शनिवार, 19 मई 2012

फ़ुरसत में ...103 महानतम बनने का फॉर्मूला!


फ़ुरसत में ...103

 महानतम बनने का फॉर्मूला!

मनोज कुमार




सुनने में आया है कि महान लोग आत्मकथा लिख ही डालते हैं। ऐसा भी कहा जा सकता है कि आत्मकथा लिखी जाने के बाद व्यक्ति महानता को उपलब्ध हो जाता है. अब यह सच है या ग़लत, कहना थोड़ा कठिन है। हां, कुछ लोगों को तो मैं यक़ीनी तौर पर जनता हूं, जो पत्र लिख-लिख कर महान बन गए। .. और उनसे भी महानतम वे बने जो उन पत्रों को चुन-चुन कर इकट्ठा करते गए, उसका संकलन किया, उसकी समीक्षा  की, और उसका प्रकाशन करवा डाला – “इनका पत्र उनके नामशीर्षक से! उस व्यक्ति की प्रवृत्ति महानतम जासूसों से भी ज़्यादा तेज़ रही होगी, जिसने न जाने कहां-कहां से ढूंढ़-ढूंढ़ कर अनाम पत्र, गुमनाम पत्र, बेनाम पत्र, सुनाम पत्र, श्वेत पत्र, श्याम पत्र, जारी पत्र, बे-जारी पत्र, घोषित पत्र, अ-घोषित पत्र, प्रेषित पत्र, पोशित पत्र, यहां तक कि जो पत्र प्रेषित भी नहीं हुए थे, उनका भी अता-पता ढूंढ निकाला, और उन्हें भी अपने संकलन में डाल कर महानतम पत्र प्रकाशक होने का तमगा पाया।

कुछ महान हस्तियों के बारे में तो यह भी मशहूर है कि वे दिन में सैंकड़ों पत्र लिख डालते थे। उसको प्रेषित करने के लिए उनके पास पूरा दल-बल होता था। दुनिया के कोने-कोने में उनका पत्र चला जाता था। मगर उस खोजी का हौसला (महानता) देखिए कि उसने उन सारी जगहों से उन पत्रों बरामद कर इकट्ठा कर लिया।

आज जहां सक्रिय हूं, वह जगत जब चिट्ठा जगत कहलाता है, तो यहां की लिखी गई चीज़ें चिट्ठी टाइप ही कहलाएंगीं। चिट्ठी यानी पत्र। बस! मैंने सोचा कि मैं भी महान बन ही जाऊं। इसके लिए मैंने एक कार्य-योजना बनाई - पहले पत्रों की खोज करूँगा, फिर उनका संकलन करूंगा, और अंत में उन्हें प्रकाशित करवाकर महान भी बन ही जाऊंगा।

ऐसा नहीं है कि मैंने आज के से पहले महान बनने की कोशिश नहीं की या फिर महान घोषित नहीं किया गया था। बचपन से ही मेरी यह कोशिश ब-दस्तूर ज़ारी है। अपने छुटपन में जब मैं सोलर क्रिकेट क्लब से स्कूली क्रिकेट खेला करता था और उस समय जब कोई शानदार शॉर्ट मारा करता था, तो मेरी टीम का कोच मेरे उस प्रयास को ग्रेट! कह कर मेरी तारीफ़ किया करता था। और उसके हर इस शब्द पर जो वो केवल मेरे लिए कहता था मैं गावस्कर, सोबर्स और कन्हाई की पंक्ति में खुद को खडा पाता था।

 एम.एससी. की पढ़ाई के दौरान जब मैंने लाइट प्रोडक्शन इन इन्सेक्ट्स पर नोट्स बनाकर अपने प्रोफ़ेसर को दिखाया था, तो अभिभूत होकर उन्होंने मेरी उस कोशिश पर मुझे ग्रेट! कहा था। तब भी मैंने ख़ुद को डार्विन, खुराना और मेंडल के मार्ग पर चलने वालों में सबसे आगे पाया था। पिछले ढाई-तीन सालों की चिट्ठा जगत की अपनी सक्रियता में अपने चिट्ठों के कारण कई ऐसी टिप्पणियां हमने पाई हैं, जिन्होंने मुझे फिर से ग्रेट, या ग्रेट साहित्यकार ठहराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।

