शनिवार, 4 सितंबर 2010

फ़ुरसत में ….! कुल्हड़ की चाय!

फ़ुरसत में ….!

कुल्हड़ की चाय!


मनोज कुमार

मेहरबान! क़दरदान!!

कोलकाता !

बारीश की नम फुहार .. पूरबइया,पछुआ बयार .. पसीनों से सराबोर तन ... परोपकार से भरा मन .. लोकल की भीड़-भाड़ .. ट्रामों की सुस्त रफ्तार .. घर लौटते मजदूर थक-हार!! सुबह-सबेरे होती भोर .. देर रात तक ट्राफिक का शोर .. संस्कृति की पहचान .. कल्पनाओं की उड़ान .. शब्दों की मिठास .. सफलता का आकाश ... काली की आस्था .. मौलिकता की परकाष्ठा .. आपस का प्यार .. सिग्नल पर टैक्सी की कतार .. ! विक्टोरिया मेमोरियल .. हुगली कलकल छलछल ... दयानंद का ज्ञान .. परमहंस का मकान .. टैगोर की गीतांजली .. शरत की रचनावली !! बरसों का अपनापन .. आत्‍मीय, चिरपरिचित जन!

कोलकाता !

मुझे तुम अच्छे लगे!!

बंगाल की धरती, समाज को देखने और अनुभव करने के सुख के मामले में, अपने आप में अद्वितीय है। यहां की भूमि जहां एक ओर सहृदय, सामाजिक और रसिक लोगों की दुनियां है, वहीं दूसरी ओर जीवन की आपाधापी, और बिखराव के बीच परम्परा को सहेजती-समेटती दुनियां का आंगन भी है।

कोलकाता आप आइए तो आपको कुछ ही घंटो में ऐसा लगने लगेगा जैसे आप यहां बरसों से थे। बड़ा ही आत्‍मीय, परिचित और सगा-सा। वैसे तो पूरे देश में और खास कर सभी महानगरों में तेजी से बदलाव आ रहा है। कोलकाता भी इसका अपवाद नहीं है। बदलाव के साथ अगर इस शहर का मिजाज़ बदला है तो आत्मीय लोगों की भीड़ भी बढ़ी है। साथ ही साथ टैक्सियों, गाडि़यों, बसों के भोपुओं से निकलने वाली आवाज़ भी। उच्‍च न्‍यायालय ने निर्णय के बाद 15 साल से पुरानी बसों के सड़क से हटने के बाद नई, डिजाइनर बसें भी आ गई है। कुछ ट्रामों का कायाकल्‍प हुआ है तो कुछ नई आ गई है।

कुल्हड़ में चाय पीते हुए न तो मुझे ये लगा कि मैं देश की अर्थव्यवस्था पर शहीद हो गया हूं, और न ही ये कि देश में समाजवाद आ गया हो। बल्कि हर चुस्की के साथ मिट्टी का यह कुल्हड़ मुझे आपनी माटी के साथ जुड़े होने के मेरे संकल्प को और मज़बूत कर रहा था।

पर, .... जो सदा बहार है इस शहर में, वह है नुक्कड़ पर, फ़ुटपाथ पर, ठेले पर, यहां पर, वहां पर, कुल्‍हड़ की चाय !!! .... अहा !!! जब मैं पहली बार सत्तर के दशक में यहां आया था तब भी, नौकरी में आने के बाद जब नब्बे में आया था तब भी, चाय कुल्हड़ में मिलती थी, अभी भी मिलती है।

कोलकाता जब जगता है, तो सड़क किनारे की चाय की दुकानें भी कुल्‍हड़ के साथ जग जाती हैं। फुटपाथ अभी भी बहुत सारे लोगों का आवास है। और उनमें से कई आपको सुबह की चाय का सुबह-सुबह निमंत्रण देते मिलेंगे। एक और, ... जो खास बात है इस शहर में, वह है, हर नुक्कड़ पर, चौराहों पर, स्‍थानीय स्‍वयंसेवी दलों द्वारा प्रदत्त अखबार, एक खास किस्म के डिज़ाइन किए स्टैण्ड पर। आस पास के लोग सुबह-सुबह जुट जाते हैं इसे पढने। आज भी, कुल्‍हड़ चाय के साथ इन अखबारों को पढ़ते लोग भी, नहीं बदले हैं। ... और मज़े की बात तो यह है कि वे मोहनबगान से लेकर मैनचेस्‍टर युनाइटेड के परफारमेंस पर अपने विशिष्‍ट कमेंट के साथ चर्चारत हैं, आज भी !

