-- मनोज कुमार
देवी मां के दर्शन के लिए पहाड़ की ऊँची चढ़ाई चढ़ कर जाना होता था। सत्तर पार कर चुकी उस वृद्धा के मन में अपनी संतान की सफलता एवं जीवन की कुछेक अभिलाषा पूर्ण होने के कारण मां के दरबार में शीष झुकाने की इच्छा बलवती हुई और इस दुर्गम यात्रा पर जाने की उसने ठान ली। चिलचिलाती धूप और पहाड़ की चढ़ाई से क्षण भर को उसका संतुलन बिगड़ा और लाठी फिसल गई।
पीछे से अपनी धुन में आता नवयुवक उस लाठी से टकराया और गिर पड़ा। उठते ही अंग्रेजी के दो चार भद्दे शब्द निकाले और चीखा, “ऐ बुढि़या देख कर नहीं चल सकती।”
पीछे से आते तीस साल के युवक एवं 35 साल की महिला ने सहारा दे उस वृद्धा को उठाया। युवक बोला,“भाई थोड़ा संयम रखो। इस बुढि़या का ही देखो IAS बेटा और डॉक्टर बेटी है। पर बेटे का प्रशासनिक अनुभव और बेटी की चिकित्सकीय दक्षता भी इसे बूढ़ी होने से रोक नहीं सका। और वह नालायक संतान हम ही हैं। पर भाई मेरे - बुढ़ापा तुम्हारी जिंदगी में न आए इसका उपाय कर लेना।”
अति सुन्दर सन्देश !
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश
जवाब देंहटाएं....बेहद प्रसंशनीय अभिव्यक्ति,बधाई!!!
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक!
जवाब देंहटाएंबेहद रोचक और मार्मिक है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सीख देती कथा.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंअच्दी सीख देती कहानी !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सन्देश देते हुए बढ़िया और रोचक पोस्ट! बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंgr8.......bahut sahi kaha hai
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा ... लघु प्रसंग के माध्यम से बहुत कुछ कह जाती है आपकी कथा ... संयम रखना बहुत जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंAchi Laghukatha...
जवाब देंहटाएं'दुनिया-ए-अजीब सरायेफानी देखी,
जवाब देंहटाएंहर चीज यहाँ की आनी-जानी देखी !
जो आके न जाए वो बुढ़ापा देखी,
जो जा के न आये वो जवानी देखी !!''
ये तो अवश्यम्भावी हैं ! हो के ही रहेंगे......... लेकिन सच कहा आपने, "संयम बहुत जरूरी है !! शैली अत्यंत श्लिष्ट है ! भीड़-भार मे आये दिन ऐसे दृश्य से हम सभी को दो चार होना पड़ता है..... लेकिन उसे इतने शब्द संयम के साथ अभिव्यक्त करना...... आपकी रचनाधर्मिता की दाद है !!
ऑंच पर '
जवाब देंहटाएंबुढ़ापा'
इस ब्लाग के आरंभ से अब तक बहुत कुछ बेहतरीन, स्तरीय और ज्ञानवर्द्धक सामग्री हमें पढ़ने मिली है. जहॉं तक लघुकथा का प्रश्न है यह कैसी होती है और क्या होती है जैसे प्रश्न प्रतिक्रिया और फोन के माध्यम से चर्चा में थे. आज जैसे ही 'बुढ़ापा' लघुकथा मनोज कुमार जी की पढ़ी, लगा मनोज जी और परशुराम राय जी के आदेश का पालन करते हुए ऑंच में हाथ धर दूँ.
इससे पहले मैंने अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं विशेषकर मनोजकुमार, परशुराम राय और हरीशप्रकाश गुप्त के लेखन को लेकर. विशेषकर 'ब्लेसिंग' और 'रो मत मिक्की' इन दो लघुकथाओं पर काफी प्रतिक्रियाएं भी प्राप्त हुईं. परन्तु 'ब्लेसिंग' मेरे विचार से अबतक एक अच्छा उदाहरण थी लघुकथा की. लेकिन, 'बुढ़ापा' पढ़ने के बाद यह क्या होती है और कैसे होती है, प्रश्न खत्म हो जाते हैं.
विषय, पात्र, शैली और प्रस्तुति की दृष्टि से एकदम गुँथीहुई, अर्थ से लबरेज़, मर्मस्पर्शी, बोधगम्य और शिक्षाप्रद कथा. यह एक 'क्लासिक एक्साम्पल' हो सकता है लघुकथा का.
