राष्ट्रीय आन्दोलन
253. चंपारण में गांधीजी की जान लेने का
प्रयास
1917
चंपारण में महात्मा गांधी की जान लेने
की कोशिश की गई थी। यह कोशिश साल 1917 में हुई थी। उन दिनों गांधीजी मोतिहारी में थे। अंग्रेज़ नील व्यापारियों को
लग रहा था कि गांधीजी के आने से उनका कारोबार खत्म हो जाएगा। चंपारण सत्याग्रह के
बढ़ने से जमींदारों और ब्रिटिश अधिकारियों को चिंता थी। अंग्रेज़ों ने गांधीजी की
हत्या की योजना बनाई। वहां नील फैक्ट्रियों के मैनेजरों के नेता इरविन ने उन्हें
बातचीत और रात्रिभोज के लिए बुलाया और सोचा कि
अगर गांधीजी को खाने-पीने की चीज़ों में कोई ऐसा ज़हर दे दिया जाए जिसका असर कुछ
देर से होता हो, तो उनकी नाक में दम करने वाले इस आदमी
की जान भी चली जाएगी और उसका नाम भी नहीं आएगा। इरविन ने सोचा गांधीजी को जहरीला
दूध पिला दिया जाए।
इरविन ने अपने यहां काम करने वाले रसोइए बतख़ मियां अंसारी को यह काम करने के लिए कहा। बतख़ मियां से
कहा गया कि तुम वह ट्रे लेकर गांधीजी के पास जाओगे। बतख़ मियां का छोटा सा परिवार
था, बहुत कम जोत का किसान था, नौकरी से उसका काम चलता था।
उसने मना नहीं किया। ट्रे लेकर
गया। लेकिन जब गांधीजी के पास पहुंचा तो बतख़ मियां की हिम्मत नहीं हुई कि वह ट्रे
गांधीजी के सामने रख दे। वे भले अंग्रेजों के मुलाजिम थे, लेकिन एक सच्चे भारतीय की आत्मा उनमें बसती थी। गांधीजी ने उसे सिर उठाकर देखा तो बतख़ मियां रोने लगा। इस तरह
सारी बात खुल गई कि उसमें क्या था, क्या होने वाला था। बत्तख मियां
महात्मा गांधी के जीवनदाता बने थे। बत्तख मियां आजादी की लड़ाई के एक गुमनाम नायक हैं,
जिन्होंने महात्मा गांधी की जान
तो बचा ली, लेकिन खुद अंग्रेजों की यातना के
शिकार हुए। बत्तख मियां को इसकी सजा अंग्रेजों ने
उन्हें अपने अंदाज में दी। उनकी आंखों के सामने ही अंग्रेजों ने उनका घर जला दिया।
उन्हें जेल की सीखचों में डाल दिया गया। बाद में उनकी मौत हो गयी। बत्तख मियां पूर्वी चंपारण जिले के एकवा परसौनी गांव के रहने वाले
थे।
1957 में राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति थे। वो मोतिहारी गए। वहां एक जनसभा
में उन्होंने भाषण दिया। उन्हें लगा कि वो दूर खड़े एक आदमी को पहचानते हैं।
उन्होंने वहीं से आवाज़ लगाई- बतख़ भाई, कैसे हो? बतख़
मियां को मंच पर बुलाया और ये क़िस्सा लोगों को बताया और उनको अपने साथ ले गए। बाद
में बतख़ मियां के बेटे जान मियां अंसारी को उन्होंने कुछ दिन के लिए राष्ट्रपति
भवन में बुलाकर रखा।
एक क़िस्सा और है। जब चंपारण में
गांधीजी की हत्या की ये कोशिश नाकाम हो गई तो एक और अंग्रेज़ मिल मालिक था, उसे बहुत ग़ुस्सा आया। उसने कहा कि गांधीजी अकेले मिल जाएं तो मैं
गोली मार दूंगा। यह बात गांधीजी तक पहुंची। गांधीजी उसी के इलाक़े में थे। अगली
सुबह गांधीजी अपनी सोंटी लिए हुए उसकी कोठी पर पहुंच गए। उन्होंने वहां चौकीदार से
कहा कि उन्हें बता दो कि मैं आ गया हूं और मैं अकेला हूं। कोठी का दरवाज़ा नहीं
खुला और वो अंग्रेज़ बाहर नहीं निकला।
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मनोज कुमार
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