इतनी बात सुनने के बाद आपके मन में यह प्रश्न आना स्वाभाविक है कि आज अचानक फिर से यह महान बनने का फितूर मुझ पर क्यों सवार हुआ है? दरअसल किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि महान कोई एक दिन में नहीं बन जाता और महान कोई एक बार में नहीं बन पाता। उसे बार-बार बनना पड़ता है, बहुत बार बनना पड़ता है। बहुत-बहुत बार बनना पड़ता है।

मैंने अकसर देखा है कि जो महान होते हैं, उनको उनकी महानता के लिए कई पुरस्कार भी उन्हें मिलते हैं। वे महान लोग अपनी आत्मकथा में बताते है कि पुरस्कार मिलने की उनकी राह आसान नहीं रही है। कुछ ने तो इसे खुलासा करते हुए यह भी बताया है कि इस ग़ैर-आसान राह पर पहले टॉप 32, फिर टॉप 16, फिर टॉप 10 में शामिल होना पड़ता है। आज कल के कई रियालिटी शो में भी ऐसा ही होता है, चाहे वह लिटिल की महानता वाला शो हो या फिर ग़ैर लिटिल की। टॉप 10 से टॉप का सफ़र और भी मुश्किलों भरा होता है। टॉप टेन तक तो महान-मास्टर (ग्रेट मास्टर्स) उन्हें चुन देते हैं, उसके बाद उन्हें जनता की वोटिंग के भाग्य-भरोसे छोड़ दिया जाता है।

आज तक तो काग़ज़ और क़लम थे मेरे पास। उसी पर मुझे भरोसा था। लेकिन अब तो माँ है.. क्षमा करें से माउस, मेल और मेसेज हैं. आज क्लिक और टच-पैड का ज़माना है। अपुन तो पत्र वाले ज़माने के हैं (आउट डेटेड)। अब आज के ज़माने में पत्रों का संकलन निकालने की सोचते रहे हैं, जब ढूंढ़ने से भी कोई पत्र मिलने से रहा। इस ज़माने में तो संकलन का शीर्षक होना चाहिए इसका मेल उसके नाम, या प्रेमी-प्रेमिका की एस.एम.एस., या ट्विटर पर धुरंधर के धमाल, या फलां के सौ अपडेट्स सोशल साइट्स पर, या महान मोहन के सौ चैट्स। चैट्स से याद आया कल ही अपने एक परम-मित्र से चैट कर रहा था, तो उसने मुझसे कहा था, आज कल तुम्हारी महानता की धार कम होती जा रही है। मुझे उसकी बात सुनकर अजीब सा लगा। मैं ऐसा न तो सोच ही रहा था और न ही सोच सकता था। मेरे मन में प्रश्न कुलबुलाने लगा, ‘मेरे परम मित्र को मेरी महानता पर शंका क्यूं?’ मेरी शंका का निवारण करने हेतु उसने ही बताया, “तुम सलेक्टेड टॉप टेन महानतम की लिस्ट  में नहीं हो।यह सुनकर तो मेरे ऊपर दुनिया के टॉप टेन पहाड़ गिर पड़े। मुझे लगा मेरे सारे अरमान, मेरी सारी मेहनत, अब तक की अरज़ी मेरी सारी महानता पर दुनिया के टॉप टेन समुद्र का खारा पानी फिर गया।

