उदासी
के धुएं में
श्यामनारायण मिश्र
लौट आईं
भरी आंखें
भींगते रूमाल-आंचल
      छोड़कर सीवान
तक तुमको,
      ये गली-घर-गांव
अब अपने नहीं हैं।
अनमने से लग रहे हैं
द्वार-देहरी
      खोर-गैलहरे
            दूर
तक फैली उदासी के धुएं में।
आज वे मेले नहीं 
दो चार छोटे घरों के 
      घैले घड़े
हैं
            घाट
पर प्यारे प्यासी के कुएं में।
खुक्ख
सन्नाटा उगलती है
चौधरी की कहकहों वाली चिलम
नीम का यह पेड़,
      चौरे पर
शकुन सी छांव अब अपने नहीं हैं।
पर्वतों के पार
घाटी से गुज़रती
      लाल पगडंडी
      भर गई होगी
किसी के प्रणय फूलों से।
भरी होगी पालकी
फूलों सजी तुमसे
      औ’ तुम्हारा
मन
            लड़कपन
में हुई अनजान भूलों से।
झाम बाबा की
बड़ी चौपाल
रातों के पुराने खेल-खिलवाड़ें
      वे पुराने
पैंतरे
            वे दांव अब अपने नहीं हैं। 
 
लौट आईं
जवाब देंहटाएंभरी आंखें
भींगते रूमाल-आंचल
छोड़कर सीवान तक तुमको,
ये गली-घर-गांव अब अपने नहीं हैं।
परिवर्तन ने पैर पसार लिए हैं शायद ?
वक्त ने सब बदल दिया है …………गहन भाव
जवाब देंहटाएंमिश्र जी के नवगीत मन को छूते हैं.. अपने समाज के प्रति प्रतिबद्ध भी हैं...
जवाब देंहटाएंकुछ ठहरे हुए पलों की दास्तान को बहुत ही सुन्दर व सरल भावों में पिरोया है श्री मिश्र जी ने. जो हमसे बतियाते है..
जवाब देंहटाएंमिश्र जी बहुत अच्छा लिखते हैं!
जवाब देंहटाएंआभार!
वाह....
जवाब देंहटाएंभरी होगी पालकी
फूलों सजी तुमसे
औ’ तुम्हारा मन
लड़कपन में हुई अनजान भूलों से।
बहुत सुन्दर..
सादर
अनु
बढ़िया -
जवाब देंहटाएंकभी पध्वाइये-
सावन का हरित प्रभात रहा-
अम्बर पर थी घनघोर घटा-
राणा का ओज भरा आनन-
लड़ लड़ कर अखिल महीतल को-
सादर-
सब खो गये हैं अपनी ही तरह से...
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 6/11/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएं…गहन भाव..बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंसब कुछ बदल गया है बस उसकी टीस रह जाती है मन में ... सुंदर नवगीत
जवाब देंहटाएंश्यामनारायण मिश्र जी की रचना "उदासी के धुएं में"पढवाने के लिये आपका आभार,,,,मनोज जी,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST:..........सागर
झाम बाबा की
जवाब देंहटाएंबड़ी चौपाल
रातों के पुराने खेल-खिलवाड़ें
वे पुराने पैंतरे
वे दांव अब अपने नहीं हैं।
ye gaanv ab apne nahin hain
कम्माल की कविता.. और झाम बाबा का नाम एक अरसे बाद सुना.. हमारे यहाँ बूढ़ा झाम लाल कहते हैं!!
जवाब देंहटाएंपर्वतों के पार
जवाब देंहटाएंघाटी से गुज़रती
लाल पगडंडी
भर गई होगी किसी के प्रणय फूलों से।
kitane sundar bhav hai ...
पर्वतों के पार
जवाब देंहटाएंघाटी से गुज़रती
लाल पगडंडी
भर गई होगी किसी के प्रणय फूलों से।
भरी होगी पालकी
फूलों सजी तुमसे
औ’ तुम्हारा मन
लड़कपन में हुई अनजान भूलों से।
बेहद सुंदर ।
शुभ दीपावली ।