अपनी मॉर्निन्ग वॉक के दर्मियान गुज़रते हुए खास स्थानीय अंदाज़ में बड़ी ही आत्मीयता से मुझे पकड़ा देता है चिड़्याखाना के सामने ठेला लगाए हुए चाय वाला! देसी, खालिस बंगाली कुल्हड़ की चाय! मेरे बगल से गुज़रते हुए मेहता सहब थोड़े से हत्प्रभ हैं, फ़ुटपाथ पर खड़े होकर कुल्हड़ में चाय पीते हुए मुझे देख कर। मैं अपनी चाय की चुस्कियों का मज़ा लेते हुए उन्हें नज़र अंदाज़ कर देता हूं।

कुल्हड़ में चाय पीते हुए न तो मुझे ये लगा कि मैं देश की अर्थव्यवस्था पर शहीद हो गया हूं, और न ही ये कि देश में समाजवाद आ गया हो। बल्कि हर चुस्की के साथ मिट्टी का यह कुल्हड़ मुझे आपनी माटी के साथ जुड़े होने के मेरे संकल्प को और मज़बूत कर रहा था।

101 टिप्‍पणियां:

  1. कितना अपना सा है कोलकाता ..आमार तोमार सोनार कोलकाता !

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  2. वाह, आपने 35 साल पहले के कलकत्ते की याद दिला दी ।

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  3. पढ़कर अच्छा लगा। सुन्दर शब्दों में ढाला है कोलकाता के आम जीवन को, कुल्हड़ की चाय के साथ। धन्यवाद।

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  4. छोटे-छोटे दीये जैसे कुल्हड़ से तो हमें चाय का मजा ही नहीं आया। दो घुंट में ही कुल्हड़ खाली।
    इसलिए पाँच कुल्हड़ चाय पीनी पड़ी।

    बहुत बढिया

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  5. kolkata hi aisa sahar hai jahan Apne maati se door rah kar bhi Hame uski sondhi sugandh ki halki si khusboo kahin na kahin kisi na kisi bahane chahe kulhad ki chay ho ya bhojpuri shabd -hame apne mool swarup se barbas hi jod deti hai.Rahi Masoom Raja ka upnyas 'Adha Gaon' men thik hi likha hai-laaga-laaga jhulaniya ke dhakka balamu kalkata pahunch gaye.

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  6. दो विरोधाभासी विचारधाराओं में सामेय रख पाना कोलकता का ही दमखम है।

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  7. कुल्हड़ का यह स्वाद अगर औरों की भी समझ में आ जाए,तो कुम्हारों की कुंभलाती ज़िंदगी मे भी थोड़ी रोशनी भरने की उम्मीद जगेगी।

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  8. ललित भाई
    आप तो पिया करें चाय
    घड़े में
    या लें सुराही
    और गर्दन तक चाय
    से नाप लें
    गर्म होती है
    उसकी भाप भी लें
    एक पंथ दो काज।

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  9. कोलकता का शानदार परिचय दिया ...कुछ समय वहाँ रहने का मौका मिला था ...और आपके लिखने से सब कुछ आँखों के आगे आ गया ...बहुत सुन्दर और सटीक वर्णन किया है ...

    कोलकता पर अभी बदलाव के ज्यादा लक्षण नहीं दिखाई देते हैं ...

    और कुल्ल्हड़ कि चाय की बात ही क्या .

    .कुल्हड़ में चाय पीते हुए न तो मुझे ये लगा कि मैं देश की अर्थव्यवस्था पर शहीद हो गया हूं, और न ही ये कि देश में समाजवाद आ गया हो..

    बहुत बढ़िया बात कह डी है ..सुन्दर लेख के लिए बधाई

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  10. @ अर्विंद मिश्र जी,
    बहुत दिनों के बाद आप पधारे हमारे आंगन में।
    कुल्हड़ की चाय के साथ आपका स्वागत है!

