शनिवार, 22 सितंबर 2012

फ़ुरसत में ... तीन टिक्कट महा विकट

फ़ुरसत में ... 110

तीन टिक्कट महा विकट

मेरा फोटोमनोज कुमार

हमारे प्रदेश में एक कहावत काफ़ी फ़ेमस है – तीन टिक्कट, महा विकट। इसका सामान्य अर्थ यह है कि अगर तीन लोग इकट्ठा हुए तो मुसीबत आनी ही आनी है। ऐसे ही कोई कहावत कहावत नहीं बनता है। कोई-न-कोई वाकया तो उसके पीछे रहता ही होगा। करण बाबू तो इसी पर एक श्रृंखला चला रहे थे .. आजकल उसे अल्पविराम दिए हैं। अब तीन टिकट महा विकट का भी ऐसा ही कोई न कोई वाकया ज़रूर होगा। जैसे तीन दोस्त ट्रेन से जाने के लिए निकले तीन टिकट लिया और गाड़ी किसी नदी पर से गुज़र रही थी, तो इंजन फेल हो गया; तीन टिकट लेकर तीन जने किसी बस से निकले, सुनसान जगह में जाकर उसका टायर बर्स्ट हो गया। तीन टिकट लेकर ट्राम में बैठे कि उसको चलाने वाली बिजली का तार टूट जाए। किस्सा मुख़्तसर ये कि तीन के साथ कोई न कोई बखेड़ा होना लिखा ही है।

जब घर से तीन जने निकलते, तो कोई न कोई टोक देता कि तीन मिलकर मत जाओ, तो दो आगे एक पीछे से आता, या एक आगे, दो पीछे से आते। एक मिनट-एक मिनट!!!! अरे हम इतना तीन तीन काहे किए हुए हैं, आप भी सोच में पड़ गए होंगे। अजी आज रात के बारह बजे हम भी तीन पूरे कर रहे हैं, पूरे तीन साल इस ब्लॉग जगत में। हो गया न हमारा भी तीन का फेरा। तो हमारे इस ‘मनोज’ ब्लॉग का भी तीसरा टिकट कट गया ना। अब तीन का टिकट आसानी से तो नहीं ही कटना था। विकट परिस्थिति को महा-विकट होना ही था ... देखिये हो ही गया। ‘फ़ुरसत में’ तो हैं हम, लेकिन कुछ लिखने का फ़ुरसत नहीं बन रहा, ‘आंच’ लगाते हैं, तो अलाव बन जाता है। स्मृति के शिखर पर आरोहण में बहुत कुछ विस्मृत और गुप्त-सा हो चला है। क्या बधाइयां, क्या शुभकामनाएं, सब व्यर्थ लगता है। तीन साल इस ब्लॉग-जगत में अपना सर्वश्रेष्ठ देते-देते हमारे लिए भी ‘तीन टिक्कट - महा-विकट’ वाली स्थिति हो गई है।

तीन पूरे हुए ! अब तो चौथ है !

तीन पूरे हुए,

अब तो चौथ है!

सोचता हूँ

कैसा ये एहसास है?

या कोई पूर्वाभास है?

 

आज फिर

फ़ुरसत में

फ़ुरसत से ही

लिखने बैठा हूं,

सीधा नहीं

पूरी तरह से ऐंठा हूं

इतने दिनों के बाद

फिर से ब्लॉग पर लिखना लिखाना

आने वाली चौथ का आभास है?

मैं सोचता हूँ

कैसा ये एहसास है?

या कोई पूर्वाभास है?

 

चींटियों को भी तो हो जाता है

अपनी मौत से पहले

ही अपनी मौत का आभास

मानो उम्र उनकी आ चुकी है

खत्म होने के ही शायद आस-पास।

 

उस समय जगती है उनकी प्रेरणा

कि ज़िन्दगी के दिन बचे हैं जब

बहुत ही कम

तो हो जाती हैं आमादा

वे करने को कोई भी काम भारी

और भी भारी

है ताज्जुब

चींटियां अपनी उमर के साथ

कैसे हैं बदलतीं काम अपने

और बदलतीं काम की रफ़्तार को भी!

