सोमवार, 7 दिसंबर 2009

समझदारी

--- मनोज कुमार

सरिता ने अपने बच्चों की परवरिश के लिए अपनी ज़रूरतों को हमेशा ही पीछे हटा दिया। इन बच्चों के चक्कर में सरिता वह सब भूल गई जो सपने हर एक कुंवारी लड़की अपने यौवन के दिनों में सजाती है। वो सजना, वो संवरना, गहने-कपड़े, पाउडर-क्रीम, मेकअप, सब भूल गई। वह सारा ध्यान अपने बेटों को सजाने संवारने में, उनकी ज़रूरतें पूरी करने में लगाती रही
वे बच्चे अब बड़े होने लगे हैं। उनके दोस्त घर में आते हैं। “मम्मी ज़रा चार कप चाय बना कर लाना।” अब उनके इस हुक्म की तामील भी करनी होती है। जब दोस्त चले जाते हैं, तो छोटा राजू बोलता है, “क्या मम्मी, तुम कपड़े भी ढ़ंग की नहीं पहन सकती?” तब सरिता को ख़्याल आता है ‘हे भगवान, इसी साधारण लिवास में वह बच्चों के मित्रों को ड्राईंग रूम में चाय दे आई थी।’ फिर मुस्कुराकर यह बोलते हुए चल देती है कि “घर में खाना पकाना ज़्यादा ज़रूरी है कि टिप-टॉप।” पीछे से राजू की आवाज़ आती है “सज-संवरकर और साफ-सुथरा रहने में क्या जाता है? पता नहीं कब तुम्हें समझदारी आएगी मम्मी?’’ सूरज जो अब तक उनकी बातें सुन रहा था बोला, “सबकी मम्मी घर चलाती है, पर वे सब तुम्हारे जैसे गंवार की तरह नहीं रहतीं। क्या सोच रहें होंगे हमारे दोस्त?’’
सरिता को लगा कि दोस्तों के सामने मां की उपस्थिति से बच्चों को शर्मिंदगी होती है। अब वह उनके दोस्तों के सामने नहीं जाएगी, इस तरह तो बिलकुल ही नहीं। अब जब उनके दोस्त आएंगे तो परदे के पीछे से चाय आदि भेज देगी। वह सोचती है सुरेश ने तो कभी ऐसा नहीं कहा। उनके भी दोस्त आते हैं। पर वह ख़ुशी-ख़ुशी उनसे इंट्रोड्यूस करवाता है--“मीट माई वाइफ। -- सरिता! बैठो सरिता।’’ --“जी, वो चाय .. ।’’ --“कोई बात नहीं। थोड़ी देर बाद बना लाना”। उसके पति के कई दोस्त ऊंचे पदों पर आसीन हैं। उनके सामने जाने में सरिता को कभी हीन भावना ने ग्रसित नहीं किया, न सूरज ने ही कभी असहज महसूस किया। पर बच्चे .. ...। वे अब बड़े हो गए हैं।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. केवल बच्चों का नजरिया बदलना होगा, वे बालसुलभ मन हैं वे इन बातों को नहीं समझते जो देखते हैं वही उन्हें अच्छा लगता है।

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  2. मां की भावना को आज के बच्चे समझने में असमर्थ हैं । लेकिन सभी ऐसे नहीं होते । यह माडरनिटी का प्रभाव है ।

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  3. आज के परिवेश का सुंदर चित्र खींचा है आपने . आज के लड़कों को कौन समझाए . बड़े होने पर वे खुद को ज्यादा समझदार समझने लगते हैं . लेकिन वे मात्र इतना ही तो चाहते हैं कि मेरी मां दूसरों के सामने अच्छे कंडीशन में दिखे....

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  4. आपने बहुत ही सुंदर रूप से आजके ज़माने का सही चित्रण प्रस्तुत किया है! आजकल के बच्चे माँ पिताजी की बातों को नहीं मानते और ये समझते हैं की वो बड़े हो चुके हैं और उन्हें हर बात का ज्ञान है!

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  5. बच्चे तो बड़े हो ही रहे हैं, कहानीकार के रूप में आप भी परिपक्वा हो रहे हैं ! धन्यवाद !!!

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  6. आज के बच्चे आज के जमाने की तरह बडे हो रहे हैं कहानी अच्छी लगी शुभकामनायें

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