मैं तो, ख़ुद को नेट पर लिखने वाला, लिखने से ज़्यादा उचित शब्द प्रतीत होता है योगदान देने वाला महानतम चिट्ठाकार समझ रहा था। अपने लेखन को साहित्य का अद्वितीय नमूना, धारदार, क्रान्तिकारी, आदि समझता था। हमारे पाठक मित्र (टिप्पाकार) भी आजतक हमें ऐसा ही बताते आए हैं। फिर क्या समस्या है? क्या कमी है मुझमें? कौन सी ग़लती की है  मैंने कि महान मास्टर ने मेरे चिट्ठा (ब्लॉग) को सलेक्टेड टॉप टेन की लिस्ट में शामिल करने लायक़ नहीं समझा। हमने अपनी इस समस्या की एक क़ाबिल और विश्वासपात्र मित्र से चर्चा की, तो उसने कहा, तेरे साथ तो ना-इंसाफ़ी हुई है।मेरी आदत है कि मैं एक के कहे पर विश्वास नहीं करता, खास कर तब जब वह बात मुझसे ही संबंधित हो। मैंने अपने एक विद्वान चिट्ठाकार (ब्लॉगर) से जानना चाहा कि ऐसी कौन सी समस्या है, ऐसा कौन सा दोष है जिसके कारण न तो मुझे और न ही मेरे चिट्ठा (ब्लॉग) को टॉप टेन के लायक़ समझा गया? उन्होंने विद्वतापूर्ण राय व्यक्त की, “तेरा लैपटॉप जहां रहता है, दोष वहां है। इसे वास्तु दोष कहते हैं। इसी कारण ऐसा हुआ है।मैंने पूछा, “इसका निवारण क्या है?” निवारण बताया, “तुम अपने लैपटॉप को पूरब और उत्तर के बीच की दिशा में रख दो, फिर ऐसे बैठो कि तुम्हारा मुंह पूरब की तरफ़ और हाथ उत्तर की तरफ़ हो, और तब ही टाइप करो। इस विधि का इस्तेमाल करने से तुम शर्तिया सलेक्टेड टॉप टेन मे शामिल हो जाओगे।

मैंने अपने वास्तुकार-शास्त्रज्ञ ज्योतिष चिट्ठाकार (ब्लॉगर) मित्र की सलाह पर न सिर्फ़ अपने और अपने लैपटॉप का वास्तु दोष दूर किया बल्कि उसके बताए इलेक्ट्रोनिक मंत्र के लिंक को भी ग्यारह बार क्लिक किया। उसके बाद उसके द्वारा चुने गए दस ब्लॉग पर एक सौ एक टिप्पणियों का दान देने के बाद ही अपने चिट्ठे (ब्लॉग) पर चिट्ठागिरी (ब्लॉगिंग) की। पर मामला वही ढाक के तीन पात वाला ही रहा। चौबीस घंटे बीत चुके थे। पहला परिणाम भी आ चुका था। मैं अब भी सलेक्टेड टॉप टेन की सूची से बाहर ही था। मेरा चिट्ठा (ब्लॉग) भी।

मैंने सोचा पहले मेरा चिट्ठा (ब्लॉग) सलेक्टेड टॉप टेन की सूची में आ जाए तो मैं भी तो आ ही जाऊंगा। इस दिशा में मुझे कुछ नया करना चाहिए। समय कम है। सबसे पहले मेरा ध्यान चिट्ठा (ब्लॉग) के शीर्षक पर गया। मुझे लगा हो-न-हो दोष इसी में है। हो भी क्यों नहीं, जब कोई अपने चिट्ठे (ब्लॉग) का नाम अपने नाम पर रख ले, तो उसके भाग्य का सारा दोष उसके चिट्ठे (ब्लॉग) पर तो चला ही जाएगा। मैंने सलेक्टेड टॉप टेन के नामों का ठीक से अध्ययन किया। तब मुझे लगा कि यदि चिट्ठे (ब्लॉग) का नाम महान हो तो चिट्ठा (ब्लॉग) अपने आप महान हो जाता है। मैंने भी चिट्ठा (ब्लॉग) के नामों के विकल्प पर ग़ौर करना शुरू कर दिया। फूटा प्लेट’, ‘जूठा पत्ता’, ‘कटी पतंग’, ‘उडती रेलगाड़ी’, ‘तोप का बारूद’, ‘ठंडी राख की चिंगारीआदि-आदि नाम ज़ेहन में आए। इतने से भी तसल्ली न हुई। मन में नामों का घमासान चल रहा था। एक ज़ोरदार शीर्षक रखने के चक्कर में हिंदी-अंगरेज़ी-उर्दू कोश के साथ-साथ विश्व कोश तक छान मारा। निर्णय नहीं ले पा रहा था कि चिट्ठा (ब्लॉग) का नाम व्यक्तिवाचक हो, या जातिवाचक, स्त्रीलिंग में हो या पुलिंग में या फिर उभय लिंगी ही हो। संज्ञा हो, सर्वनाम हो या क्रिया। तरह-तरह से छान-बीन की, जांच-पड़ताल की, कोई नतीज़ा सामने नहीं आ रहा था।

