सोमवार, 14 अप्रैल 2025

321. नमक सत्याग्रह, दांडी मार्च-3

राष्ट्रीय आन्दोलन

321. नमक सत्याग्रह, दांडी मार्च-3



प्रवेश

61 वर्ष की उम्र में भी गांधी जी का उत्साह विस्मयकारी था। प्रतिदिन वह 10 मील से अधिक की दूरी तय करते। यात्रा का पहला पड़ाव एक गांव में होता। और रात को वे दूसरे गांव में रुकते। हर जगह गांववासियों की भीड़ लग जाती। नए-नए कार्यकर्ता उस यात्रा में शामिल होते जाते और अहिंसक सत्याग्रहियों का जत्था बढ़ता जाता। जिस गांव में जत्था रुकता गांधीजी वहां जनसभाओं को संबोधित करते शाम को जब यात्रा रोकी जाती, तो आश्रम की दैनिक गतिविधियों को ज़ारी रखा जाता। इसमें प्रार्थना, सूत कातना, डायरी लिखना आदि शामिल था। रास्ते की जनसभाओं में काफ़ी भीड़ जुटती। वे लोगों को सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने, खादी को अपनाने, हिंदू-मुस्लिम एकता खड़ी करने, अस्पृश्यता से लड़ने और मद्यनिषेध के लिए प्रेरित करते। 9 बजे रात को इन सब गतिविधियों से निवृत्त होने के बाद लोगों से मिलने-जुलने और साक्षात्कार के बाद गांधीजी सोने जाते। सुबह 4 बजे उठ जाते। चांद की रोशनी में पत्र लिखते। 6 बजे सुबह की प्रार्थना होती। फिर प्रवचन होता। और 6.30 बजे अभियान की शुरुआत होती। दोपहर को किसी गांव में आराम करते। फिर शाम को चलते। वे खुले में सोते और सादा भोजन करते। प्रत्येक सोमवार को गांधीजी का मौनव्रत होता। सत्याग्रहियों के लिए यह आराम का दिन होता। 18 मार्च को बोरसद में दिए गए भाषण में अंग्रेज़ी हुक़ूमत पर निशाना साधते हुए गांधीजी ने कहा, इतनी भ्रष्ट सरकार के प्रति निष्ठा पाप है। अनिष्ठा पुण्य है। मैं इसे एक धार्मिक आंदोलन मानता हूं, क्योंकि राजद्रोह हमारा धर्म है। इस आह्वान की प्रतिक्रिया में अनेकों सरकारी अधिकारियों ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। उत्तर में 300 गांवों के मुखियों ने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

21 मार्च को अहमदाबाद में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सभा हुई। जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गांधी के आन्दोलन का अनुमोदन करते हुए आशा व्यक्त की कि सारा देश इसमें सहयोग देगा। मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू जम्बूसर में गांधीजी से मिले। बाद में गांधीजी से विचार-विमर्श के बाद मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद स्थित अपने पैतृक निवास आनंदभवन को राष्ट्र को उपहार में समर्पित कर दिया।

28 मार्च को कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए गांधीजी ने कहा था, हमने दांडी को हरिद्वार के समान देखा है। आइए हम हरिद्वार की भांति पावन स्थल पर प्रवेश करने के अधिकारी बनें।

साबरमती आश्रम और डांडी के रास्ते में पड़ने वाली भटगांव पहुंचने तक शाम हो गई और रोशनी कम हो गई थी।  भटगांव के लोगों को लगा कि गांधीजी आ रहे हैं और उन्हें ठोकर न लगे तो इसलिए उन्होंने शहर से पेट्रोमैक्स मंगवाया जिसे हंडा कहते थे। हंडा लेकर दो आदमी गांधीजी के साथ दौड़ते थे, लेकिन गांधीजी की रफ़्तार बहुत तेज़ थी। वे लगभग दौड़ते हुए पीछे पीछे चलते थे और लोग कहते थे कि और तेज़ भागो, और तेज़। गांधीजी ने ये सब देखा और सुना पर तुरंत कुछ नहीं कहा लेकिन जब वो मंच पर पहुंचे तो उन्होंने कहा, मेरी शक्ल देखने लायक़ है भी क्या? बंदर जैसी सूरत है। दांत टूटे हुए हैं, सिर पर बाल नहीं है, आप मुझे देखना क्यों चाहते हैं। सुन तो आप हमें अंधेरे में भी सकते हैं। और इसके बाद उन्होंने फ़िज़ूलख़र्ची पर और तमाम तरह की चीज़ों पर और विदेशी सामानों के इस्तेमाल पर एक लंबी चौड़ी तक़रीर की कि लोगों ने हड़बड़ाकर पेट्रोमैक्स बंद कर दिया, माफ़ी मांगी तब जाकर उनका ग़ुस्सा शांत हुआ। 29 मार्च को भटगाम में उन्होंने कहा था, यह अभियान ज़ारी रहेगा। चाहे सहयोगियों और दूसरों के कार्य कैसे भी हों, मेरे लिए वापस लौटने का कोई प्रश्न ही नहीं है। चाहे मैं अकेला रहूं या हज़ारों के साथ। एक हारे हुए व्यक्ति की तरह आश्रम लौटने के बजाय मैं एक कुत्ते की मौत मरना व कुत्तों से अपनी हड्डियों को नुचवाना अधिक पसंद करूंगा।