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  11. @ आशा जी,
    35 साल बाद भी आप नहीं भूलीं कोलकाता को, यही तो इस शहर का आकर्षण है जो हम वर्षों तक इसकी यादों को संजोये रहते हैं।

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  12. @ समीर जी
    सिर्फ़ याद कर लेने से काम नहीं चलेगा, फ़िर आइए, कुल्हड़ की चाय पीने।

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  13. @ निशांत जी,
    "अपने कोलकाता" --- कितनी आत्मीयता से आपने इसे पुकारा। अच्छा लगा।

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  14. @ हरीश जी,
    जब जगह, और संस्मरण सुंदर हो तो शब्द तो अपने आप हो जाते हैं।

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  15. @ ललित जी,
    मज़ा आया आपके साथ पांच कुल्हड़ खाली करना।

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  16. @ प्रेमसरोवर जी
    बहुत खूब कहा कि यहां पर अपने देस से दूर रहकर भी अपनी माटी से जुड़े रहने का अहसास बना रहता है।

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  17. बचपन में एक बार कोल्कता गई थी ..कुछ खास याद नहीं वहां की ट्राम के अलावा ..आपने बहुत अच्छी तरह घुमा दिया फिर ..और कुल्लड की चाय ..वाह ..
    बेहतरीन लिखा है .

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  18. @ रश्मि जी
    चाय के सोंधे स्वाद से कुल्हड़ में चाय पीने का आनंद कई गुणा बढ़ जाता है, है ना?

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  19. @ प्रवीण जी,
    यही तो इस शहर को जीवंत बनाए हुए है।

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  20. @ राधा रमण जी
    सच है, हम आधुनिकीकरण के नाम पर कई घरों को बेरोज़गारी के कगार पर पहुंचा चुके हैं।

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  21. @ अविनाश जी,
    आपका आना,
    कुल्हड़ की चाय के
    साथ
    बतियाना
    आत्मीय अनुभुति से
    सराबोर कर गया।

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  22. @ उदय जी,
    बहुत दिनों बाद दिखे!
    कुल्हड़ की चाय के साथ आपका स्वागत है।

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  23. @ संगीता जी,
    दिन कुछ ही क्यों न गुज़ारों हों यहां, यादें तो ढेर सारी जुड़ी हैं ना?

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  24. @ आचर्य परशुराम राय जी,
    आपका स्नेह बना रहे। कुल्हड़ की चाय पसंद की आपने, आभार।

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  25. @ शिखा जी,
    आपकी यादें ताज़ा हुई, यही तो खासियत है कुल्ह्ड़ में। आपका आभार।

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  26. इतने सारे कुल्हड़ की तस्वीरें और कुल्हड़ की चाय देख तो पीने का मन हो आया.....बहुत ही सुन्दर विवरण

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  27. @ रश्मि रवीजा जी,
    बहुत दिनों बाद आपका आगमन हुआ है। कुल्हड़ की चाय के साथ आपका स्वागत है।

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  28. सही कह रहे है मनोज जी , मैं अभी कुछ महीनो पहले ऑफिस के काम से गया था ! बोलिगंज में पुरना दास रोड पर जो मेडिकल सेंटर है उसके कोने पर की दुकान में दो दिनों तक बस कुल्हड़ में ही चाय पी , मगर कुल्हड़ में चाय इतनी कम आती है कि सुबह- सुबह एक कुल्हड़ की चाय से लगता ही नहीं था कि चाय पी है, इसलिए दो बार की पीनी पड़ती थी !