 

चींटियाँ...

ये नाम तो सबने सुना ही होगा

पड़ा होगा भी इनसे वास्ता

चलते गली-कूचे, भटकते रास्ता.

लाल चींटी और कभी

काली सी चींटी

काट लेतीं और लहरातीं

खड़ी फसलें, कभी सब चाट जातीं

या घरों में बंद डिब्बों में भी घुसकर

सब मिठाई साफ़ कर जातीं हैं पल में

 

किन्तु हर तस्वीर का होता है

कोई रुख सुनहरा

चाटकर फसलों को ये

करती परागण हैं

जो फसलों को सहारा भी तो देता है.

 

यह ‘हिमेनोप्टेरा’

ना तेरा, न मेरा

सबका,

सामाजिक सा इक कीड़ा

इसे कह ले कोई भी

राम की सीता, किशन की मीरा

या जोड़ी कहे राधा किशन की

धुन की पक्की,

सर्वव्यापी स्वरूप उसका

गृष्म, शीतल, छांव, चाहे धूप

जंगल गाँव

पर्वत, खेत या खलिहान

भूरी, लाल, धूसर, काली

छोटी और बड़ी,

बे-पर की, पंखों वाली

दीवारों दरारों में

दिखाई देती है बारिश के पहले,

और वर्षा की फुहारों में

कभी मेवे पे, या मीठे फलों पर

दिख भी जाते हैं ज़मीं पर,

और पत्तों पर,

नहीं तो ढेर में भूसे के

डंठल में यहां पर

या वहां पर

बस अकेले ही ये चल देती हैं

और बनता है इनका कारवां.

बीज, पौधों के ये खाती हैं

कोई फंगस लगी सी चीज़ भी

खाती पराग उन फूल के भी

फिर मधु पीकर वहाँ से भाग जातीं

 

कितनी सोशल हैं,

कोलोनियल भी हैं

चाहे कुछ भी कह लें

किन्तु यह प्राणी ओरिजिनल हैं

ज़मीं के तल में

अपना घोंसला देखो बनाती

अलग हैं रूप इन कीटों के

इनके काम भी कैसे जुदा है

बांझ मादा को यहाँ कहते हैं ‘वर्कर’,

और बे-पर के सभी हैं ‘सोल्जर’

दुश्मन के जो छक्के छुड़ातीं

कोख जिनकी गर्भधारण को हैं सक्षम

‘रानी’ कहलातीं हैं

न्यूपिटल फ़्लाइट में

“प्रियतम” का अपने

मन लगाती, दिल भी बहलाती!

 

छिडककर फेरोमोन वातावरण में

वे प्रकृति की ताल पर

करती थिरककर नाच

अपने ‘नर’ साथी को जमकर लुभाती.

जो मिलन होता है न्यूपिटल फ़्लाइट में

बनता है कारण मौत का

उसके ही प्रियतम की

औ’ रानी त्यागकर पंखों को अपने

शोक देखो है मनाती

साथ ही वो देके अंडे

इक नयी दुनिया बसाती है

ऐसे में वर्कर भी आ जाती

मदद को

सोल्जर भी करतीं रखवाली

अजन्मे बच्चों की

कितने जतन से.

और उधर रानी को जो भी ‘धन’ मिला नर से

उसे करती है संचय इस जतन से

जिसके बल पर

देती रहती है वो

जीवन भर को अंडे

रूप लेते है जो फिर

चींटी का.

 

कैसे चीटियां

अपनी बची हुई आयु का कर अनुमान

करती हैं बचा सब काम

अंदाजा लगाकर मौत का

हो जाती हैं सक्रिय

 

निरन्तर अग्रसर होती हैं

अपने लक्ष्य के प्रति

और लड़ती है सभी बाधाओं से

टलती नहीं अपने इरादे से

नहीं है देखना उनको पलटकर

और न हटना है कभी पथ से

उन्हें दिखता है अपना लक्ष्य केवल!!

लक्ष्य केवल लक्ष्य, केवल लक्ष्य..!!

 

लक्ष्य भी कितना भला

कि ग्रीष्म ऋतु में ही

जमा भोजन को करना

शीत के दिन के लिए पहले से!

