झा। बहुत गुस्सैल जलपान में ज़रा से देर क्या हुई, पूरे घर में हड़कंप मचा देते थे। एक बार तो फुआ की नाक खाने पर ही उद्धत हो गए। मगर जैसी ही आगे में चूड़ा-दही-चीनी आया एकदम गदगद हो कर फुआ से पूछे कि, बताओ इस दिवाली पर कौन कौन से गहने चाहिए ? इसीलिए मैं जब भी सत्यनारायण की कथा सुनता हूँ, मुझे लुत्ती फूफा याद जाते हैं। ऐसे देवता को अराधना बहुत कठिन है।
मैं- लेकिन उस कथा में यह भी तो कहा गया है कि पूजा से क्या क्या लाभ होता है।
खट्टर काका भांग का गोला बनाते हुए बोले- कथा क्या बीमा कंपनी का विज्ञापन है।
दुःखशोकादिशमनं सर्वत्र विजयप्रदम् !
धन्यधान्यसंततिकरम् सर्वेषाभिप्सितप्रदम् !!
एक लकड़हारे ने पूजा किया तो उसे बिक्री में दोगुना लाभ हुआ। एक ब्रह्मण दरिद्र से धनिक हो गया। एक महाजन के घर बेटी का जन्म हुआ। एक राजा के घर बेटा पैदा लिया। यही है ना चारो कथा का सारांश ? अरे, ये सारी बातें तो संसार में रात दिन होते रहती है। चाहे लोग पूजा करे या ना करे। यंही अब्दुल्ला मियां ने कब सत्यनारायण कथा करवाया, जो उसके घर दर्जनों बेटे बेटियाँ हैं। और यहीं मुसाई झा हर महीने पूजा करते थे लेकिन घर में एक मुसरी भी पैदा नही हुई। नयनमणि झा जीवन भर पूजा करते करते मर गए लेकिन छप्पर पर फूस नही चढ़ा और और यहीं पर दमड़ी साहू लकड़ी के रोजगार से दो वर्ष में ही पक्का मकान का मालिक बन गया। लकड़हारे को सत्यनारायण की कृपा से दोगुना लाभ हुआ और दमड़ी साहू को चोरनारायण की कृपा से दसगुना लाभ हुआ। अब तुम्ही कहो कि कौन ज्यादा तेज़ हुआ ?

मैं- खट्टर काका, पूजा से केवल लौकिक ही नही परलौकिक लाभ भी है।
खट्टर काका- हाँ सो तो है ही। जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी। आख़िर पक्का दलाल जो ठहरे।  कहते हैं,
धनधान्यसुतारोग्यादाता मोक्ष्प्रदस्तथा !
किंचिद्विद्यते लोके यन्न स्यात्सत्यपूजनात !!
रुपया पैसा से लेकर मोक्ष तक, ऐसी कोई भी वस्तु नही, जो इस पूजा से प्राप्त ना हो। लकड़हारे ने पूजा किया और बैकुंठ का अधिकारी हो गया।
इह लोके सुखं भूत्वा चांटे सत्यपुरं ययौ !
व्यक्ति एक बार सत्यनारायण की कथा सुन ले और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाए।
यत्कृत्वा सर्वदुखेभ्यो मुक्तो भवती मानवः !
अरे, मोक्ष की प्राप्ति अगर इतना ही आसान होता तो गाँव का गाँव अभी तक जीवनमुक्त हो चुका होता। कहीं भी दुःख का नामो निशान नही होता !
मैं- तो आप ये कहना चाहते हैं कि कथाकार ने इसमें झूठ लिखा है ?
खट्टर काका- मुझे तो यही देखने में रहा है। आदि से अंत तक तो यजमान को फांसने को लिए झूठ ही झूठ भरा हुआ है। जैसे हम बच्चों को फुसलाते हैं कि बेटे कान छेदा लो तो गुड़ मिलेगा, मिसरी मिलेगी, किशमिश मिलेगा। उसी तरह इस कथा में भी लुभाया गया है, "पूजा कर लो तो बेटा होगा, बेटी होगी, धन मिलेगा, स्वर्ग मिलेगा... !" बस लोभीशिरोमानी लोग भक्तराज का अवतार ले लेते हैं। लेकिन मैं तो नही वैसा लोभी हूँ और ना ही बच्चों वाली बुद्धी रखता हूँ !

