शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

209. जमशेदजी नासरवानजी टाटा

राष्ट्रीय आन्दोलन

209. जमशेदजी नासरवानजी टाटा


जमशेदजी नासरवानजी टाटा

जमशेदजी नासरवानजी टाटा (3 मार्च 1839 - 19 मई 1904) उद्योगपति, देशभक्त, मानवतावादी, और महान परोपकारी व्यक्ति थे, जिनके आदर्शों और दूरदर्शिता ने एक असाधारण व्यापारिक समूह को आकार दिया। उन्होंने टाटा समूह की स्थापना की थी। उन्होंने जमशेदपुर शहर की भी स्थापना में योगदान दिया था। टाटानगर के नाम से मशहूर इस शहर को नियोजित तरीके से बसाया गया। नवसारी में पले-बढ़े जमशेदजी मात्र 14 साल की उम्र में ही अपने पिता के साथ मुंबई आ गए और व्यवसाय में कदम रखा था। पुजारियों के परिवार से होने के बावजूद, टाटा ने परंपरा को तोड़ते हुए अपने परिवार में पहले व्यवसायी बनने के लिए मुंबई में 1868 में  एक निर्यात व्यापार फर्म की स्थापना की।  उन्होंने 1869 में चिंचपोकली में एक दिवालिया तेल मिल खरीदी और इसे एक कपास मिल में बदल दिया, जिसका नाम उन्होंने एलेक्जेंड्रा मिल रखा।  बाद में उन्होंने कपड़ा उद्योग में कदम रखा और नागपुर में एम्प्रेस मिल की स्थापना की। 3 दिसंबर 1903 को मुंबई के कोलाबा तट पर 4 करोड़ 21 लाख रुपए के खर्च से तैयार ताज महल होटल की स्थापना की।  ताज महल होटल  भारत का पहला बिजली वाला होटल था। जमशेदजी टाटा ब्रिटेन घूमने गए तो वहां एक होटल में उन्हें भारतीय होने के कारण रुकने नहीं दिया गया। जमशेदजी ने ठान लिया कि वह ऐसे होटल बनाएंगे, जिनमें हिंदुस्तानी ही नहीं, पूरी दुनिया के लोग ठहरने की हसरत रखें। उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान , टाटा स्टील और टाटा पावर की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने 1898 में बैंगलोर (बेंगलुरु) में एक शोध संस्थान के लिए ज़मीन भी दान की और उनके बेटों ने अंततः वहाँ भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना की। आज बेंगलुरु का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस यानी IISc दुनिया के नामी-गिरामी संस्थानों में से एक है। उन्होंने 1901 में भारत के पहले बड़े पैमाने के लोहे के कारखाने का आयोजन शुरू किया और छह साल बाद इन्हें टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (अब टाटा स्टील) के रूप में शामिल किया गया। जमशेदजी टाटा के बेटों सर दोराबजी जमशेदजी टाटा और सर रतनजी टाटा के निर्देशन में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी भारत में सबसे बड़ी निजी स्वामित्व वाली स्टील निर्माता कंपनी बन गई। उन्होंने बॉम्बे-क्षेत्र के जलविद्युत संयंत्र की योजना बनाई जो 1906 में टाटा पावर कंपनी बन गई। टाटा भारतीय उद्योग जगत के ‘भीष्म पितामह’ के तौर पर पहचाने जाने वाले जमशेदजी टाटा स्वदेशीवाद के प्रबल समर्थक थे।

दक्षिणी गुजरात के एक शहर नवसारी में एक पारसी परिवार में 3 मार्च 1839 को जन्मे , टाटा का परिवार फारस (ईरान) से भारत आया था।  उनके पिता नुसरवानजी, पारसी जोरास्ट्रियन पुजारियों के परिवार में पहले व्यवसायी थे। उनकी मातृभाषा गुजराती थी। उन्होंने अपने परिवार की पुरोहित परंपरा को तोड़कर व्यवसाय शुरू करने वाले परिवार के पहले सदस्य बन गए।  उन्होंने मुंबई में एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक किया। उन्होंने हीराबाई डब्बू से शादी की और उनके बेटोंदोराबजी टाटा और रतनजी टाटा ने टाटा समूह के भीतर उनकी विरासत को आगे बढ़ाया। 19 मई 1904 को 65 साल की आयु में उनकी मृत्यु हुई थी।

श्री टाटा जैसा उदार, सरल और बुद्धिमान सज्जन शायद ही भारत में पहले कभी हुआ हो। उन्होंने जो कुछ भी किया, उसमें श्री टाटा ने कभी स्वार्थ नहीं देखा। उन्होंने कभी सरकार से किसी उपाधि की परवाह नहीं की, न ही उन्होंने कभी जाति या नस्ल के भेद को ध्यान में रखा। पारसी, मुसलमान, हिंदू - सभी उनके लिए समान थे। उनके लिए यह पर्याप्त था कि वे भारतीय थे। वह गहरी करुणा वाले व्यक्ति थे। गरीबों की पीड़ा के बारे में सोचकर उनकी आँखों में आँसू आ जाते थे। हालाँकि उनके पास अपार धन था, लेकिन उन्होंने उसमें से कुछ भी अपने सुखों पर खर्च नहीं किया। उनकी सादगी उल्लेखनीय थी।

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मनोज कुमार

 

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