अहमदाबाद और दांडी के बीच एक बड़ा शहर सूरत पडता था। 1 अप्रैल को सूरत में ताप्ती के तट पर जनसभा हुई। सूरत की आबादी एक लाख थी। उस जनसभा में इस आबादी के दोगुने दो लाख लोग इकट्ठे हुए। ऊंचे मंच से गांधी जी ने लोगों को संबोधित करना शुरू किया ही था कि लाउडस्पीकर ने काम करना बंद कर दिया। बापू ने हाथ जोड़ कर लोगों का अभिवादन किया और बैठ गए। महादेव भाई जब उठे तो माइक ठीक हो गया। उन्होंने भी संक्षिप्त भाषण दिया। लोगों से दान देने की अपील की। देखते-देखते ही गहनों, घड़ियां, अंगूठियों के ढेर लग गई। अगली सुबह सत्याग्रही रवाना हुए। उन पर फूलों की वर्षा हुई। अपार भीड़ उनका अभिवादन कर रही थी।

जैसे-जैसे सत्याग्रही आगे बढ़ते गए सारे देश में देशभक्ति की लहर दौड़ गई। इस शक्तिशाली राष्ट्रीय भावना को देख कर सरकार डर गई। सरकार ने वादा किया कि नमक कर की समस्या शुल्क समिति के सामने रखा जाएगा, जिससे जनता को बहुत कम क़ीमत पर नमक मिल सके। लेकिन गांधीजी इससे संतुष्ट नहीं थे। वह जिस यात्रा पर निकले थे वह यात्रा समुद्र के किनारे बसे शहर डांडी के लिए थी जहां जा कर बापू औपनिवेशिक भारत में नमक बनाने के लिए अंग्रेज़ के एकछत्र अधिकार वाला क़ानून तोड़ने वाले थे। इस अहिंसक आंदोलन के साथ देश में अंग्रेज़ी शासन के ख़िलाफ़ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु हुआ था। इस सत्याग्रह ने ब्रिटिश वर्चस्व तोड़ने के लिए भावनात्मक और नैतिक बल दिया था। भारत पर ब्रिटेन की लंबे समय तक चली हुक़ूमत कई मायने में चाय, कपड़ा और यहां तक की नमक जैसी वस्तुओं पर एकाधिकार क़ायम करने से हुई थी।

अब वे डांडी से 20 किलोमीटर दूर नवसारी में थे। नवसारी में गांधीजी ने कहा, मैं जो चाहता हूं वह लेकर ही वापस जाऊंगा, नहीं तो मेरी लाश समुद्र में तैरेगी।

6 अप्रैल को पूरे देश में नमक क़ानून तोड़ा गया

241 मील की यात्रा का अंत 5 अप्रैल, 1930 को हुआ। सन 1919 की घटनाओं की याद  में हर साल (सत्याग्रह-दिवस से जालियांवाला बाग दिवस का) जो राष्ट्रीय सप्ताह मनाया जाता था, उसकी पहली तारीख़ 6 अप्रैल थी। उसी दिन को पूरे देश में नमक क़ानून तोड़ा जाना निश्चय किया गया था। गांधीजी ने कहा, जालियांवाला हत्याकांड के बाद से 6 अप्रैल हमारे लिए तप और अपने को शुद्ध करने का दिन बन गया है। इसलिए हम इसे प्रार्थना और उपवास से आरम्भ करते हैं। मुझे आशा है कि सम्पूर्ण भारत कल से शुरू होने वाले राष्ट्रीय सप्ताह को उसी भावना से मनायेगा जिस भावना से इसे शुरू किया गया है।  