दिमाग पर और ज़ोर डाला, और विचारों को विस्तीर्ण करके सोचा... शीर्षक मार्क्सवाद से लूं, या प्रगतिशीलवाद से। गांधीवाद तो पुराना और आउट ऑफ फैशन हो चला है। ऐसे ही ऊहापोह में की स्थिति तब बनी थी जब मैंने अपनी पहली कविता लिखी थी। उस कविता से ही महान कवि हो जाऊं, इस मंशा से बहुत सोच-विचार और मंथन के बाद अपना कवि नाम/उपनाम/तखल्लुस मैंने - मनोज मनहूसरख डाला था। आज फिर वही संकट सामने था, और मुझे अपने चिट्ठा (ब्लॉग) का नाम बदलना था। बहुत सोच-विचार कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इसका नाम महान मनोज की महानता कर डालता हूं।

चिट्ठा (ब्लॉग) के शीर्षक बदलने में ख़ुद की उर्ध्वासन से शीर्षासन वाली स्थिति हो गई थी, पर अपनी क़िस्मत की अल्टी-पल्टी नहीं हुई। 36 घंटे बाद जो परिणामों की घोषणा ज़ारी की गई है उसके टॉप टेन के नामों में मेरा  दूर-दूर तक अता-पता नहीं था। अब? मैंने सोचा बहुत हो गया! अब मुझे एक धांसू पोस्ट लिख डालनी चाहिए। ज़रा हट के। ये प्रेरक कथा, ये ज्ञान के दर्शन, ये साहित्य की बातें, ये पुस्तकों का सारांश, ये चिंता में डालती कहानियां, ये चिंतन से उपजी कविताएं, ये काव्य समीक्षाएँ...  सब बेकार की चीज़ें हैं। मैंने अपना शातिर दिमाग़ दौड़ाया, तो पाया कि धरती पर चलने वाला सबसे ऊंचा जीव तो ऊंट है और उसकी टांग न सिर्फ़ इतनी लंबी होती है कि वह सबके फटे में अड़ाते हुए पाया जाता है, बल्कि उसमें इतनी ताक़त होती है कि वह रेगिस्तान की जलती रेत में भी दौड़ लगाता है, तो मैंने सोचा क्यों न कुछ ऐसा ही अर्थात “ऊंट-पटांग” चीज़ लिखी जाए। यह ख़्याल मन में आते ही मैंने पाया कि मेरे पास न तो विकल्पों की कमी है और न ही विषयों की। और इस विचार मात्र से ही मेरा विश्वास ऊंट सा ऊंचा हो गया। मैं लोगों की टांग खींचने को और अपनी कलम की टांग तोड़ने को तैयार था। इस बार तो मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास हो गया था कि मैं यह करिश्मा (सलेक्टेड टॉप टेन के नामों में आने का) कर सकता हूं।