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  29. मै आज से पन्द्रह साल पहले कोलकत्ता गई थी दो साल पहले भी गई थी मुझे ज्यादा फर्क नहीं पता चला जबकि इस बीच मुंबई और दिल्ली में काफी फर्क आ गया | हमरे यूपी में उसे "पुरवा" कहते है काफी समय हो गया उसमे कुछ पिये अब कहा मिलती है पहले शादियों में उसमे पानी दिया जाता था उसमे से बहुत अच्छी खुसबू आती थी |

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  30. कुल्हड़ में चाय पीते हुए न तो मुझे ये लगा कि मैं देश की अर्थव्यवस्था पर शहीद हो गया हूं, और न ही ये कि देश में समाजवाद आ गया हो। बल्कि हर चुस्की के साथ मिट्टी का यह कुल्हड़ मुझे आपनी माटी के साथ जुड़े होने के मेरे संकल्प को और मज़बूत कर रहा था।
    --
    इस प्लास्टिक के युग में इस प्रकार के आलेख हमारे गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हैं!
    --
    काश् वो दिन लौटकर आयें!
    --
    इससे कुम्हारों के जीवन में तो उजाला आयेगा ही साथ ही हमारी भी सेहत में सुधार आयेगा!

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  31. कलकत्ता का जन जीवन हू-ब-हू उतार दिया है , पते की बात शहीद हो जाने वाली लिखी है ।

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  32. मैं तो कभी कोलकाता गया ही नहीं.. अलबत्ता कुल्हड़ की चाय हमारे यहाँ भी मिलती है(भारत में).. उसका स्वाद जरूर मुँह में ला दिया आपने.. बढ़िया पोस्ट..

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  33. बहुत सुना है कलकत्ता के बारे में

    वाकई ही इतना अपनापन है..........

    जायेंगे......... राजस्थान का कुल्हड़ को बंगाली कुल्हड़ से मिलाने.........

    जरूर जायेंग साहेब...

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  34. हाँ दीपक मशाल जी कि टिपण्णी देखि ..... कुछ कुछ अजीब लगा.....

    हमारे यहाँ भी मिलती है(भारत में)..

    गोया आपका भारत अलग है........

    आपने ये कहा होता इंडिया में तो चलता ....... अपन मान कर चलते हैं.... तुम्हारा इंडिया और हमारा भारत.

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  35. चाय के ऑक्शन में जब कोलकाता जाना होता है तो यही चाय पीने को मिलती है। होती तो बहुत स्वादिष्ट है मगर मुझे तीन बार पीनी पड़ती है अपना एक कप पूरा करने के लिये।

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  36. सर जी ..कुल्हड़ की चाय का मज़ा ही कुछ और है .
    आपने पोस्ट की शरुआत में जो पंक्तियाँ लिखी हैं ..
    बहुत ही उम्दा हैं .

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  37. मनोज जी को प्रणाम,

    जाने कितनी यादें ताजा कर दीं आपने इस पोस्ट के जरिये। हावड़ा में मेरी बड़ी दीदी के पतिदेव कार्यरत हैं...अपने मैथिली वाले "ओझाजी" ...तो छुट्टियों में एक बार जाना हो ही जाता है। हावड़ा ब्रीज की शाम ढ़ले की वो लोकल पकड़ने की भीड़ हमेशा मुझे विस्मित करता है। पुल पे खड़ा होकर उस भीड़ को निहारना मेरा प्रिय शगल है....

    और चाय कुल्हड़ जितनी स्वाद वाली तो और कोई हो ही नहीं सकती, भले ही ये बरिश्ता और कैफे काफी डॆ वाले कितने ही फ्लेवर ला दे बाजार में...

    कैसे हैं आप?

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  38. आपने जिस तरह से कोल्कता के कल्चर का वर्णन किया तो एक बार को दिल किया की अब हम भी झोला उठा ले. बबली बंटी की तरह..अब तो हम भी झोला उठा के चले...शहर..शहर..गाँव गाँव..:( :(

    और कुल्हड़ की चाय की वो सोंधी खुशबू..बहुत कुछ याद दिला गयी.

    और अंत की लाईन्स पर एक सच्चे मन की सी बात कह दी.
    बढ़िया लेख.

