मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

फ़ुरसत में ... 115 एक अलग तस्वीर - 2014 में ...?

फ़ुरसत में ... 115

एक अलग तस्वीर - 2014 में ...?

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मनोज कुमार

आजकल इलेक्ट्रॉनिक और अन्य मीडिया में बहस छिड़ी हुई है कि दिल्ली से, केन्द्र नहीं राज्य  सरकार द्वारा, जो संकेत दिए जा रहे हैं, वे कहीं ‘रामलीला नाटक’ की तरह तो नहीं हैं? हर दल उसे आशंका की नज़र से देखते हुए ‘नाटक’ और सिर्फ नाटक करार देने पर आमादा है। अपने-अपने दलों से लोग इतिहास और वर्तमान को खंगालकर ऐसे कई प्रतीक-पुरुष/महिला को सामने ला रहे हैं जिन्होंने ‘कॉमन मैन’ की ज़िन्दगी जीने की राह अपनाई। अहंकार, पदलोलुपता और शान-ओ-शौकत का पर्याय बन चुकी राजनीति में ऐसे सांकेतिक बदलाव और कुछ दे रहे हों या नहीं, एक सुखद अहसास तो दे ही रहे हैं। आशंका की चादर कितनी भी मोटी क्यों न हो, एक विश्वास की किरण तो उसे चीरती हुई आगे बढ़ ही रही है कि चलो यह एक शुरूआत ही सही, अच्छी बात, शुभ संकेत है।

मुझे सत्तर के दशक का एक वाकया शेयर करने का मन हो रहा है। एक आंदोलन के बाद नया जनादेश आया था और एक नई पार्टी के नेतृत्व में सरकार बनी थी। जेल में बंद किए गए एक नेता हमारे शहर से लोकसभा के प्रत्याशी थे। भारी बहुमत से जनता ने उन्हें विजयी बनाया। वे देश के सूचना-प्रसारण मंत्री और उद्योग मंत्री बने। उस शहर को उन्होंने दूरदर्शन केन्द्र, थर्मल पावर और आईडीपीएल जैसी संस्थान दिए।

उस दिग्गज एवं कद्दावर नेता की एक आम सभा हो रही थी। सभा में उन्होंने अपने क्षेत्र के हर ‘कॉमन मैन’ को यह आश्वासन दिया कि जब भी किसी का दिल्ली आना हो वे उनके आवास पर सादर आमंत्रित हैं! उन्होंने यह भी कहा, “हम आपका ख़्याल रखेंगे।“ उन दिनों मैं कॉलेज का विद्यार्थी हुआ करता था और एक प्रतियोगिता परीक्षा के सिलसिले में एक-दो सप्ताह बाद ही मुझे दिल्ली जाना था। मैं उनकी बात से अत्यंत प्रभावित हुआ, लेकिन उनका अता-पता तो मुझे मालूम था नहीं। सोचा उनसे ही क्यों नहीं पूछ लिया जाए। उनका भाषण समाप्त हो चुका था। धन्यवाद ज्ञापन की औपचारिकता चल रही थी। मैं सीधे मंच पर चढ़ गया। ऐसी कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी कि एक ‘कॉमन मैन’ मंच तक न पहुंच पाए। इक्का-दुक्का लाल टोपी वाले हाथ में डंडा लिए यहां-वहां खड़े थे। किंतु बिना किसी बाधा के मैं उन तक पहुंच गया और अपनी मंशा उन्हें बताई। अपनी क़लम और क़ागज़ का टुकड़ा उन्हें दिया और कहा – ‘अपना पता दीजिए, मैं आऊंगा।’ उन्होंने अपना नाम और ’21 – विलिंगडन क्रिसेंट, नई दिल्ली’ लिखकर दे दिया।

