सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

किरणों की आहट से


किरणों की आहट से
श्यामनारायण मिश्र

एक और युग
    डूबा उथले में
तिनके कुछ काम नहीं आए।

संज्ञाएं
खेल रहीं नाटक संबंधों के।
परदों पर
नैन टिके सावन के अंधों के।
संहिताओं ने
घिसे संवाद दुहराए

मंचों से दूर
एक रोशनी
नए-नए छंद लिख रही।
गली-गली
गाने को कल
तोतली जुबान सिख रही।
किरणों की आहट से
    कोल्हू के बैल तिलमिलाए।

15 टिप्‍पणियां:

  1. किरणों की आहट से सारा विश्व गतिमान हो जाता है...सुन्दर रचना..

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  2. किरणों की आहट से
    कोल्हू के बैल तिलमिलाए !
    vaah bahut sundar ....

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  3. किरणों की आहट से सारा विश्व क्या प्रकृति भी जाग जाती है...बहुत सुन्दर...

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  4. संज्ञाएं
    खेल रहीं नाटक संबंधों के।
    परदों पर
    नैन टिके सावन के अंधों के।

    ....बहुत सुंदर प्रस्तुति....

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  5. अनावश्यक परम्पराओं और रुढ़िवादिता से विद्रोह का बिगुल है यह नवगीत। इसे पहले सुनने का अवसर नहीं मिला।

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  6. इन किरणों की आहात से जीवन चलायमान हो रहा है .. लाजवाब ...

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  7. किरणों की आहट से
    कोल्हू के बैल तिलमिलाए

    एक दूरंदेशी संदेश...

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  8. नये बिम्बों से किरणों की आहट , एक अनूठा चित्र
    वाह !!!!!!!!!

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