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  39. मनोज जी कोल्कता का जिस अंदाज में आपने परिचय दिया है.. लगा कि कोई डोक्युमेंटरी देख रहा हू... कुल्हड़ की चाय... कोलकाता की पहचान है.. केवल चाय ही क्यों.. मुझे याद है .. रोसगुल्ला भी बड़े कुल्हर में पैक हुआ करता था... बहुत स्वाद आता था उस रोस्गुल्ले और उसके रस का भी.. मिटटी, संस्कृति और समाज के जितने करीब कोल्कता महानगर है.. शायद कोई और मेट्रो नहीं... ए़क आत्मीय आलेख के लिए बधाई.. ए़क बात और..ऊपर की टिप्पणी में कुछ लोगो का कहना था कि कुल्हड़ छोटी होती है.. तो कुछ ऐसा ही जैसे दुसरे मेट्रो में १/२ या २/३ चाय फरमाते हैं लोग.. समाजवाद का ए़क और चेहरा है छोटा कुल्हड़.. जो सबके लिए अफोरदेबल बन जाता है... यह आम आदमी का अर्थशास्त्र है...

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  40. कुल्ल्हड़ की चाय का भी अपना ही मज़ा है.

    मेरी ग़ज़ल:
    मुझको कैसा दिन दिखाया ज़िन्दगी ने

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  41. विलम्ब के लिए खेद!!
    आज पहली बार आपकी पोस्ट को पढकर जलन हो रही है. हमारे ऑफिस के सामने वाले फ़ुटपाथ पर वो दीदी मुनी कुल्हड़ में चा लिए बिस्कुट डुबाडुबाकर अपने हाथ से कुत्तों को खिला रही हैं, चौराहे पर अधर में चिपके जुगांतर और आनंदो बाजार पत्रिका पर राजनीति से लेकर खेला तक डिस्कस हो रहा है.. बुद्ध्देब से ममोता दीदी तक की चर्चा... मेट्रो में बैठे बाबू मोशाय के हाथ में The Unputdownable टेलिग्राफ़...माँ काली के बीच बसों में रन, बन, जल और जंगल में आपकी रक्षा को तत्पर बाबा लोकनाथ... पी सी सॉरकार, डेरेक ओ ब्रायन और सदाबहार शुचित्रा शेन... कॉलेज स्ट्रीट की किताबें, लेनिन शॉरॉनी के काले तवे वाले ग्रामोफोन रेकॉर्ड, पार्क स्ट्रीट की रौनक़...और जहाँ पार्क स्ट्रीट ख़तम होती है वहाँ बसे जनाब मुनव्वर राना...
    एक कोलॉज बन गया आपकी पोस्ट पढकर...
    मनोज जी एक काम करेंगे मेरा... कभी जॉब चार्नक के उस शहर से मिलकर बताएँ कि मैं ख़ुश तो हूँ, लेकिन बहुत मिस करता हूँ, मेरे प्यारे शहर कोलकाता को!!

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  42. .
    .
    .
    अति सुन्दर आलेख,

    आपने यह भी नोटिस किया होगा कि बहुत अच्छी बनी हुई चाय ही कुल्हड़ में पीने पर अच्छी लगती है...थोड़ी सी भी किसी भी चीज में कमी हो तो कुल्हड़ उस चाय को पीने लायक नहीं छोड़ता...जबरदस्त क्वालिटि कंट्रोलर है कुल्हड़ !

    आभार!


    ...

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  43. चाय पीते समय ,कुल्हड़ का होंठ से चिपकना ,अब तो गांव में भी डिस्पोजेबल गिलास आ गया ।

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  44. मनोजजी
    अभी तक तो जीवन में एक ही कोलकाता जाना हुआ है वो भी बेलूर मठमें रुके थे तो कलकत्ता को ज्यादा नजदीक से नहीं देख पाए कितु किताबो में ,रामकृष्ण साहित्य ,विवेकंन्न्द साहित्य में खूब पढ़ा है |और लगता है वो सब जगहे आसपास ही है और फिर आपके इस प्यारे से आलेख और कुल्हड़ की चाय ने फिर से मिठास भर दी कलकत्ता की सुरीली संस्क्रती में |
    आभार

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  45. @ गौतम जी
    बहुत अच्छा हूं।
    और आपकी ये अत्मीयता से सराबोर टिप्पणी आंखें नम कर गई।

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  46. वाह कुल्हड़ वाली चाय, इसका तो आनंद ही कुछ और है... हम तो केवल एक बार ही कोलकाता आये हैं... और ये आनंद नहीं ले पाये हैं...

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  47. क्षमा करें, मैं कभी भी कलकत्ते में सहज नहीं हो पाया...नहीं ही जँचा ये शहर मुझे.