ताकि उस विकट से काल में

ना सामना विपदा से हो!

मालूम है उनको

समय अच्छा सदा रहता नहीं है

दुख व संकट का सभी को सामना

पड़ता है करना.

 

चींटियां

देतीं हैं नसीहत हैं

बुरा हो वक़्त फिर चाहे भला हो

हम भला व्यवहार अपना क्यों बिगाडें

सीख देती हैं

कि निष्ठा से, लगन से

काम की खातिर रहें तैयार

हर हालात से लड़कर

 

हमें देती हैं वे यह ज्ञान

जब संतोष धन आये

तो सब धन है ही धूरि समान

कैसे जब उन्हें शक्कर मिले तो

ढेर से वो बस उठातीं एक दाना

छोड़ देती हैं वो बाकी दूसरों के नाम.

समझातीं है हमको

उतना ही लो जितना तुमको चाहिए

क्षमता तो देखो अपनी तुम

संचय से पहले!

 

चींटियां

कहती हैं हमसे

जो कमी है, दूर उसको कर

जिसे पाना है उसको पा ही लेने की

करो कोशिश

सभी बाधाएं खुद ही ढेर हो जायेंगी

चूमेगी तुम्हारे पाँव खुद आकर

सफलता, कामयाबी!!!

***

37 टिप्‍पणियां:

  1. हम भी कई बार महसूस किये हैं.... ट्रिपल लोड करते थे तो साइकिल पंक्चर हो जाती थी.... तब कहते थे... तीन टिकट महा विकट.... बाकी कविता बेहतरीन बनी है... एक सांस में पढ़ गया.... सुन्दर...

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  2. पूरे तीन साल इस ब्लॉग जगत में। हो गया न हमारा भी तीन का फेरा।
    बधाई, शुभकामनायें ...

    चींटिया ..
    सदा सर्वदा
    कर्मरत मानों
    कहती है
    जैसे कर्म ही
    जीवन है ....
    सुंदर सार्थक सन्देश देती रचना !

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  3. ब्लॉग के तीन साल पूरे होने पर बधाई .... विकत समय निकाल ही गया न ... इस वर्ष यह ब्लॉग नए आयाम छुए .... यही कामना है

    बस अकेले ही ये चल देती हैं

    और बनता है इनका कारवां.

    ऐसे ही आपका कारवां चलता रहे ... संदेश प्रद रचना

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  4. सादर -



    तीन साल पूरा हुआ, शुभकामना मनोज ।

    ओजस्वी ये ब्लॉग सब, पाठक पढ़ते रोज ।

    पाठक पढ़ते रोज, तीन तेरह क्यूँ भाई ।

    तीन-पाँच नहिं आँच, नई फुर्सत महकाई ।

    वर्ष पूरते तीन, चौथ का चाँद भाद्रपद ।

    झूठ मूठ की बात, दुखी कर देता बेहद ।

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  5. ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश भी तो त्रिदेव हैं .....समस्त विश्व की रक्षा करते हैं ...!!तीन वर्ष पूरे होने पर बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ...!!प्रेरणादायी रचना लिखी है आपने ..!!
    आपका अथक और सार्थक प्रयास युहीं चलता रहे ...
    पुनः शुभकामनायें ...!!

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  6. हेंहेंहें...! हम तीन भाई हैं। बचपन में खूब लड़े-झगड़े। हमारे बचपन के चिल्ल-पों से चिढ़े पिताजी का तकिया कलाम ही बन गया था "तीन टिक्कट महा विक्कट"! लेकिन बाद में समझते गए, त्रिगुणात्मिका प्रकृति - सत, तम, रज। इलेक्ट्रान, प्रोटान, नूट्रान। चूड़ा-दही-चीनी। कफ़-पित्त-वायु। जल-थल-नभ। ब्रह्मा, विष्णु, महेश। अमर-अकबर-एंथोनी। शंकर-एहसान-लाय। मन्नू-माया-मुलायम। आदि-आदि ! जोक्स अपार्ट !

