सोमवार, 22 अगस्त 2011

आग छूटी जा रही


आग छूटी जा रही

श्याम नारायण मिश्र

अंगुलियां सम्हालूं
    या दिया बालूं,
        आग छूटी जा रही है
            मुट्ठियों से।

आग का आकार
हाथों में अधूरा है,
इसे भीतर तक उतरने दो।
दे रहा हूं
एक आकृति आग को
रोशनी में धार धरने दो।
आप भी अवसर मिले तो,
    खोजना भीतर
    आग जो मां ने भरी
        है घुट्टियों से।

17 टिप्‍पणियां:

  1. आप फिर एक लाजवाब प्रस्तुति ले कर आये हैं
    सच माँ ने तो आग भरी है घुट्टीयों से पर शायद हम ने ही इस भाग दौड में खो दी है वो आग या भूल गए हैं स्वार्थी हो गए है याद दिलाने के लिए आभार

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  2. मिश्र जी की रचनाएं अचंभित करती हैं.. अपने समय से कहीं आगे हैं मिश्र जी और उनके बिम्ब... आपको धन्यवाद इनसे हमारा परिचय कराने के लिए और इस श्रृंखला को जीवंत बनाने के लिए!!

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  3. दुख तो इसी बात का है कि आजकल की माँ घुट्टी में आग ही नहीं भरती।

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  4. वह आग सदा जलती रहे अनाचारों को जलाती रहे बस यही कामना है । इस ओजस्वी कविता की प्रस्तुति के लिये आपका आभार ।

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  5. ग़ज़ब के बिम्ब श्याम मिश्र जी की कविता में हमेशा दिखते हैं.आभार.

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  6. वाह्………निशब्द हूँ इस लाजवाब रचना के लिये।

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  7. इस ओजस्वी कविता की प्रस्तुति के लिये आपका आभार ।.....

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  8. आपको एवं आपके परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  9. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

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  10. आग का आकार
    हाथों में अधूरा है,
    इसे भीतर तक उतरने दो।
    दे रहा हूं
    एक आकृति आग को
    रोशनी में धार धरने दो।
    -' माँ ने आग भरी है घुट्टियों से..'पर इसे आकृति देने में कौन समर्थ हो पाता है और कौन राख में दबी रह जाने देता है यह व्यक्ति पर निर्भर है .
    श्रीकृष्ण ने आजीवन इस आँच को जिलाये रखा - आज उन्हीं का जन्मदिन है .
    सबको मंगलमय हो ! !

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  11. आप भी अवसर मिले तो,
    खोजना भीतर
    आग जो मां ने भरी
    है घुट्टियों से।

    शिल्प, भाव, शब्द चित्रण और उत्कृष्ट साहित्यिक रचना है ...

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  12. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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  13. आदरणीय मनोज जी ..बहुत सुन्दर आवाहन ...काश ये आग और प्रज्वलित हो कुछ कर जाए ....कान्हा के आगमन का स्वागत ..रचना अच्छी लगी..
    कान्हा किसी भी रूप में आयें दुष्टों का संहार करें अच्छाइयों को विजय श्री दिलाएं ..आन्दोलन सफल हो
    ...जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएं आप सपरिवार और सब मित्रों को भी
    भ्रमर ५

    दे रहा हूं
    एक आकृति आग को
    रोशनी में धार धरने दो।
    आप भी अवसर मिले तो,
    खोजना भीतर
    आग जो मां ने भरी
    है घुट्टियों से

    जवाब देंहटाएं
  14. एक आग हम सबके सीने में , कोई मुट्ठी बंद कर संतुलित कर लेता है , कोई व्यर्थ ही उड़ा देता है ...
    लाजवाब रचना !

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  15. निश्चय ही ऊर्जा को दिशा मिलेगी।

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