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  48. मिटटी में जो अपनापन है वो अपनापन कहीं भी नहीं ,ये जितने पांच सितारा होटल और सुविधा हैं वो सभी नक़ल और असंवेदनशीलता को बढ़ा रहें हैं ..

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  49. सच में कुल्हड़ में चाय पीने का मजा ही कुछ और है. लेख बहुत ही अच्छा लगा.

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  50. मनोज सर जी, आपकी 'कुल्हड़ की चाय' ने तो मेरे मुह में पानी ला दिया. अब तो आपसे जब मुलाकात होगी तो कुल्हड में चाय की चुस्की जरुर लूंगा.

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  51. लालूजी ने एक पहल की थी कुल्हड़ को लोकप्रिय बनाने की। मुझे लगता है,ममता जी के लिए यह काम अधिक सहज होना चाहिए।

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  52. कोलकाता एक बार आया हूँ और यह नजारा देखा है...अभी हाल ही में अज्ञेय की कहानी जीवन -शक्ति में कलकत्ता के सेंट्रल एवेन्यू, गिरीश पार्क का जीक्र पढ़ा । बहुत ही मार्मिक कहानी है यह । आपने तो कलकत्ते की कुल्हड़ की चाय की महक हम तक पहुँचा दी जनाब !!!

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  53. कुल्ल्हड़ कि चाय की बात ही क्या !

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  54. सुन्दर शब्दों में ढाला है कोलकाता के आम जीवन को, कुल्हड़ की चाय के साथ।

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  55. बहुत सुन्दर। चाय की तरह स्वाद वाली पोस्ट!

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  56. उड़ी बाबा ...
    ई जे चा-टार फोटो गुला तुले छेन आपनी , खूब शुंदोर ...
    चा खाबार एमोन इच्छा होयेछे ...जे की बोलबो... !
    आपनी खूब भालो कोरे लेखा कोरे छेन...
    आमार मोने होछे जे ...कोलकाता पालिए एशे जाबो...
    मोनोज बाबू...आमी बांगला कोथा बोलते पारी न..किन्तु ...बोल्छी गो....
    हा हा हा हा...

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  57. manoj ji badhee. bahut prabhavkaiee tareeke se kolkata ki kullad ki chay ke bahane vahan kee desi khusboo ki jhalak dikhaee hai. sadhuvad.

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  58. बहुत हो अछा लगा सुखद समय में लौट कर आपकी पोस्ट के साथ ... वैसे तो कोलकाता २ -३ बार ही गया हूँ पर वहाँ के फुटपाथ की यादें हमेशा ताज़ा रहती हैं ... मूडी और कुल्लड़ वाली चाय भी ....

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  59. कुल्ल्हड़ की चाय और दूध का अपना ही मज़ा है.पर यहाँ तो कलकत्ते की सैर और कुल्हड़ की चाय मजा दुगना हो गया

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  60. lo kallo baat ji, abhi ham 30 july 3 august tak kolkata me hi the, kulhad ki chai bhi piye. shahar pasand aaya.... log bhi....

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  61. प्रवाहमय शैली में कल-कल-छल-छल बहते शब्दों ने नागरी सौन्दर्य को चार चन्दा लगा दिया है. कोलकाता से अब तक मेरा वास्ता महज दम-दम हवाई अड्डा, सियालदह और हावरा स्टेशन से लेखक के आवास तक का रहा है. उम्मीद है अगले अवसर पर उस चित्र को जी सकूँगा जो उभर आया है हृदय में इस ललित निबंध को पढ़ कर. धन्यवाद !!

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  62. @ गोदियाल जी
    कोलकाता का संस्‍मरण बांटने के लिए और प्रोत्‍साहन के लिए आभार!

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  63. @ अंशुमाला जी,
    अपनी आस्‍था और पंरपराओं के बंधे रहना ही यहां की जीवंतता है। उपस्थिति और अनुभव बांटने के लिए धन्‍यवाद!