सबसे पहले मैंने अपने गणित के गुरु का स्मरण किया और उनके बताए सारे जोड़, घटा, गुणा, भाग के सूत्रों का पुनर्स्मरण किया। इसके बाद मैंने अपने सारे समीपस्थ-दूरस्थ दोस्तों के साथ अपने संबंधों की ऐसे गणितीय सूत्रों की मदद से व्याख्या करते हुए इस चिट्ठा जगत को अपना अनुपम मानसिक योगदान दिया, जिसका जवाब किसी के पास होने की संभावना नहीं थी। इस क्रम में  मैंने जो सूत्र पाया वह इस प्रकार का था :-

क+क-क×÷क =

क्या महान सूत्र मेरे हाथ लग गया है! अब मुझे लगने लगा था कि ब्लॉग बोधि-वृक्ष के तले मुझे यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि मुझमें महान बनने की अनंत संभावनाएं हैं और महानता के क्षेत्र  में चल रही अराजकता है बस बीते दिनों की बात होगी। मेरे इस सूत्र के आगे सारे महान पिट जाएंगे और मेरा सूत्र हिट हो जाएगा। मैं सोचता हूं इस सूत्र का कॉपी राइट अपने नाम कराके एक चिट्ठी (पोस्ट) डाल ही दूं इस शीर्षक के साथ फ़ुरसत के 72 घंटे में महानतम बनने का फॉर्मूला!

***

अब चैन-ओ-फ़ुरसत में हूं। खुद अपनी पीठ ठोकता हूं और मेरे मुंह से निकलता है मनोज द ग्रेट!

46 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत रोचक और सटीक व्यंग....आभार

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  2. ब्लॉगिंग में तो आपके महान बनने की यात्रा शुरु हो गयी। आपका नामांकन शुरु हो गया। बस ब्लॉग की महानता बीस-पचीस दिन ही दूर है आपसे।

    बाकी जीवन में महान बनने का एक रास्ता अपनी एक पोस्ट में बताया था हमने- काम छोड़ो-महान बनो

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  3. मैं ने आपके फार्मूला को गाँठ बाँध लिया है... बहुत धारदार व्यंग्य... तिलमिला देने वाला..

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  4. व्यंग की धार तेज है . आप महानता से लबरेज है . आप महाजन (महापुरुष )है और हम आपका अनुसरण करने को बेसब्र . इ वाला सूत्र तो सच में अनादि अनंत बनाता है, अब आप ३२ क्या , सबसे ऊपर होगे . मस्त .

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  5. भाई साहब नाम ज़रा केची सोरी सेक्सी होना चाहिए आप अपने चिठ्ठे का नाम रख दो "ई -पिल ".
    ram ram bhai

    शनिवार, 19 मई 2012
    कैसे बाहर आयें इस सेक्स्तिंग चक्र व्यू से .ये नादाँ .??
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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  6. भाई साहब नाम ज़रा केची सोरी सेक्सी होना चाहिए आप अपने चिठ्ठे का नाम रख दो "ई -पिल ".वैसे आत्म श्लाघा जौंडिस की तरह एक सेल्फ लिमिटिंग खुद बा खुद ठीक हो जाने वाला रोग नहीं है . बहुत बारेक व्यंग्य छिपाए है ये पोस्ट .जै ब्लोगाचारी ,ब्लॉग मणि ,ब्लॉग भूषण ,ब्लॉग खर दूषण ,ब्लॉग प्रदूष्ण ....

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  7. अब चैन-ओ-फ़ुरसत में हूं। खुद अपनी पीठ ठोकता हूं और मेरे मुंह से निकलता है – मनोज – द ग्रेट!

    बहुत तगड़ा व्यंग्य लिखा है मनोज जी ....बस अब क्या है .......अब तो पुरस्कार मिल ही गया समझिए ...!

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    1. कोई पुरस्कार दे न दे हमारी तरफ से सार्थक ब्लोगिंग का पुरस्कार आप ही को जायगा ....!