    अब कविता पर - निःसंदेह भाव-प्रवन कविता है। थोड़ी कसावट की कमी है वरना यह कविता भी ’कैटरपिलर’ के करीब है। मुझे पता भी है और लगता भी है कि यह क्षेत्र आपका स्टेंग्थ-एरिया है। इस के इर्द-गिर्द लिखी कविताओं से आप हिन्दी साहित्य में एक नए इतिहास और आयाम का सृजन कर सकते हैं।

    तीन साल का सफ़र बेशक मनोरंजक, शिक्षाप्रद और शानदार रहा मगर आसान नहीं। दिन-महीने-साल तो बस गिनती की इकाई हैं। बदलते जाएँगे। मगर इस सफ़र में जिन तमाम पाठकों-शुभचिंतकों का स्नेह मिला है वह हमारी थाती है। निश्चय ही एक विश्वव्यापी परिवार दिया है इस ब्लाग ने हमें जिसे हम ताउम्र संजोये रखना चाहेंगे।

    साल के तीसरे पड़ाव पर हम तहे-दिल से आपका शुक्रिया अदा करते हैं और यह गुजारिश भी कि आगे के सफ़र में भी आपका साथ-ओ-मोहब्बत बना रहे।

    जय हो ! जय हो !! जय हो !!!

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  7. manoj ji badhayi ho is trichakr se nikal chaturth chakr me pravesh karne k liye. ham bhi aapke samaan chaturth shreni me aaye hue hain. lekin graph dekha jaye to ham abhi 20 degree par aur 90 degree par hain....sir utha kar apki taraf dekhne bhi lagen to gardan thak jaye itna faansla hai apke yash ke prakash me aur hamari tim-timati lau me. ek bar fir se badhayi ho.

    cheenti ka kaal chakr bahut acchhe se spasht kiya aur uske dwara sansar ko milta sandesh bahut hi accha margdarshak raha hai aur rahege.

    shubhkaamnaaon ke sath.

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  8. कामयाबी से तीन साल पूरे करने के लिये,,,,मनोज जी बहुत२ हार्दिक बधाई,,,,,

    RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का

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  9. पटना का तीन टिकट-महाविकट हो या इलाहाबाद का तीन तिगाड़ा-काम बिगाडा... अपना अनुभव अच्छा रहा है.. करण बाबू ने तो पूरी लिस्ट पकड़ा दी है... एक बहुत महत्वपूर्ण नाम छूट गया तो वो मैं जोड़ देता हूँ.. तीन की महिमा में एक नाम है - मनोज-राजभाषा हिन्दी-विचार... तो फिर तीन की बधाई और अगर यह सचमुच महाविकट ही है तो परमात्मा करे कि यह तीन से तीस बने..
    कविता के बारे में क्या कहना.. आपका अपना विषय है.. इसपर चर्चा फिर कभी.. आज बस बधाई!!

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  10. सारी की सारी प्रवाहमयी और प्रभावमयी..

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  11. बधाई और बहुत अच्छी तरह मनाई आपने वर्षगांठ। कविता तो बहुत ही उम्दा बन पड़ी है। तीन के तीस साल हों, यही शुभकामनाएं हैं.....

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  12. तीन वर्ष पूरे होने पर बहुत बधाई एवं शुभकामनायें …………बेहद उम्दा रचना है ।

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  13. अरे बचपन में माँ तीन रोटी थाली में डालती ही नहीं थी. और डाले तो एक रोटी में से एक टुकड़ा तोड़ कर . फुर्सत में गजबे करते है न आप . करण बाबु एकदमे गांव ले जाते है याद मार्ग से और हम नौस्त्लाजिया जाते है . आंच जलने दीजिये. बधाई तीन सालों के शानदार सफ़र के लिए . और कविता . लगता है बनस्पति और प्राणी विज्ञानं कवितामई हो गए .

