सोमवार, 17 सितंबर 2012

करता छाया धूप एक जो धरती उसकी है

करता छाया धूप एक जो धरती उसकी है
श्यामनारायण मिश्र


सदियों  से  चलते  झूठे  बैनामे  और  बही
पुरखों ने खातों की ब्याही धरती कभी नहीं
तीसों दिन बारहों महीना
एक करे जो ख़ून पसीना
करता छाया धूप एक जो
धरती उसकी है
खेती नहीं शहर के तुन्दियल सेठों का धन्धा
छोटी   मेड़ें  तोड़  बनालो  एक  बड़ा  बन्धा
धोकर  सारे  मन  का  मैल
नाथ लो गांव  भरे का बैल
जो समूह में खड़ा हो गया
शक्ति उसकी है

गा-गा रोपो धान निराओ गा-गाकर क्यारी

पेड़  मचान  तले  कलेऊ  घर  में हो ब्यारी
ओ ! मेहनत कश बीवी बहना
सीख गया जो मिलकर रहना
अन्न्पूर्णा    गोद   ख़ुशी   से
भरती उसकी है

29 टिप्‍पणियां:

  1. छोटी मेड़ें तोड़ बनालो एक बड़ा बन्धा.....prernaspad....

    जवाब देंहटाएं
  2. ओ ! मेहनत कश बीवी बहना
    सीख गया जो मिलकर रहना
    अन्न्पूर्णा गोद ख़ुशी से
    भरती उसकी है

    बहुत सुन्दर गीत....

    जवाब देंहटाएं
  3. ओ ! मेहनत कश बीवी बहना
    सीख गया जो मिलकर रहना
    अन्न्पूर्णा गोद ख़ुशी से
    भरती उसकी है
    bahut sundar ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर नवगीत....

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर छंद, मनोहारी दृश्य, गहरे भाव
    वाह! अद्भुत सृजन है।

    जवाब देंहटाएं
  6. कितना सुन्दर सन्देश छिपा है इस खूबसूरत रचना में.

    जवाब देंहटाएं
  7. ओ ! मेहनत कश बीवी बहना
    सीख गया जो मिलकर रहना
    अन्न्पूर्णा गोद ख़ुशी से
    भरती उसकी है


    प्रेरणा से भरे शब्दों से बाँधी है ..
    बहुत ही सुन्दर रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  8. जो समूह में खड़ा हो गया
    शक्ति उसकी है…………नि:संदेह , सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  9. पुरखों ने खातों की ब्याही धरती कभी नहीं
    @ मुझे लगता है इस पंक्ति में "पुरखों ने खातों से ब्याही ...." अधिक उपयुक्त होगा.

    जवाब देंहटाएं
  10. तीसों दिन बारहों महीना/एक करे जो ख़ून पसीना/करता छाया धूप एक जो/ धरती उसकी है.
    @'छाया-धूप' विपरीत शब्दयुग्म प्रयोग से 'श्यामनारायण मिश्र' जी ने मजदूर के अनथक श्रम को सफलतापूर्वक ध्वनित किया है. ............ यहाँ पाठक के मुख से स्वतः 'वाह!' निकल जाता है.

    जवाब देंहटाएं
  11. खेती नहीं शहर के तुन्दियल सेठों का धन्धा/ छोटी मेड़ें तोड़ बनालो एक बड़ा बन्धा @.................... 'चकबंदी' खेतों के बीच तो संभव है लेकिन 'तुंदियल सेठों' के व्यवसायों में ये विचार कैसे भी 'अंकुरित' नहीं हो सकता. एक बात तो स्पष्ट हो गयी है... 'समूह' श्रमिकों के बीच तो सहजता से बनाए जा सकते हैं. लेकिन शक्ति 'समूह' दलालों और साहूकारों के बीच बनाना सहज नहीं है.

    जवाब देंहटाएं
  12. गा-गा रोपो धान निराओ गा-गाकर क्यारी
    पेड़ मचान तले कलेऊ घर में हो ब्यारी
    ओ ! मेहनत कश बीवी बहना
    सीख गया जो मिलकर रहना
    अन्न्पूर्णा गोद ख़ुशी से
    भरती उसकी है @.............. भारतीय ग्रामीण संस्कृति का अत्यंत सुंदर चित्र उकेरा है मिश्र जी ने...


    मनोज जी, आपके द्वारा प्रस्तुत इस गीत की नव्यता यही है कि इसने सनातन ग्रामीण संस्कृति को विस्मृति के कालखंड में गाया है.

    जवाब देंहटाएं
  13. सच है, बहुत ही प्रभावी प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  14. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १८/९/१२ को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका चर्चा मच पर स्वागत है |

    जवाब देंहटाएं
  15. ओ ! मेहनत कश बीवी बहना
    सीख गया जो मिलकर रहना
    अन्न्पूर्णा गोद ख़ुशी से
    भरती उसकी है

    प्रकृति के रंगों में रंगी भीनी खुशबू लिए गीत

    जवाब देंहटाएं
  16. तीसों दिन बारहों महीना
    एक करे जो ख़ून पसीना
    करता छाया धूप एक जो
    धरती उसकी है.
    -न्याय-संगत बात कही है.
    धरती का गीत गूँज भर गया मन में !

    जवाब देंहटाएं
  17. जन वादी कविता में भरा पिरा जन आक्रोश व्यंजना में मुखरित है - ओ ! मेहनत कश बीवी बहना
    सीख गया जो मिलकर रहना
    अन्न्पूर्णा गोद ख़ुशी से
    भरती उसकी है

    जवाब देंहटाएं

  18. यह जो सपना हमारे आपके आँखों में बसता है, उन रहनुमाओं के ध्यान तक क्यों नहीं पहुँचता जो इन सपनों को सच्चाई का लिबास पहना सकते हैं..??


    मर्म को छू गयी रचना..


    बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर..

    जवाब देंहटाएं
  19. जो समूह में खड़ा हो गया
    शक्ति उसकी है
    संगठन में शक्ति है का सन्देश देती सार्थक रचना ,बहुत बहुत साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  20. ओ ! मेहनत कश बीवी बहना
    सीख गया जो मिलकर रहना
    अन्न्पूर्णा गोद ख़ुशी से
    भरती उसकी है.............

    वाह,क्या कहने है.मिश्र जी के नवगीतों के,मज़ा आ जाता है पढ़कर .

    जवाब देंहटाएं
  21. जो परिश्रम करेगा धरती उसी की है ... बहुत सुंदर गीत ...

    जवाब देंहटाएं
  22. लिए आस के दीप यहां जो
    रहा खून से सींच ज़मीं वो
    दुष्चक्रों में पिसता,छाती
    फटती उसकी है

    जवाब देंहटाएं
  23. ओ ! मेहनत कश बीवी बहना
    सीख गया जो मिलकर रहना
    अन्न्पूर्णा गोद ख़ुशी से
    भरती उसकी है

    संघटन की शक्ति को पहचानना जरुरी है. बहुत सुंदर गीत मिश्र जी.

    जवाब देंहटाएं
  24. ओ ! मेहनत कश बीवी बहना
    सीख गया जो मिलकर रहना
    अन्न्पूर्णा गोद ख़ुशी से
    भरती उसकी है ...

    वाह बहुत ही सुन्दर काव्य धारा ... मिल जुल के रहने में शक्ति और खुशी ... दोनों हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  25. काश, मेहनतकश लोगों के ये क्रांति गीत फलीभूत होते और शहर के तुन्दियल सेठों का धन्धा नहीं, खेती की महत्ता होती!

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।