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  8. महान बनने के लिए मुंह पूरब में और हाथ उत्तर में रखकर लिखने की अदा सब पर भारी रही.
    करारी और कारगर पोस्ट.
    :)

    Please see
    ...ताकि बचा रहे ब्लॉग परिवार Blog Parivar

    http://tobeabigblogger.blogspot.in/2012/05/blog-parivar.html

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  9. महानता भी नसीब महान लोगों को ही होती है..

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  10. टाप १० पर तक पहुचने के लिये "निर्मल बाबा" के कृपा की आवश्यकता है
    बहुत रोचक और सटीक व्यंग..,,,,,,,

    MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
    MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....

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  11. मनोज जी फुरसत में चिट्ठाकारिता की परिकल्पना के सुंदर व्यंग्य-बाण छोड़ डालें हैं आपने। चूंकि व्यंग्य का तीर स्वयं अपनी ओर भी है,इसलिए व्यंग्य-विधा की दृष्टि से यह श्रेष्ठ व्यंग्य कहलाएगा। आपकी कल्पना यथार्थ के धरातल पर खड़ी है,इसलिए यह कल्पना ब्लॉग-जगत की संकल्पना और परिकल्पना का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करती है। यद्यपि बहुत से लोगों ने अपनी परिकल्पनाएं खड़ी करके ब्लॉग और इस पर रचे जाने वाले चिट्ठों को अपना धंधा बना लिया है और बहुत से लोगों ने इस सत्याभासी जगत में रचे गए चिट्ठों के आधार पर प्रकाशन-घर भी खोल डालें हैं। पुस्तक में किसी ब्लॉगर का नाम तक छपवाने की फीस वसूल की जाने लगी है...अब देखते हैं दशक का महान ब्लॉगर कितने में बनता है...

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  12. फुर्सत में महानता पर गहन शोध कर डाला ..... भले ही टॉप टैन में नाम न आया हो पर आम ब्लॉगर की लिस्ट में नाम हिट है .... ग्रेट ....

    वैसे एक मुहावरा याद आ गया ---- इसे कहते हैं धोबी पछाड़ :):)

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  13. मनोज जी मेरी एक टिप्पणी स्पैम में है। कृपया उसे मुक्ति दें और सार्वजनिक करें।

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    1. कर दिया बंधु।
      अभी संगीता जी को चैट में यह लिखा है
      मनोज भारती ने बहुत अच्छा लिखा है। मानों मेरे व्यंग्य को विस्तार दे दिया हो।

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  14. मनोज – द गिरेट! अजी गिरेटेस्टेस्ट बोलिये हुज़ूर!

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  15. हा हा हा हा हा हा ...........धांसू ...तलवार की धार से भी तेज़ व्यंग्य ...मज़ा आ गया पढ़ कर

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  16. बढ़िया व्यंग्य लिखा गया है फुरसत में,
    बस सूत्र कुछ समझ में नहीं आया है, भलेही टॉप टेन में आप ना हो पर मेरी पसंदीदा रचनाकारों में एक है आप !
    अब प्यार से पढने वालों को कौनसे क्रम में रखा जाता है यह पता नहीं !

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    उत्तर
    1. सूत्र बड़ा सरल है, संबंधों के क में क से जोड़ घटा गुणा भाग करते जाइए, फिर आप पाएंगे कि संभावनाएं अनंत हैं।

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  17. वाह क्या धारदार व्यंग्य है सबको पीछे छोड दिया ………ग्रेट ………बनने से कोई नही रोक सकता।:)

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  18. टिप्पणी क्र. 1- गतिविधियन पै गिद्ध दृष्टि दय हल्ला बोलि दियो सरदार। नौटंकी के सूत्रधार पै बाजी छपक-छपक तलवार॥
    महान बनन के नुस्खा दइ के मन में संचित करि के ओज। गढ़ के ऊपर बैठि दहाड़य शेर बनो है आज मनोज॥
    टिप्पणी क्र.-2 वह व्यंग्य ही क्या जो काट के मिर्च न भर दे।
    टिप्पणी क्र.3- उँह ! क्या फ़र्क पड़ता है ...अपन तो बैंगन प्रजाति के प्राणी हैं।
    टिप्पणी क्र.4- यार ! ये बिहारी लोग किसी को नहीं छोड़ने वाले....टोपाज़ ब्लेड से चीरा लगाने में माहिर हैं।( टोपाज़ ब्लेड का विज्ञापन फ़ोकेट में कर रहा हूँ ...जानता हूँ कम्पनी वाला एक धेला भी नहीं देगा)

