सोमवार, 14 जनवरी 2013

कस्तूरी मृग पर है दृष्टि भयानक बाघ की

कस्तूरी मृग पर है दृष्टि भयानक बाघ की

श्यामनारायण मिश्र

फागुन

उनके नाम लिखे हैं

अपने हिस्से में हैं रातें माघ की

 

उमर पराई हुई

बंजरों से लड़ते-लड़ते

उनके खेत मेड़ तक जिनके

पांव नहीं पड़ते

झुठलाने को

तुला हुआ है

समय कहावत घाघ की

 

औरों की डोली

देने को कंधे हैं अपने

उपवासों के भोगे अनुभव

पारण के सपने

अपना ही

मन रहे रिझाते

दुहराते धुन फाग की

 

तोते हो गये अपने ओंठ

बोल औरों के कहते

हम कुम्हार के चाक हो गये

चक्कर सहते-सहते

अपने

कस्तूरी मृग पर है

दृष्टि भयानक बाघ की

15 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर भावपूर्ण कविता.

    लोहड़ी, पोंगल, मकर संक्रांति और बिहू की शुभकामनायें.

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  2. तोते हो गये अपने ओंठ

    बोल औरों के कहते

    हम कुम्हार के चाक हो गये

    चक्कर सहते-सहते

    बहुत सुंदर कविता .... आभार

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  3. तोते हो गये अपने ओंठ

    बोल औरों के कहते

    हम कुम्हार के चाक हो गये

    चक्कर सहते-सहते

    अपने

    कस्तूरी मृग पर है

    दृष्टि भयानक बाघ की

    बिल्कुल सटीक आकलन है कविता में आज का

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  4. बहुत खूब ... लाजवाब नव गीत ...
    मकर संक्रांति की बधाई ...

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  5. क्या बात कही है मिश्र जी ने... सचमुच आगे की तस्वीर प्रस्तुत करती है यह कविता!!

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  6. कविता में प्रयुक्त अलग बिम्ब सदा ही प्रभावित करता है ..

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  7. बहुत सुंदर प्रभावित करती उम्दा प्रस्तुति,,,

    recent post: मातृभूमि,

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  8. बहुत सुंदर प्रभावित करती बढ़िया प्रस्तुति,,,

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  9. हम कुम्हार के चाक हो गये

    चक्कर सहते-सहते

    अपने

    कस्तूरी मृग पर है

    दृष्टि भयानक बाघ की...बहुत ही बेहतरीन भावभिव्यक्ति....

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  10. फागुन
    उनके नाम लिखे हैं
    अपने हिस्से में हैं रातें माघ की....badi achchi kavita hai.

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  11. तोते हो गये अपने ओंठ

    बोल औरों के कहते

    हम कुम्हार के चाक हो गये

    चक्कर सहते-सहते

    अपने

    कस्तूरी मृग पर है

    दृष्टि भयानक बाघ की

    निःशब्द करती रचना जो सर्वकालिक है

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  12. फागुन
    उनके नाम लिखे हैं
    अपने हिस्से में हैं रातें माघ की

    वाह, बहुत खूब ,,,
    सुन्दर तस्वीर उकेरा है आपने इस रचना में अभी की स्थिति का
    काफी सुन्दर, प्रभावशाली रचना ,,,

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  13. मनोहारी भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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