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  14. अलाव बुरा नहीं होता। बाटी, चोखा के लिए अलाव जलाना पड़ता है। हमलोगों के यहाँ इसे अहरा कहते हैं।

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  15. ब्लॉग के तीन साल पूरे होने पर बधाई ... प्रभावमयी सार्थक अभिव्यक्ति

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  16. चींटियां

    देतीं हैं नसीहत हैं

    बुरा हो वक़्त फिर चाहे भला हो

    हम भला व्यवहार अपना क्यों बिगाडें

    सीख देती हैं

    कि निष्ठा से, लगन से

    काम की खातिर रहें तैयार

    हर हालात से लड़कर

    प्रभावमयी सार्थक अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  17. ब्लॉग के तीन साल पूरे होने पर बधाई ....

    जवाब देंहटाएं
  18. हमारे यहाँ कहते हैं तीन तिगाड़ा काम बिगाडा. हालाँकि हम ढीट टाइप हैं तो जान बूझ कर तीन के फेरे में पड़े ही रहते हैं:).कुछ नहीं बिगडता जी जलने दीजिए आंच और छूने दीजिए नए आयाम इस ब्लॉग को.
    ढेरों शुभकामनाएं और हार्दिक बधाई.

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  19. तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा तीन को लेकर कितने ही किस्से हैं पहेलियाँ हैं :हम माँ बेटी ,तुम माँ बेटी ,चले बाग़ को जाएं ,तीन नीम्बू तोड़ के एक एक कैसे खाएं (माँ -बेटी -नानी हैं ,खालो एक एक )पर यहाँ तो निकली कर्मठ चींटी जो अपने भार से भी जायदा सामग्री ढ़ोती लिए चलती साथ एक ग्लोबल पोजिशनिंग स्तेलाईट सिस्टम जी पी एस छोडती चलती फैरोमोंस संग -नियों लिए .

    अर्थी लेके चलने के लिए चार आदमी चाहिए ,तीन कैसे ले जायेंगे .चार जने जब लेके चाले .....काया कैसे रोई तज़ दिए प्राण

    चींटी हमें सिखाती ,मिलजुल के काम करना

    आड़े दिनों से डरना ,कुछ तो बचाके रखना .

    बेहद बेहतरीन रचना है .आभार ,बधाई .चौथा साल ओर भी रचनात्मक रहे .

    साथ जो गर छोड़ जाए हिम्मत से काम करना .

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  20. हमारे यहाँ कहा जाता है कि तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा। आपको तीन वर्ष पूर्ण करने पर बधाई। तीन की बात पर एक बात कि अभी हम तीन सहेलियां अजन्‍ता-एलोरा घूमकर आए हैं, और हमने बहुत आनन्‍द किया। कोई गड़बड़ नहीं हुई।

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  21. तीन तिक्कड़ से चौथे में प्रवेश पर अनेकानेक बधाइयाँ. तमाम दुविधाओं के उपरांत भी आप बहुत सुंदर पठनीय सामिग्री हम सबके लिये पेश करते रहे, इसके लिये आपका बहुत शुक्रिया.

    नन्हे प्राणियों के माध्यम से भी बहुत सुंदर सन्देश दिया है कविता के द्वारा.

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  22. बहुत देर लगी समझने में पर आखिरकार आ गया ! तीन वर्ष तीन त्रिकट महा विकट !!
    बधाई!!

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  23. अगर तीन तिक्कट होने पे इतनी बेहतरीन कविता निअकलती हो तो हर दिन तीन साल ही पूरे हों बस ...
    बधाई मनोज जी ... तीन साल का आपका योगदान महत्वपूर्ण है ब्लॉग-जगत के लिए ...

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  24. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  25. बहुत बढ़िया लगी आपकी रचना !
    चीटियाँ जितनी सामाजिक हैं उतना शायद ही कोई इंसान होगा! कभी ध्यान से देखिए ज़मीन पर चलती चींटी को...-सामने से आती हुई दूसरी चींटी से बिना मिले आगे नहीं बढ़तीं! पता नहीं एक दूसरे के कान में क्या कहतीं हैं..या हेलो हाय करतीं हैं..
    ~ब्लॉग का नया साल शुरू होने के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ !:-)
    ~सादर !!!

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  26. ब्लॉग जगत में तीन वर्ष पूरा करने की हार्दिक बधाई.आपने अपने श्रेष्ठ लेखन से ब्लॉग जगत को समृद्ध किया इसमें कोई शक नहीं.आप इसे और ऊँचाइयाँ देंगे इसकी पूरी उम्मीद और भरोसा है.