दो सप्ताह बाद मैं उनके उस सरकारी आवास के सामने खड़ा था। द्वार पर न कोई ताम-झाम, न कोई अंतरी-संतरी की फ़ौज! जो भी सुरक्षा-कर्मी रहा होगा उसने एक-आध औपचारिक प्रश्न किए और जब अपने शहर का नाम मैंने उसे बताया, तो आगे का मेरा प्रवेश बाधा रहित हो गया। उनके दर्शन हुए। वे प्रसन्न दिखे। मेरे रहने की व्यवस्था कर दी गई। पूरा आदर-सम्मान मिला।

न जाने क्यों आज के परिप्रेक्ष्य में यह घटना मुझे याद आ गई। जब इसे देखता हूं और आज के बारे में सोचता हूँ तो मन में एक कसक सी उठती है। यह ठीक है कि जिसे नौटंकी कहा जा रहा है वह राजनीति की दिशा बदलेगा या नहीं – यह प्रश्न भविष्य के गर्त में है, लेकिन बेहतरी की दिशा में एक कदम तो है ही। लालबत्ती और सुरक्षा का घेरा इतना महत्वपूर्ण क्यों मान लिया गया? या कब यह सुरक्षा व्यवस्था की सीमा लाँघकर स्टेटस सिम्बल बन गया। और अब इन लावलश्कर को त्यागने का साहस ‘कॉमन मैन’ के नुमाइंदे, करने से क्यों कतराते हैं?

राजनीति सेवा का माध्यम है या शासन करने का? यदि सेवा है, तो सुविधाभोगी होकर किया जाना चाहिए या ‘कॉमन मैन’ के बीच उसके जैसा रहकर उनकी तरह जीवन-यापन करते हुए? ‘जनसेवक’ शब्द सुनने में सुनने में अच्छा लगता है, उस तरह का व्यवहार भी देखने को मिले तो और अच्छा लगेगा। जो बदलाव की शुरूआत हुई है वह और आगे बढ़े – ऐसी कामना करने में हर्ज़ क्या है? देश का ‘कॉमन मैन’ बदलाव चाहता है, यह तो अब तक ‘खास लोगों’ को समझ में आ ही गया होगा।

नए साल की शुरूआत कल से होने वाली है। फिर शुरू होगी एक राजनीतिक घमासान भी, तो क्या 2014 में हमें एक बिल्कुल अलग तस्वीर देखने को मिलेगी? 9149_a

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपको भी नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....

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  2. सुरक्षा व्यवस्था को नकारकर राजीव गाँधी के अंत का उदाहरण हमारे सामने है, तमाम व्यवस्था के बाद भी फूलन देवी की उनके घर के बाहर हत्या कर दी गई.. सुरक्षा के नाम पर एक अनिवार्य आवश्यकता को कब लोगों ने स्टैटस सिम्बल बना लिया पता नहीं... और फिर मुझे मेरे एक चपरासी की बात याद आती है कि सर पावर अब्यूज़ करने के लिये होता है, यूज़ करने के लिये नहीं, हमने तो यही देखा है!!
    दिल्ली की ये बयार मेरे चपरासी की बात को गलत सिद्ध कर दे तो मुझे खुशी होगी!! अभी से कुछ भी कहना प्री-मैच्योर होगा!! दूध के जले हैं मनोज बाबू, छाछ भी फूँककर पीना पड़ता है!!
    शुभकामनाएँ!!!

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    1. @सर पावर अब्यूज़ करने के लिये होता है,

      वन्दनीय हैं वो चपरासी...

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  3. बाकी एक खबर है... विवेचना आप खुद तलाश कीजिए.


    दस गुना महंगी पड़ रही है केजरीवाल की सुरक्षा
    http://navbharattimes.indiatimes.com/delhi/other-news/delhi-police-needs-ten-times-more-cops-for-arvind-kejriwals-security/articleshow/28184523.cms

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  4. आपको भी नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. नवागत वर्ष सन् 2014 ई. की हार्दिक शुभकामनाएं

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  7. हो जग का कल्याण, पूर्ण हो जन-गण आसा |
    हों हर्षित तन-प्राण, वर्ष हो अच्छा-खासा ||

    शुभकामनायें आदरणीय

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  8. सभी मित्रों को नव वर्ष 2014 के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ

    हरीश गुप्त

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