    मनोज भैया जी! इनमें से जो टिप्पा अच्छा लगे उसे रख लीजियेगा बाकी लौटती डाक से वापस कर दीजियेगा। बड़े महंगे हैं ..कहीं और टिपियाने के काम भी आ सकते हैं।

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    उत्तर
    1. इतने क़ीमती उपहार मैं वापस भेजने वाला नहीं। सहेज कर रख लिया है ... सारे के सारे।

      हटाएं
  19. उफ़ ...
    हम लोग कित्ता सम्मान देते हैं हिंदी ब्लोगर को :)
    ओ के ...
    पुरस्कारों की संख्या बढ़ा कर १०० कर दो , शायद अपने चेहरे को चमकाने में लगे हम सब गिनती में इतने ही हैं !
    पढने का भी दिल नहीं होता बिना पुरस्कारों के सच्ची ...

    बिना ईनाम के भी कोई जिंदगी है ???

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  20. इस क्रम में मैंने जो सूत्र पाया वह इस प्रकार का था :-

    क+क-क×क÷क = ∞

    आपका महान बनने का सूत्र मेरी नजर में कुछ स्पष्टीकरण के रूप में 'क" के मान का उल्लेख चाहता है ताकि इसे हल किया जा सके ।

    यदि मैं इसे हल करूंगा तो उत्तर निम्नवत होगा । यदि गलत होगा तो आपको इसे हल करके समझाना होगा कि किस संबंध के आधार पर इसे हल किया जाए ।

    प्रश्न- क+क-कंxक/क
    =क+क-कxकx1/क
    =क+क-क
    उत्तर- क
    धन्यवाद ।

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  21. ग्रेट!! आपका तखल्लुस 'मनहूस' न होकर सही मायने में 'महान' होना चाहिए।

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  22. ये महानता की दिशा में पहला कदम है...अपनी प्रसंशा खुद करना...क्योंकि किसी दूसरे के पास दूसरों के लिए समय ही नहीं है...जब तक कुछ लिखेंगे नहीं तब तक कोई कम्पाइल क्या ख़ाक करेगा...अंतरजाल की दुनिया में किया गया कार्य अमर है...जीवनी लिखने वाले को सिर्फ कट-पेस्ट करना है...

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  23. वाह! वाकई ग्रेट! लीजिए आप फिर महान बन गए। jokes apart, इतना धारदार और मजेदार व्यंग्य कम ही पढ़ने को मिलता है। वाकई आप ऑलराउंडर हैं। आपके ब्लॉगों को तो नंबर वन पर होना चाहिए था, फिर पहला वोट मैं ही देती।

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  24. वाह! अति सुन्दर।

    वैसे अपने गुर तो टाप सीक्रेट होते हैं, लेकिन आपने तो सीक्रेट ही शेयर कर डाला।

    महान बनने की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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  25. महान बनने की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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  26. लगता है कि आप काफी प्रकाश-वर्ष दूर हैं जिससे आप दिखाई नहीं दे रहे हैं। शायद यह कम महानता नहीं है। अच्छा व्यंग्य।

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  27. व्यंग्य धारदार है ...
    लेकिन इससे अलग मेरा विचार है कि अपने प्रयासों से पुरस्कार दिए जाने में हर्ज़ क्या है !

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  28. मुझे इसी फार्मूले का इंतज़ार था,आपको साधुवाद !
    वैसे दूसरा तरीका भी अभी हवा में तैर रहा है.अगर कोई ब्लॉगर-सम्मान मुझे भी मिल जाए तो फिर सिद्ध हो जायेगा कि मैं एक सम्मानित,अनुभवी और वरिष्ठ ब्लॉगर हूँ.