    जवाब देंहटाएं
  27. मन में ओज लिए आज
    मनोज जी ने पुरे किए तीन साल
    फुरसत में भी सर्वोत्‍तम रचना
    चाहते हैं फिर भी बधाई से बचना
    चींटीं के बहानें दे दी नसीहत
    कमी को दूर कर,सफलता को पाओं
    कामयाबी को गले लगाओं ।

    ब्‍लॉग के चतुर्थ वर्ष पदापर्ण पर बधाई ।
    सभी साथियों को खिलाइएं मिठाई ।
    कोलकत्ता में होते तो रोसगुल्‍ला चलेगा ।
    अन्‍यथा मीठे दो शब्‍दों से ही पेट भरेगा ।

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  28. आपने तीन पूरा कर लिया और चौथा प्रारंभ हो गया। यानि विकटकाल बीत गया।
    मेरी भी बधाई स्वीकारें। चौथा साल लगने पर आपके यश और कीर्ति की पताका चहुँओर लहराये,
    हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  29. aadarniy sir
    pahle to apne bloging jagat ke teen -varsh me hi unnati ke shikhar par pahuchane ke liye bahut bahut hardik badhai swikarein.
    चींटियां

    कहती हैं हमसे

    जो कमी है, दूर उसको कर

    जिसे पाना है उसको पा ही लेने की

    करो कोशिश

    सभी बाधाएं खुद ही ढेर हो जायेंगी

    चूमेगी तुम्हारे पाँव खुद आकर

    सफलता, कामयाबी!!
    bahut hi behtreen --jivan ka saar inhi me chhupa hua hai.
    rahi teen tikat maha-vikat wali baat to pahle ham bhi aksar aapas me hansi me kahte the teen ticet maha vikat.
    par ab jab thoda sochti hun to lagta hai ki ye puri tarah se sach nahi hain.
    akhir me ham sasabhi brahma ,vishhnu, mahesh ya ganga , jamuna ,sarswati in teeen pavitra nadiyon ke naam tathasuraj ,chand,sitaron ka naam bhi to ek saath hi lete hain.
    to ye lagta hai ki apne man ki kamjori ya kisi durghtna se juda vakya ho sakta hai.is sandarbh me saki apni vichar dhara bhi ho sakti hai--
    sir----bahut dino baad aapke blog par aai hun.karan aap mere blog par aakar jaan jayenge kyon ki jyada type bhi nahi kar sakti hun .blog par bhi beech -2 me hi kuchch likh paati hun.aapka mere blog par aana mere liye garv ki baat hoti hai.
    aise hi aap mera marg -darshan karte rahenge inhi abhilashhaon ke saath----
    poonam

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  30. सार्थक कविता -
    चींटियाँ ,मधुमक्खियाँ औरसारे जीव प्रकृति के नियम मान कर खुश रहते हैं.ये तो इंसान ही उनका प्रतिरोध करने पर उतारू रहता है .
    तीन सफल वर्ष पूरे होने की बधाई ,लेखनी निरंतर सक्रिय रहे !

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  31. तीन वर्ष पूर्ण होने की बहुत बधाई !
    चींटियों के जीवनचक्र , कार्यशैली की व्यापक जानकारी देती कविता लक्ष्य के प्रति उनकी जिजीविषा को दर्शाती मानव जीवन के लिए सार्थक सन्देश देती है !

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  32. तीन टिकट यानि - मन से , वचन से और कर्म से ..ब्लॉग जगत को आपने जो दिया इन तीन सालों में वो हैरान ही करता है . अविश्वसनीय सा .. आगे भी शुभकामनाएं..

    जवाब देंहटाएं
  33. हमें देती हैं वे यह ज्ञान

    जब संतोष धन आये

    तो सब धन है ही धूरि समान ....

    So true!

    Congrats and best wishes.

    .

    जवाब देंहटाएं
  34. तीन तिगाड़े कहीं न जायें, घर पर ही रहें तो मामला ज्यादा विक्कट हो जाता है!

    जवाब देंहटाएं

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