मैं- तो आपके अनुसार जो सत्यनारायण पूजा करता है उसकी बुद्धी बच्चों वाली होती है?
खट्टर काका- एक बार मैं सोनपुर मेला गया था। वहां रंग विरंगे खिलौने सजे थे। "सस्ता वाला गया ! जापान वाला गया ! हाथी ले लो, दस रुपैये में ! घोड़ा ले लो दस रुपैये में ! मोटर ले लो दस रुपैये में ! हरेक माल दस रुपैये में!" चारो तरफ़ से लोगों का झुंड टूट पड़ा। मेरे साथ भी एक बच्चा था। उसने एक घड़ी खरीद ली और मुझे बोला, देखिये काका जी, "मैंने सिर्फ़ दस रूपये में घड़ी खरीद ली।" लेकिन जैसे ही घड़ी कलाई में बांधने लगा, कि रबर का फीता फट से टूट गया और गोल कटा हुआ कागजी डायल केश नीचे गिर गया। मैंने कहा- देखो, दस रूपये की घड़ी ऐसी ही होती है. नकली माल के चक्कर में नही पड़ना चाहिए ।" इसी तरह दो चार बाल्टी केला और गुड़ घोल कर उसके बदले में स्वर्ग और मोक्ष की कामना करने वाले मनुष्य की बुद्धि और उस बच्चे की बुद्धि में मुझे कुछ विशेष अन्तर तो नही मालूम पड़ता

मैं- खट्टर काका, अगर सत्यनारायण की कथा में कोई तत्व नही है तो फिर लोक में इसका इतना प्रचार क्यूँ है ?
खट्टर काका- क्योंकि अधिकाँश लोग लोभी और मुर्ख होते हैं। लोग चाहते हैं कि कम खर्च में, कम समय में, कम प्रयास में सारा काम हो जाए।
स्वल्पश्रमैराल्पवित्तैराल्प्कालैश्च सत्तम !
यथा भवें महापुण्यं तथा कथय सूत नः !!”
इसीलिए ना !! कोई माल वाला पहुँच जाता है ! एक आदमी किसी तरफ़ से बोल देता है,
सत्यनारायणस्यैतत वरतम सम्यग्विधामातः !
कृत्वा सद्यः सुखं भुक्त्वा परत्र मोक्षमलभेत !!
फिर सब के सब लगते हैं आँख मूंद कर उसी के पीछे दौड़ने। ऐसा सस्ता सौदा और कहाँ मिलेगा ? सवा रुपये में मोक्ष इसीलिए यहाँ भी कागज़ वाली घड़ी जैसी बात हो जाती है। सो भई, मैं तो ऐसे सस्ते मोक्ष से तौबा करता हूँ।

मैं- परन्तु लिखा है कि यदि पूजा का फल नही मिले तो समझना चाहिए की पूजा विधिपूर्वक नही की गई !
खट्टर काका- यही तो चालाकी है। कंडिशंस अप्लायड  यदि तंत्र मंत्र सफल नहीं होगा तो तांत्रिक कहेंगे कि प्रयोग में कहीं त्रुटी हुई है। लेकिन सत्यनारायण कथा में ऐसी चालाकी कैसे चलेगी? उसमे बताये गए विधान से तो लोग पूजा करते ही हैं।
रम्भाफलं घृतं क्षीरं गोधूमस्य चूर्णकं !
अभावे शालिचूर्णम वा शर्करा गुडं तथा !!
पका केला, घी, दूध, शक्कर, गुड, गेहूं का आंटा अगर वो भी हो तो चावल का आंटा ही सही। जिस ब्रह्मण ने यह विधान बनाया सो था बड़ा स्वाद लोलुप मेरे जैसा ही मधुर प्रेमी अच्छा प्रसाद बनवाया हाँ तो मैं कह रहा था, प्रसाद... ! तो लोग प्रेमपूर्वक प्रसाद ग्रहण करें, नाच-गान हो, और भगवान् का स्मरण करते हुए सभी अपने अपने घर को जाएँ. बेचारे ब्रह्मन ने खूब तरीका सुझाया और अंत में अपना जुगार भी लगा लिया
विप्राय दक्षिणाम् दद्यात नृत्यगीतादिक चरेत् !
एवं कृते मनुष्याणां वांछासिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् !!
यजमान कि इच्छा पूरी हो या नही, पंडित जी की इच्छा तो तत्काल ही पूरी हो गयी।
मैं- खट्टर काका !  प्रसाद और नाच गान तो उपांग मात्र हैं ! असल चीज तो है भगवान की पूजा
खट्टर काका हंसने लगे ! बोले - भगवान की पूजा होती है सो तो भगवान ही जाने पर मुझे तो ये सब खेल तमाशा ही लगता है।
मैं- खट्टर काका !  इतने विन्यास से भगवान की षोडशोपचार पूजा आपको खेल तमाशा लगता है ?
खट्टर काका भंग का गोला निगल कर कहने लगे - भगवान की पूजा तुम लोग कैसे करते हो ? पहले आवाहन करते हो , "इहागच्छ" अर्थात यहाँ आइये फिर "इह तिष्ठ" अर्थात यहाँ बैठिये। फिर "पाद्यार्घः" अर्थात पैर धोइए। फिर हाथ मुंह धोने के लिए आचमनीयं
फिर स्नान करवा कर नए वस्त्र और नया जनेऊ पहना देते हो। फिर चंदन फूल-माला, धूप और कर्पूर के सुंगंध से उनका मन प्रसन्न करते हुए आगे मे नैवेद्य रख देते हो ! भोजन के बाद हाथ-मुंह धुला कर "पूजितोसि प्रसीद स्वस्थानं गच्छः" पढ़ते हुए जाने की घंटी बजा देते हो। जो सत्कार होना था सो हुआ अब अपने घर जाइए। आरती से घर का रास्ता दिखा देते हो ! ये सब खेल नही तो और क्या है ? मुझे तो इसमे काव्यानंद मिलता है