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  64. @ शस्‍त्री जी,
    आपने बहुत सही कहा, न सिर्फ अतीत से जुड़ा होने का भाव बल्कि बहुत से लोगों को रोजगार का भी इससे जुड़ा होना इसे अतिमहत्‍वपूर्ण बनाता है।

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  65. @ शारदा जी, अजय जी, दीपक मशाल जी, विरेंद्र जी, शाहनवाज जी
    प्रोत्‍साहन के लिए आभार।

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  66. @ दीपक बाबा जी
    अवश्‍यक आइए कोलकाता
    स्‍वागत है।

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  67. @ सुनीता शानु जी
    बहुत बहुत धन्‍यवाद!

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  68. @ अनामिका जी
    बस अब झोला उठा ही लीजिए...। मुझे विश्‍वास है यहां से जब वापस जा रही होंगी तो अपनापन, विश्‍वास और स्‍नेह से वह झोला भरा-पूरा होगा।

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  69. @ अरूण जी,
    आप के शब्‍द भाव विह्वल कर गए।

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  70. @ संवेदना के स्‍वर
    इस शहर से जुड़ी आपकी संवेदना निश्चित ही जन जन तक पहुंचे।

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  71. @ प्रवीण शाह जी,
    आपसे सहमत। धन्‍यवाद आपका। शायद पहली बार आप हमारे यहां पधारें।

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  72. @ शोभना जी,
    आपने तो एक बार में ही कोलकाता के अध्‍यात्मिक और सांस्‍कृतिक केंद्रों का परिचय कर लिया। आपकी उपस्थिति मनोबल बढ़ा गई।

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  73. @ विवेक जी, काजल जी, शमीम जी, मोहसिन जी, शिक्षा मित्र जी, रचना जी
    आपकी उपस्थिति एवं बहुमूल्‍य विचारों के लिए आभार।

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  74. @ मनोज भारती जी, जुगल जी, रीता जी, अनूप जी, हास्‍यफुहार जी,
    बहुत-बहुत आभार आपका आपकी उपस्थिति और प्रेरक बातों के लिए।

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  75. @ अदा जी,
    की भीशोन भालो बांगला बोलेछेन। एतो दिन माटी थेके दुर थाकार पोरेओ अपनार बांग्ला, सोनार बांग्‍लार माटी साथे भालोबाशा, एई शोब देखे खूब खुशी होलो।

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  76. @ एस सिंह जी,
    पहली बार आप पधारे। आपका आभार!

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  77. @ दिगम्‍बर जी, रचना जी, संगीत जी, मेरे भाव जी इन भावभीनी बातों के लिए आभार!

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  78. @ करण जी,
    इस बार आइए तो साथ कोलकाता के फुटपाथ पर सैर करेंगे।

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  79. यह कुल्हड़ मुजे अपनी माटी के साथ जुड़े होने के
    मेरे संकल्प को और मजबूत कर रहा था......

    पढ़कर कुछ दिन पूर्व पढ़ी किसी ग़ज़ल की लाईनें याद हो आईं -

    मेरे होने का सबब मुझको बता कर यारो
    मेरे सीने में धड़कती रही मिट्टी मेरी
    मैं जहां भी था मेरा साथ न छोड़ा उसने
    ज़ेहन में मेरे महकती रही मिट्टी मेरी।



    ललित जी से सहमत हूँ लेकिन आजकल बड़े कुल्हड़ भी मिलते हैं। 21 सालों से कलकत्ते में हूँ। उससे पहले जब पहली बार 1988 में आई थी तो वापस जाकर मैंने माँ से यही कहा था कि वहाँ तो लोग दीये समान कुल्हड़ में चाय पीते हैं। उससे तो दांत भी गीले नहीं होते।


    बहुत शानदार आलेख। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  80. यह कुल्हड़ मुजे अपनी माटी के साथ जुड़े होने के
    मेरे संकल्प को और मजबूत कर रहा था......

