बंजारा सूरज
श्यामनारायण मिश्र
किसे पता था सावन में भी
लक्षण होंगे जेठ के
आ बैठेगा गिद्ध सरीखे
मौसम पंख समेट के
बंजारा सूरज बहकेगा
पीकर गांजा भंग
जंगल तक आतंकित होगा
देख गगन के रंग
स्वाती मघा गुजर जायेंगे
केवल पत्ते फेंट के
नंगी धरती धूल
ओढ़ने को होगी मजबूर
कुदरत भूल जायेगी
सारे के सारे दस्तूर
चारों ओर दृश्य दीखेंगे
युद्ध और आखेट के
आंखों के आगे अब
दुनिया जली जली होगी
बिकने को मजबूर
जवानी गली गली होगी
नंगे चित्र छपेंगे पन्ने
पन्ने खाली पेट के
आंखों के आगे अब
जवाब देंहटाएंदुनिया जली जली होगी
बिकने को मजबूर
जवानी गली गली होगी
नंगे चित्र छपेंगे पन्ने
पन्ने खाली पेट के
अगर स्वाती मघा नक्षत्र भी बिन बरसे गुजर गए तो
यही अवस्था होगी .....सार्थक रचना !
आंखों के आगे अब
जवाब देंहटाएंदुनिया जली जली होगी
बिकने को मजबूर
जवानी गली गली होगी
नंगे चित्र छपेंगे पन्ने
पन्ने खाली पेट के,,,,,भाव मय सार्थक रचना,,,,,
RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता
आंखों के आगे अब
जवाब देंहटाएंदुनिया जली जली होगी
बिकने को मजबूर
जवानी गली गली होगी
नंगे चित्र छपेंगे पन्ने
पन्ने खाली पेट के...
कवि ने शायद पहले ही अनुभव कर लिया था कि क्या होने वाला है .... मन को झकझोरती रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार
भावमयी सार्थक रचना,,,,,
जवाब देंहटाएंbhawpoorn.....
जवाब देंहटाएंकविता का प्रवाह बहा कर अथाह सोच में छोड़ आती है..
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह श्याम मिश्र जी का एक प्यारा नवगीत.लाजवाब,लाजवाब.
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारा गीत..
जवाब देंहटाएंआंखों के आगे अब
जवाब देंहटाएंदुनिया जली जली होगी
बिकने को मजबूर
जवानी गली गली होगी
नंगे चित्र छपेंगे पन्ने
पन्ने खाली पेट के
दुनियां के बदलते व्यवहार को आपने रंगों से भर दिया .सही चित्रण बदलते सम सामयिक स्थिति का
वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ...
भावपूर्ण रचना.
सादर
अनु
मेरे यहाँ तो ठण्जक होने लगी है।
जवाब देंहटाएंकुदरत के हैं ढंग निराले।
very nice creation..
जवाब देंहटाएंbadalti duniya ka badalta swaroop ...jabardast rachna .
जवाब देंहटाएंएक और चमत्कार!! शब्दों का, भावों का और विचारों का!!
जवाब देंहटाएंआंखों के आगे अब
जवाब देंहटाएंदुनिया जली जली होगी
बिकने को मजबूर
जवानी गली गली होगी
नंगे चित्र छपेंगे पन्ने
पन्ने खाली पेट के
Posted by मनोज कुमार at 10:36 am 15 टिप्पणियां: Links to this post मनोज जी कवि अपने समय का अतिक्रमण करता है तभी तो यह रचना आज पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक है ,अब जब कि गिद्ध भी बिला गएँ हैं उस मौसम के संदूक में जिसे महा नगर ने बड़ी बे -दर्दी से फैंक दिया है .
महानगर ने फैंक दी मौसम की संदूक ,
पेड़ परिंदों से हुआ ,कितना बुरा सुलूक ..ram ram bhai
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मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
दी इनविजिबिल सायलेंट किलर
'बंजारा सूरज बहकेगा
जवाब देंहटाएंपीकर गांजा भंग
जंगल तक आतंकित होगा
देख गगन के रंग
स्वाती मघा गुजर जायेंगे
केवल पत्ते फेंट के '
- इंसान के व्यवहार के साथ प्रकृति के व्यापारों में भी व्यतिक्रम ,आज के युग की दुखान्ती !
जो हो रहा है अब
जवाब देंहटाएंवो लिख रहा था तब !
बहुत खूब !
जैसे ही कविता के कुछ शब्दों पर दृष्टि पड़ी, कविता को पढ़ने के लिए मजबूर हो गयी। इतनी सशक्त रचना पहले नहीं पढ़ी गयी, बहुत ही श्रेष्ठ रचना है। संग्रह करके रखने लायक। आभार आपका।
जवाब देंहटाएंएक बात रह गयी।
जवाब देंहटाएंस्वाती मघा गुजर जायेंगे
केवल पत्ते फेंट के
इन पंक्तियों का अर्थ समझ नहीं आया। कृपया स्पष्ट करें।
badhiya ,achanak kavita ne tevar badal liye..
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार सर जी ||
गज़ब!
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