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  29. ग्रेट जी ग्रेट ..इस महानता पर कौन न मर जाए ए महान :):)..फुर्सत में गज़ब करते हैं आप. सब गाँठ बाँध लिया है हमने.

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  30. बहुत व्यंगात्मक किन्तु बहुत रोचक आलेख एक बार पढना शुरू किया अंत तक रोचकता बनी रही यू आर ग्रेट

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  31. मनोज जी!
    भयंकर फार्मूला दिए हैं भाई जी!! हमरे अऊर आपके बीच कभी-कभी जो चैट में बात-चीत होता है ऊहो जमा कीजिये.. ओही छपवाकर दुनो एट ए टाइम महान बन सकते हैं!! बीच में लड़ाइयो कर सकते हैं हम लोग अऊर तब नाम रखेंगे "चैट में फैटम फैट"...!! जल्दिये पेटेंट करवा लीजिए.. आइंस्टीन के ई=एम्.सी स्क्वाएर के बाद एही हिट होने वाला है!!
    जय हो!!

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  32. सतीश जी की बात से सहमत हूँ ,पुरस्कारों की संख्या बढ़ा दी जाए सब खुश .......सामयिक व्यंग ..:)

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  33. oho itna kuchh karna padta hai top 10 blogger banNe k liye. bhai ham to aalsi ram hai itni mehnat mushakkat to ham katayi nahi kar sakte. aachhha hua aap ne bata diya. aur ye farmula to hamare sar par zor dalwa raha hai fir bhi samajh me nahi aa raha hai.

    aur ye mahan manoj ki manhoos mahanta........?????? oh manhoos nahi...mahan manoj ki mahanta ....jabardast sheershak hai. jhat-pat badal daaliye. :-)

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  34. मनोज जी मैं भी आपकी ही तरह की मानसिक स्थिति से गुजर रहा हूं। मैंने तो तय कर लिया है कि अगर मेरा नाम किसी पुरस्‍कार के लिए उपयुक्‍त नहीं पाया गया तो कोई बात नहीं। मैं तो अपने ब्‍लाग का नाम ही 'दशक का आदर्श ब्‍लाग' रख लूंगा।

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  35. महान कोई एक दिन में नहीं बन जाता” और “महान कोई एक बार में नहीं बन पाता”। उसे बार-बार बनना पड़ता है, बहुत बार बनना पड़ता है। बहुत-बहुत बार बनना पड़ता है।

    जाने क्या-क्या नहीं करते है लोग महान बनने के लिए
    ..महान बनने का सुन्दर आत्मचिंतन कराती सुन्दर प्रस्तुति ..

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  36. हम शुरू से कह रहे हैं,मगर कोई सुनता नहीं है कि ब्लॉग का असली पाठक ब्लॉगर नहीं होता है। इसलिए,अपना फार्मूला क्लियर हैः हम तुम्हारे बनाए महान नहीं बनेंगे।

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  37. टॉप टेन पहाड़ टॉप टेन समुद्र - वाह क्या उड़ान है मनोज भाई
    व्यंग्य का भरपूर आनन्द लिया, वैसे इस तीखे व्यंग्य में बीच बीच में हास्य की फुलझड़ियाँ भी खूब छोड़ी हैं आपने
    मैंने तो इसे सिर्फ़ हास्य-व्यंग्य आलेख समझ कर पढ़ा और इस का भरपूर आनन्द उठाया
    मेरे मत में आप जो [ख़ासकर] साहित्यिक सेवा कर रहे हैं वो दुनिया के किसी भी पुरस्कार की मुहताज़ नहीं होनी चाहिये
    अत: प्रार्थना है कि आप फिर से अपने काम में जुट जाइये, भावी पीढ़ियाँ आप के परिश्रम से लाभान्वित होंगी

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