मैं- खट्टर काका, तो आप भगवान नर्मदेश्वर पर विश्वास नही करते हैं ?
खट्टर काका- नर्मदेश्वर का अर्थ मैं समझता हूँ, नर्म परिहास देने वाला अर्थात हंसी खेल वाले भगवान तुम लोग उनके साथ खेल करते हो। जैसे छोटी लड़कियां गुड्डे गुडिया का खेल खेलते हैं, उसी तरह तुम लोग भी सत्यनारायन भगवान के साथ समधी-समधी खेलते हो।
मैं- सो कैसे ?
खट्टर काका- देखो, समधी के आने पर जो सत्कार होता है वो सब भगवन को भी मिलता है। आसन, पानी, भोजन, फूल,माला, धोती, जनेऊ,पान, सुपारी। फिर अन्तर यही है कि शालिग्राम का स्नान तो चुल्लू भर पानी मे हो जाता है, धोती के बदले दो सूत से भी काम चल जाता है, और जो प्रसाद चढ्या जाता है, वो भी घर वालों के लिए ही बच जाता है। ऐसा पाहुन (अतिथि) भला कौन नही चाहेगा ? आधे घंटे मे सारा विधि-विधान कर के "अपने घर जाइए"। असली समधी देवता को ऐसे कहा जाए तो अनर्थ ही हो जायेगा। लेकिन भगवन तो किसी के समधी हैं नहीं। क्योंकि समधी का अर्थ होता है सामान बुद्धि वाला। अगर भगवान के पास भी भला इतनी ही बुद्धि होती तो इतनी बड़ी श्रृष्टि कैसे चलाते ?