कथा पढ़कर स्पष्ट है कि कथालेखन से पूर्व लेखक के मन और मस्तिष्क में कई ड्राफ्ट फ्रेम बने और जब यह अंतिम रूप में सामने आई तो इसकी शुरूआत से लगता है कि जैसे यह गुलज़ार या श्याम बेनेगल की किसी बेहतरीन हिन्दी फिल्म का पहला दृश्य हो. इसे लिखा नहीं रचा गया है. पूरी कथा में प्रस्तुति बिम्बाम्बत्मक है. कमाल यह है कि किसी पात्र का नाम नहीं है और पढ़ते हुए इसकी कहीं कमी नहीं खलती. बिना पात्रों के नाम दिए कथा लिखना यह लेखक की वैचारिक गहराई और कलात्मकता का परिचायक है. अधिकतर रचनाएं पात्रों के नाम से प्रचलित और अमर होती हैं जैसे गोदान उपन्यास का 'होरी'. पर, बिना पात्र का नाम लिए रचना प्रचलित हो पाए यह लेखन और कथ्य का निकष है.
इस कथा में समाज के चार ऐसे जिन्दा चरित्र हैं जो हर मोड़ पर दिखाई पडते हैं. बुढ़िया (मॉं, दादी, नानी आदि के रूप में) याने एक बेकार व लाचार बोझ भरी औरत जिसकी किसीको आवश्यकता नहीं होती. अल्हड़ नवयुवक जो सामान्यत: अक्सर बड़ों के साथ अशिष्टता से पेश आते देखे जा सकते हैं. दूसरी ओर आज के वक्त के मुताबिक डाक्टरी पढ़ी बेटी और आई ए एस बेटा जो स्वयं तो युवा, शिक्षित, प्रतिष्ठित और संपन्न हैं पर संस्कारी व जिम्मेदार भी हैं. इनका उस नवयुवक के साथ गाली देने पर विनयशीलता से पेश आना उसकी मानसिक स्थिरता और सिचुएशन हैंडलिंग को दर्शाता है कि है कि एक आई ए एस अधिकारी केवल शिक्षित नहीं होता अपितु जीवन व्यवहार में उस ज्ञान को शामिल भी करता है. अंत में उसके द्वारा कहा गया वाक्य किसी मार और श्राप से बढ़कर है.
'युवक बोला,“भाई थोड़ा संयम रखो। इस बुढि़या को ही देखो IAS बेटा और डॉक्टर बेटी है। पर बेटे का प्रशासनिक अनुभव और बेटी की चिकित्सकीय दक्षता भी इसे बूढ़ी होने से रोक नहीं सका। और वह नालायक संतान हम ही हैं। पर भाई मेरे - बुढ़ापा तुम्हारी जिंदगी में न आए इसका उपाय कर लेना।”
यदि बुढ़ों का और बुढ़ापे का आदर क्या होता है कोई पूछे तो उसे यह कथा सुना देना काफी होगा.
कथा के कुछ और भी पहलू हैं जिसे पढ़कर आनंद लिया जा सकता है. कुल मिलाकर एक बेहतरीन लघुकथा मनोज जी ने लिखी है जिसके लिए वे बधाई के हक़दार हैं.
होमनिधि शर्मा
ऑंच पर '
जवाब देंहटाएंबुढ़ापा'
इस ब्लाग के आरंभ से अब तक बहुत कुछ बेहतरीन, स्तरीय और ज्ञानवर्द्धक सामग्री हमें पढ़ने मिली है. जहॉं तक लघुकथा का प्रश्न है यह कैसी होती है और क्या होती है जैसे प्रश्न प्रतिक्रिया और फोन के माध्यम से चर्चा में थे. आज जैसे ही 'बुढ़ापा' लघुकथा मनोज कुमार जी की पढ़ी, लगा मनोज जी और परशुराम राय जी के आदेश का पालन करते हुए ऑंच में हाथ धर दूँ.
इससे पहले मैंने अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं विशेषकर मनोजकुमार, परशुराम राय और हरीशप्रकाश गुप्त के लेखन को लेकर. विशेषकर 'ब्लेसिंग' और 'रो मत मिक्की' इन दो लघुकथाओं पर काफी प्रतिक्रियाएं भी प्राप्त हुईं. परन्तु 'ब्लेसिंग' मेरे विचार से अबतक एक अच्छा उदाहरण थी लघुकथा की. लेकिन, 'बुढ़ापा' पढ़ने के बाद यह क्या होती है और कैसे होती है, प्रश्न खत्म हो जाते हैं.
विषय, पात्र, शैली और प्रस्तुति की दृष्टि से एकदम गुँथीहुई, अर्थ से लबरेज़, मर्मस्पर्शी, बोधगम्य और शिक्षाप्रद कथा. यह एक 'क्लासिक एक्साम्पल' हो सकता है लघुकथा का.
