एक दिन के वास्ते ही गांव आना
श्यामनारायण मिश्र
ऊब जाओ यदि कहीं ससुराल में
एक दिन के वास्ते ही गांव आना
लोग कहते हैं तुम्हारे शहर में
हो गये दंगे अचानक ईद को
हाल कैसे हैं तुम्हारे क्या पता
रात भर तरसा विकल मैं नींद को
और वैसे ही सरल है आजकल
बम पटकना या छुरा चाकू चलाना
शहर के ऊंचे मकानों के तले
रेंगते कीड़े सरीखे लोग
औ उगलते हैं विषैला सा धुंआ
ये निरंतर दानवी उद्योग
छटपटाती चेतना होगी भटकती
ढूंढ़ने को मुक्त सा कोई ठिकाना
बाग के फूले कदंबों के तले
झूलने की लालसा होगी तुम्हारी
पांव लटका बैठ मड़वे के किनारे
भूल जाओगी शहर की ऊब सारी
बैठ कर चट्टान में निर्झर तले
मुक्त क्रीड़ा मग्न होकर खिलखिलाना
*** *** ***
चित्र : आभार गूगल सर्च
रात भर तरसा विकल मैं नींद को.... MAIN BHI ABHI EK DIN KE LIYE GAAON GAYA THA.. BADI ACHHI NEEND AAI THEE... AAJ BHI GAAON KOLAHAL SE DUR HAIN.. BADHIYA GEET MISHRA JI KA
जवाब देंहटाएंछटपटाती चेतना होगी भटकती
जवाब देंहटाएंढूंढ़ने को मुक्त सा कोई ठिकाना
बैठ कर चट्टान में निर्झर तले
मुक्त क्रीड़ा मग्न होकर खिलखिलाना
bahut sundar abhivyakti ...
ऊब जाओ यदि कहीं ससुराल में
जवाब देंहटाएंएक दिन के वास्ते ही गांव आना bahut sunder.....
ऊब जाओ यदि कहीं ससुराल में
जवाब देंहटाएंएक दिन के वास्ते ही गांव आना,,,,,आभार मनोज जी,,,
RECENT POST-परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
शहर की ऊब को बखूबी वर्णित किया है ...सुंदर रचना पढ़वाने का आभार
जवाब देंहटाएंगांव की पुकार और मिट्टी की गंध की याद दिलाती एक अच्छी कविता । धन्यवाद मनोज जी ।
जवाब देंहटाएंगांव अपनी बेटियों को हमेशा याद करता है। जब तक गांव है समझो बेटियों के पैर तले की जमीन कोई खिसका नहीं सकता।
जवाब देंहटाएंऐसी पुकार कि मन भाग चला पुकारने वाले के पास.. मिश्र जी की कविता ह्रदय से संवाद करती है .
जवाब देंहटाएंऔर आकर अपनी माँ को देख जाना ..
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एक पुराना फ़िल्मी गीत याद आ गया..
जवाब देंहटाएंबता दूं क्या लाना/तुम लौट के आ जाना/एक छोटा सा नज़राना, पिया/याद रखोगे कि भूल जाओगे..
और जब गाँव की ओर लौटने को इतने आकर्षण हों जो अन्यत्र दुर्लभ हों तो कोई कैसे दूर रह सकता है..
मजबूरियाँ बेडी बन जाती हों तो और बात है, वरना गाँव से दूर कौन खुश है!!
sundar hai utkrishtt hai , aabhaar
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति ... आभार
जवाब देंहटाएंमोहब्बत यह मोहब्बत - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
लोग कहते हैं तुम्हारे शहर में
जवाब देंहटाएंहो गये दंगे अचानक ईद को
हाल कैसे हैं तुम्हारे क्या पता
रात भर तरसा विकल मैं नींद को
पहले ही देख लेता है कवि आनागत को बमपात को ,उत्पात को ,बेहतरीन रचना -
लोग कहते हैं तुम्हारे शहर में
हो गये दंगे अचानक ईद को
हाल कैसे हैं तुम्हारे क्या पता
रात भर तरसा विकल मैं नींद को
पहले ही देख लेता है कवि आनागत को बमपात को ,उत्पात को ,बेहतरीन रचना -
जवाब देंहटाएंलोग कहते हैं तुम्हारे शहर में
हो गये दंगे अचानक ईद को
हाल कैसे हैं तुम्हारे क्या पता
रात भर तरसा विकल मैं नींद को
मनोज भाई ब्लड प्रेशर के प्रबंधन में नियम निष्ठ हो दवा खाना ज़रूरी है .ड्रग कम्प्लाइयन्स बेहद ज़रूरी रहती है .बीटाब्लोकर्स आज हर तीसरा आदमी खाता है .
सुंदर रचना ....
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जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...
एक एक शब्द प्रिय है गीत का ...एक एक भाव
जवाब देंहटाएंबाग के फूले कदंबों के तले
झूलने की लालसा होगी तुम्हारी
पांव लटका बैठ मड़वे के किनारे
भूल जाओगी शहर की ऊब सारी
बैठ कर चट्टान में निर्झर तले
मुक्त क्रीड़ा मग्न होकर खिलखिलाना
मन को छूती हुई रचना ... सार्थक रचना ... शुक्रिया इस रचना के लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंगांव में सुकून है, शहर में नफरत? कुछ लोग कहते हैं कि अब मामला उलट होता जा रहा है। पंचायती राज की पार्टीबन्दी वहां जहर घोल गयी है?
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