मैं- खट्टर काका, ऐसे बोलियेगा तो लोग नास्तिक कहेंगे !
खट्टर काका- सो तो कहते ही हैं। लेकिन कौन आस्तिक है और कौन नास्तिक इसका निर्णय करने वाला कौन है ? जब मैं मोटे यजमानो को दोनों हाथ से प्रसाद का बड़ा सा पतीला उठा कर आधे पाव के शालिग्राम पर चढाते हुए देखता हूँ या गुलाबजामुन जैसे नर्मदेश्वर को पहनाने के लिए पंडित जी को बांह भर का जनेऊ गांठते हुए देखता हूँ तो सच मे मुझे इनकी बुद्धि पर तरस आती है। लेकिन बड़े बड़े पंडितों को यह समझ मे नही आता कि ये सब स्वांग मात्र है
मैं- तो अपने देश के पंडित लोग इस पर विचार क्यूँ नही करते हैं ?
खट्टर काका- इसका कारण है। अपने देश मे संस्कृत के छात्र लघुकौमुदी से शुरू करते हैं ओर "अहम् बरदराजभट्टाचार्यं" का ऐसा रट्टा मरते हैं कि उनकी बुद्धि मे ही गाँठ पर जाती है। फिर वो अपनी बुद्धि से कुछ सोच ही नही सकते। लेकिन ये सब बात बोलना मत वरना लोग मेरा काम तमाम कर देंगे।
मैं- खट्टर काका ! आपकी बात चिंगारी होती है।
खट्टर काका- इसीलिए तो किसी से मेरा मेल नही बैठता। हाँ, रम्भाफलं (केला), घृतं (घी), क्षीरं (दूध), गोधुमस्य(दही) चूर्णकम (चूरमा) की पर्याप्त व्यवस्था है ? "अभावे शालिचूर्णम" (अभाव मे चावल का चूर्ण ) तो नही करोगे ?
मैं- नही नही ! मालभोग केला का शीतल प्रसाद बनाया जायेग।
खट्टर काका- अहा ! तब तो मैं जरूर आऊंगा। कथा तो मालूम ही है। तीसरा संख बजते ही पहुँच जाऊँगा। मैं तो केवल प्रसाद के लिए ही पूजा मे जाता हूँ। सो मैं अपना बड़ा सा लोटा साथ लेके आऊंगा, अभी बता देता हूँ
(इतिश्री भारतखण्डे जम्बूद्वीपे खट्टरपुराणान्तर्गते प्रथमो अध्यायः सम्पूर्णं)
*****

11 टिप्‍पणियां:

  1. ...मैं तो केवल प्रसाद के लिए ही पूजा मे जाता हूँ. सो मैं अपना बड़ा सा लोटा साथ लेके आऊंगा, अभी बता देता हूँ !!
    --
    खट्टर पुराण पढ़कर हम तो आनन्द से सराबोर हो गये!

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  2. .

    मन चंगा तो कठौती में गंगा , इसी में विश्वास करती हूँ । खट्टर जी के तर्क मजेदार हैं लेकिन सवाल आस्था का है ।

    मैं भी शास्त्री जी की तरह 'प्रसाद' पाने कों उत्सुक रहती हूँ। पंजीरी और चरण-अमृत ..

    मस्त खट्टर पुराण के लिए आभार ।

    .

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  3. इति श्री जम्‍बूद्वीपे भरतखंडे ...

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  4. खट्टर काका की महिमा अपरम्पार है। उनके तर्क आसानी से कटने वाले नहीं हैं। ज्यादा देर तक उन्हें पढ़/सुन लिया जाए तो अपने विचारों की दिशा भी उधर ही मुड़ती सी लगने लगती है। प्रसाद तो मुझे भी चाहिए करण भाई। लोटा भी मेरे पास है। कथा कब है बस ये बताइए अब।

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  5. करण जी,
    यह ब्राह्मणों के लिए खतरापुराण कहाँ से उठाकर बाँचने लगे। जो भी हो इस पुराण का पाठ बड़ा ही रोचक और व्यंग्यपूर्ण है। आभार।

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  6. eh...ha..ha..ha......

    moon prasanna bhai gel.....ehi srinkhla ke.....avrit diyou karanji.

    sadar.

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  7. शानदार पोस्ट है...एकदम मस्त।

    जी खुस्स कर दिया आज तो :)

    वैसे ये खट्टर काका कुछ कुछ मेरे मिजाज से मिलते जुलते हैं.....मंदिर जाता हूं तो आधा ध्यान भगवान पर और आधा ध्यान जूतों पर रहता है.... इसलिये कभी कभी तो बिना जूतों के ही मंदिर जाता हूं :)

    और हां, लोग बचपन से ही सत्यनारायण की कथा सुनते चले आ रहे हैं लेकिन एक बार पूछा जाय कि बताओ सत्यनारायण की कथा क्या है तो जो जवाब मिलेगा वो बस सुनते ही बनता है :)

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  8. 'भय बिनु होंहि ना प्रीति अजी वो प्रीति ही क्या जो भय से हो?
    खट्ट्र बाबा की जगह मेरा नाम लिख दो..... मै भी ऎसी बकवास बातो पर यकिन नही करता, आस्था अपनी जगह

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  9. ज़बरदस्त है खट्टर काका और खट्टर पुराण ......

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  10. हंसी-हंसी में दुखती रग पर हाथ रखने का नाम थे खट्टर कका।

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आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।