कथा पढ़कर स्पष्ट है कि कथालेखन से पूर्व लेखक के मन और मस्तिष्क में कई ड्राफ्ट फ्रेम बने और जब यह अंतिम रूप में सामने आई तो इसकी शुरूआत से लगता है कि जैसे यह गुलज़ार या श्याम बेनेगल की किसी बेहतरीन हिन्दी फिल्म का पहला दृश्य हो. इसे लिखा नहीं रचा गया है. पूरी कथा में प्रस्तुति बिम्बाम्बत्मक है. कमाल यह है कि किसी पात्र का नाम नहीं है और पढ़ते हुए इसकी कहीं कमी नहीं खलती. बिना पात्रों के नाम दिए कथा लिखना यह लेखक की वैचारिक गहराई और कलात्मकता का परिचायक है. अधिकतर रचनाएं पात्रों के नाम से प्रचलित और अमर होती हैं जैसे गोदान उपन्यास का 'होरी'. पर, बिना पात्र का नाम लिए रचना प्रचलित हो पाए यह लेखन और कथ्य का निकष है.
इस कथा में समाज के चार ऐसे जिन्दा चरित्र हैं जो हर मोड़ पर दिखाई पडते हैं. बुढ़िया (मॉं, दादी, नानी आदि के रूप में) याने एक बेकार व लाचार बोझ भरी औरत जिसकी किसीको आवश्यकता नहीं होती. अल्हड़ नवयुवक जो सामान्यत: अक्सर बड़ों के साथ अशिष्टता से पेश आते देखे जा सकते हैं. दूसरी ओर आज के वक्त के मुताबिक डाक्टरी पढ़ी बेटी और आई ए एस बेटा जो स्वयं तो युवा, शिक्षित, प्रतिष्ठित और संपन्न हैं पर संस्कारी व जिम्मेदार भी हैं. इनका उस नवयुवक के साथ गाली देने पर विनयशीलता से पेश आना उसकी मानसिक स्थिरता और सिचुएशन हैंडलिंग को दर्शाता है कि है कि एक आई ए एस अधिकारी केवल शिक्षित नहीं होता अपितु जीवन व्यवहार में उस ज्ञान को शामिल भी करता है. अंत में उसके द्वारा कहा गया वाक्य किसी मार और श्राप से बढ़कर है.
'युवक बोला,“भाई थोड़ा संयम रखो। इस बुढि़या को ही देखो IAS बेटा और डॉक्टर बेटी है। पर बेटे का प्रशासनिक अनुभव और बेटी की चिकित्सकीय दक्षता भी इसे बूढ़ी होने से रोक नहीं सका। और वह नालायक संतान हम ही हैं। पर भाई मेरे - बुढ़ापा तुम्हारी जिंदगी में न आए इसका उपाय कर लेना।”
यदि बुढ़ों का और बुढ़ापे का आदर क्या होता है कोई पूछे तो उसे यह कथा सुना देना काफी होगा.
कथा के कुछ और भी पहलू हैं जिसे पढ़कर आनंद लिया जा सकता है. कुल मिलाकर एक बेहतरीन लघुकथा मनोज जी ने लिखी है जिसके लिए वे बधाई के हक़दार हैं.
होमनिधि शर्मा
BEhtrin LAghu KAtha....... Maaan gaye sahib ji aapko.... khoob badhiya samay par kataksh kiya hai.
जवाब देंहटाएंश्रद्धेय शर्माजी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
इतनी सुन्दर और समीक्षात्मक प्रतिक्रया के लिए हम आपके हृदय से आभारी हैं. हमारी हार्दिक इच्छा है यह विश्लेषण हमारे ब्लॉग के मुख्या पृष्ठ पर आये. अतएव सभी ब्लॉग सदस्यों की ओर से मैं आप से हार्दिक निवेदन करता हूँ कि आप हमारे अनुरोध को स्वीकार कर अपने प्रत्यक्ष अंशदान से ब्लॉग पर साहित्य श्री की सेवा में हमारा सहयोग करें !!
विनीत,
केशव (करण समस्तीपुरी)
एक कटु सत्य बहुत प्रभावशाली तरह से रखा है...संवेदनशील विचार
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 19 -04-2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....आईने से सवाल क्या करना .
वाह! मनोज जी कम शब्दों में कही एक बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण सीख !!
जवाब देंहटाएंकटु सत्य
जवाब देंहटाएंसार्थकता लिए हुए सटीक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंlaghu katha aaj ye pahli baar padhi jo rochak to hai hi lekin Homnidhi Sharma ji ki tippani padh kar bhi bahut gyan vardhan hua.
जवाब देंहटाएंइस लघु-कथा के लेखक को मेरा नमन !
जवाब देंहटाएंमनोज जी,यह संदेश कभी पुराना नहीं हो सकता .