    पढ़कर कुछ दिन पूर्व पढ़ी किसी ग़ज़ल की लाईनें याद हो आईं -

    मेरे होने का सबब मुझको बता कर यारो
    मेरे सीने में धड़कती रही मिट्टी मेरी
    मैं जहां भी था मेरा साथ न छोड़ा उसने
    ज़ेहन में मेरे महकती रही मिट्टी मेरी।



    ललित जी से सहमत हूँ लेकिन आजकल बड़े कुल्हड़ भी मिलते हैं। 21 सालों से कलकत्ते में हूँ। उससे पहले जब पहली बार 1988 में आई थी तो वापस जाकर मैंने माँ से यही कहा था कि वहाँ तो लोग दीये समान कुल्हड़ में चाय पीते हैं। उससे तो दांत भी गीले नहीं होते।


    बहुत शानदार आलेख। धन्यवाद।

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  81. यह कुल्हड़ मुजे अपनी माटी के साथ जुड़े होने के
    मेरे संकल्प को और मजबूत कर रहा था......

    पढ़कर कुछ दिन पूर्व पढ़ी किसी ग़ज़ल की लाईनें याद हो आईं -

    मेरे होने का सबब मुझको बता कर यारो
    मेरे सीने में धड़कती रही मिट्टी मेरी
    मैं जहां भी था मेरा साथ न छोड़ा उसने
    ज़ेहन में मेरे महकती रही मिट्टी मेरी।



    ललित जी से सहमत हूँ लेकिन आजकल बड़े कुल्हड़ भी मिलते हैं। 21 सालों से कलकत्ते में हूँ। उससे पहले जब पहली बार 1988 में आई थी तो वापस जाकर मैंने माँ से यही कहा था कि वहाँ तो लोग दीये समान कुल्हड़ में चाय पीते हैं। उससे तो दांत भी गीले नहीं होते।


    बहुत शानदार आलेख। धन्यवाद।

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  82. Abi tak Kolkata jane ka moka ni laga hai..Bhavishya me kabi jaungi ya ni ye b ni pata...lakn apke is fursat me likha gaya post padhne ke bad to aisa lag raha hai jaise kolkata ghum kar aa gai hun..aur waha ki kulhar ki chai ka maja b le liya...
    Bhaoooooooooooot he sundar prastuti...

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  83. @ नीलम जी,
    बहुत दिनों बाद आपका आगमन हुआ।
    कुल्हड़ की चाय के साथ आपका स्वागत है। आप तो कोलकाता में ही हैं, तो यह तो आम बात है आपके लिए। पर दांत भी नहीं भींगता, यह बहुत मज़ेदार कहा आपने।

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  84. @ रचना जी,
    बहुत दिनों के बाद हमारे पोस्ट पर आपका आना हुआ।
    शायद की कुल्हड़ की चाय का आकर्षण। बहुत-बहुत आभार आपका।

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  85. व्यस्तता के कारण बड़े विलम्ब से यहाँ चुस्की लेने आ पायी...
    आत्मीयता जगाती बहुत ही सुन्दर और मोहक प्रस्तुति..
    सचमुच कुल्हड़ की चाय की बात ही निराली है...
    समय ने बहुत कुछ नहीं बदला है यहाँ का...

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  86. बहुत हीं बढ़िया आलेख. जब भी चाय पीता हूँ तो कुल्लड की याद अवश्य आती है. काश हमेशा वो दिन बने रहे.

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  87. कोलकाता की कुल्हड़ की चाय और माटी सौंधी खुशबू सा सुन्दर लेख ।

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  88. कुल्हड़ की चाय का सारा सोंधापन आपकी लेखनी ने सोखकर शब्दों में भर दिया है।
    हमेशा की तरह बेहतरीन।
    आपको पढ़ना अद्भुत है।
    प्रणाम सर
    सादर।

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  89. कुल्हड़ की चाय और कोलकाता के रहन-सहन का जीवन्त चित्रण.., अद्भुत सृजन ।

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  90. कुल्हड़ की चाय और कलकत्ता की संस्कृति का जीवन्त वर्णन !एक सुन्दर लेख और उससे भी कहीं ज्यादा सराहनीय प्रतिक्रियाएँ।रोचक लेख की बधाई 🙏🙏

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  91. सच कुल्हड़ की चाय का मज़ा ही अलग है, वो कहीं की मिट्टी हो हर जगह की कुल्हड़ की चाय का स्वाद अलहदा ही होता है, फिर कोलकाता की सुंदर सांस्कृतिक विरासत और चाय का लुत्फ ।बहुत सुंदर ।

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