रविवार, 24 जुलाई 2011

भारतीय काव्यशास्त्र – 76

भारतीय काव्यशास्त्र – 76

आचार्य परशुराम राय

पिछले अंक में अगूढ़ गुणीभूतव्यंग्य पर चर्चा की गयी थी। इस अंक में इसके दूसरे भेद अपरांग गुणीभूतव्यंग्य पर चर्चा की जा रही है। आचार्य मम्मट द्वारा इसकी परिभाषा निम्नलिखित रूप में दी गयी है-

अपरस्य रसादेर्वावाच्यस्य वा वाक्यार्थीभूतस्य अङ्गं रसादि अनुरणनरूपं वा (इति अपराङ्गम्)।

अर्थात् रस आदि अथवा वाक्य का प्रधान अर्थ अन्य वाच्य, रसादि अथवा संलक्ष्यक्रम व्यंग्य का अंग हो जाय, तो वहाँ अपरांग गुणीभूतव्यंग्य होता है। दूसरे शब्दों में जहाँ रस, रसाभास, भाव, भावाभास आदि एक-दूसरे के अंग हो जाँय, वहाँ अपरांग गुणीभूतव्यंग्य होता है।

यहाँ महाभारत की युद्धभूमि में भूरिश्रवा के कटे हाथ को देखकर विलाप करती हुई उसकी पत्नी की करुण उक्ति को उदाहरण के रूप में लिया गया है। यह श्लोक महाभारत के स्त्रीपर्व में आया है। इसमें यह दिखाया गया है कि एक रस के गुणीभूत होकर दूसरे रस का अंग बन जाने से किस प्रकार अपरांग गुणीभूतव्यंग्य हो जाता है-

अयं स रशनोत्कर्षी पीनस्तनविमर्दनः।

नाभ्यूरुजघनस्पर्शी नीवीविस्रंसनः करः।।

अर्थात् यह वही हाथ है जो रशना (करधनी) को खींचा करता था, पीन स्तनों का विमर्दन करता था और नीवी (नारे) के बन्धनों को खोला करता था।

यहाँ अयम् (यह) पद से कटे हाथ की तात्कालिक दशा की ओर संकेत है और सः पद से उत्कृष्ट (संभोग-रत) दशा का स्मरण है। यहाँ शृंगार रस करुण रस का अंग बनकर रह गया है, अर्थात् शृंगार रस गौण हो गया है। अतएव इसमें अपरांग गुणीभूतव्यंग्य है।

एक दूसरा उदाहरण लिया जा रहा है जिसमें एक रस गुणीभूत होकर भाव का अंग बन जाता है। इसमें प्रार्थना की गयी है कि माँ पार्वती के नखों की द्युति तुमलोगों की रक्षा करे-

कैलासालयभाललोचनरुचा निर्वर्त्तितालक्तकव्यक्तिः पादनखद्युतिर्गिरिभुवः सा वः सदा त्रायताम्।

स्पर्धाबन्धसमृद्धयेव सुदृढं रूढा यया नेत्रयोः कान्तिः कोकनदानुकारसरसा सद्यः समुत्सार्यते।।

अर्थात् माँ पार्वती के नखों की वह द्युति तुमलोगों की रक्षा करे, जो रूठी हुई माँ पार्वती को मनाने के लिए झुके भगवान शिव के तीसरे नेत्र से निकलने वाली लाल कान्ति से माँ पार्वती के चरणों पर पड़ने से महावर से रंगे प्रतीत हो रहे हैं और माँ पार्वती की क्रोध के कारण लाल आँखों की लालिमा उससे स्पर्धा में पराजित होकर विलुप्त हो गयी है, अर्थात् भगवान शिव को अपने सम्मुख नत देखकर माँ पार्वती का क्रोध दूर हो गया है।

यहाँ भगवान शिव और माँ पार्वती का शृंगार का वर्णन गुणीभूत होकर माँ पार्वती के प्रति भक्ति-भाव का अंग हो गया है। अतएव यहाँ अपरांग गुणीभूतव्यंग्य है।

निम्नलिखित श्लोक में एक भाव का गुणीभूत होकर दूसरे भाव का अंग बनने के कारण अपरांग गुणीभूतव्यंग्य दिखाया गया है। इसमें कवि ने राजा भोज के पराक्रम का वर्णन किया है-

अत्युच्चाः परितः स्फुरन्ति गिरयः स्फारास्तथाम्भोधयः

तानेतानपि बिभ्रती किमपि न क्लान्ताSसि तुभ्यं नमः।

आश्चर्येण मुहुर्मुहुः स्तुतिमिति प्रस्तौमि यावद् भुवः

तावद्विभ्रदिमां स्मृतस्तव भुजो वाचस्ततो मुद्रिताः।।

अर्थात् हे पृथ्वी, चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पर्वतों, वैसे ही विस्तृत समुद्रों को धारण करते हुए भी आप थकती नहीं, ऐसी धैर्य और साहसवाली (हे पृथ्वी), आपको नमस्कार है। इस प्रकार आश्चर्य-चकित होकर जब मैं बार-बार पृथ्वी की स्तुति कर रहा था तभी इस पृथ्वी को भी धारण करनेवाली आपकी (राजा भोज की) भुजा की याद आ गयी और मेरी वाणी रुक गयी।

यहाँ कवि की माता पृथ्वी के प्रति रति-भाव (रसाभास) राज विषयक रति-भाव (भावाभास) का अंग है। अतएव इसमें अपरांग गुणीभूतव्यंग्य है, जिसमें रसाभास गुणीभूत होकर भावाभास का अंग हो गया है।

निम्नलिखित श्लोक में रसाभास का गुणीभूत होकर भावाभास का अंग बनने से अपरांग गुणीभूतव्यंग्य दिखाया गया है-

बन्दीकृत्य नृपद्विषां मृगदृशस्ताः पश्यतां प्रेयसां

श्लिष्यन्ति प्रणमन्ति लान्ति परितश्चुम्बन्ति ते सैनिकाः।

अस्माकं सुकृतैर्दृशोर्निपतितोSस्यौचित्यवारान्निधे

विध्वस्ता विपदोSखिलास्तदिति तैः प्रत्यर्थिभिः स्तूयसे।।

अर्थात् हे राजन, आपके सैनिक आपके शत्रुओं की मृगनयनी पत्नियों को बन्दी बनाकर उनके पतियों के सामने उनका आलिंगन करते हैं, प्रणय-निवेदन करते हैं, चारों ओर से पकड़ कर उनका चुम्बन करते हैं, फिर भी उनके पति आपकी स्तुति करते हुए कहते हैं- हे औचित्य के सागर, हमारे पिछले जन्म के पुण्य के प्रताप से हमें आपके दर्शन मिले हैं जिससे हमारी सम्पूर्ण विपत्तियाँ नष्ट हो गयी हैं।

यहाँ सैनिकों का परस्त्रीविषयक रति शृंगाराभास है जो राजा के प्रति कवि का भक्ति-भाव (भावाभास) का अंग हो गया है। अतएव इस श्लोक में रसाभास का भावाभास का अंग हो जाने से अपरांग गुणीभूतव्यंग्य की सृष्टि हुई है।

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6 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय काव्यशास्त्र को समझाने का चुनौतीपूर्ण कार्य कर आप एक महान कार्य कर रहे हैं। इससे रचनाकार और पाठक को बेहतर समझ में सहायता मिल सकेगी। सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।

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  2. आचार्य जी!
    सर्वप्रथम, हमारे द्वार पर आपके पदार्पण से हम अनुगृहीत हुए.. आपकी पोस्ट पढाना वैसे भी एक शिक्षार्थी का अनुभव प्रदान करता है.. उदाहरण सहित व्याख्या और सरल शब्दों में विवेचना... यह सब एक सीखने की प्रक्रिया है हमारे लिए!!

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  3. आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!

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  4. अपरांग गुणीभूतव्यंग्य पर नवीन जानकारी प्राप्त हुई.
    आभार....

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  5. गहन विश्लेषण युक्त ज्ञानवर्धक प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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