6 अप्रैल 1930 को दांडी का वातावरण धूम-धाम से भरा था। दिन की शुरुआत प्रार्थनाओं से हुई। गांधीजी ने अपनी गिरफ़्तारी की परिस्थिति में सत्याग्रहियों के नेतृत्व के लिए पहले अब्बास तैयब्जी और उसके बाद सरोजिनी नायडू को नामित किया। पौ फटने के कुछ देर पहले ही गांधी जी का दस्ता समुद्र तट पर पहुंचा। राइफल से लैस पुलिस थोड़ी दूर पर खड़ी थी। घोड़े पर सवार दो अंगरेज़ अधिकारी उनकी अगुआई कर रहे थे। लोगों ने कपड़े उतारे और समुद्र में स्नान किया। गांधी जी भी स्नान कर उस स्थान पर पहुंचे जहां पर गड्ढ़ा बना कर समुद्र का पानी इकट्ठा किया गया था। ठीक साढ़े आठ बजे गांधी जी ने उस गड्ढ़े का पानी एक बरतन में लिया। उसे सूरज की ओर दिखा कर एक मुट्ठी नमक लिया और मुट्ठी खोलकर सफेद नमक भीड़ को दिखाया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए यह सबसे नया प्रतीक था। वहां पर मौजूद सरोजिनी नायडू ने गांधीजी को ‘क़ानून भंगकर्त्ता’ के रूप में पुकारा। उपस्थित जनसमुदाय ने भी समुद्र के पानी से नमक बनाया। गांधीजी ने घोषणा की, नमक क़ानून को अब तकनीकी या औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया है। अब यह उन सभी के लिए खुला है, जो नमक बनाकर, नमक क़ानून के अभियोजन को स्वीकार करने के लिए सहर्ष प्रस्तुत हों। सारा देश उस हुक़ूमत के ख़िलाफ़ उठ खड़ा, जिसे गांधीजी ने ‘गुंडा राज’ कहा था। लाखों लोगों ने नमक क़ानून को तोड़ा।

इसकी वजह से हजारों भारतीय कुछ महीने के अंदर गिरफ़्तार किए गए। इससे एक चिंगारी भड़की जो सविनय अवज्ञा आंदोलन में बदल गई। इसने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष और स्वयं गांधी जी को परिभाषित किया। दोपहर में गांधी जी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, मुझे आशंका थी कि मुझे गिरफ़्तार कर लिया जाएगा। अब भी मुझे गिरफ़्तारी की पूरी उम्मीद है। लेकिन यह संघर्ष इतना बड़ा है कि मेरी गिरफ़्तारी से रुक नहीं सकता। सविनय अवज्ञा आंदोलन नमक क़ानून तोड़ने के अलावा दूसरे रूपों में भी फैलेगा। ... मैं साबरमती आश्रम तब तक नहीं लौटूंगा जब तक कि देश को आज़ादी नहीं मिल जाती। जनसभा के बाद उस थोड़े से नमक की नीलामी भी की गई जो उन्होंने सुबह में बनाया था। अहमदाबाद के कपड़ा मिल के मालिक सेठ रणछोड़ भाई ने इस नमक के लिए 1600 रुपए की बड़ी रकम अदा की, जो 750 डॉलर के बराबर थी। 

दांडी में नमक-क़ानून भंग किए जाने के बाद सभी कांग्रेसी संस्थाओं को ऐसा ही करने और अपने-अपने क्षेत्र में सविनय अवज्ञा आरंभ करने की अनुमति दे दी गई थी। सारे देश में अद्भुत उत्साह का संचार हो चुका था। राजगोपालाचारी ने तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली से वेडावन्नियम तक और केलप्पन ने केरल में कालिकट से पयन्नूर तक नमक मार्च किया। आंध्र और बंगाल के तटवर्ती इलाक़ों, मद्रास, बंबई और उड़ीसा के बालासोर, कटक और पुरी  में भी ऐसा ही हुआ। पूरे देश में शहर-शहर, गांव-गांव में नमक बनाने की चर्चा ज़ोर पकड़ चुकी थी। नमक तैयार करने के एक-से-एक तरीक़े काम में लाए जाने लगे थे। लोग बर्तन-कड़ाहे इकट्ठा करते, नमक तैयार करते और विजय के उन्माद में उसे लेकर घूमते, उसकी नीलामी करते। बड़ी-बड़ी बोली लगती, लोग नमक ख़रीदते। जनता का अगाध उत्साह देखने लायक था। जहां नमक बनाने की सुविधा नहीं थी, वहां ‘ग़ैरक़ानूनी’ नमक बेचकर कानून तोड़ा गया। हर कहीं नमक गोदामों पर धावा बोला गया तथा अवैध नमक के निर्माण का काम हाथों-हाथ लिया गया। पुलिस की पाशविकता और दमन के बावजूद लोगों का उत्साह तनिक भी कम नहीं हुआ। सत्याग्रही के हाथों में आकर नमक राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक बन गया था।

सत्याग्रही नमक को अपनी कलाइयों और शरीर के विभिन्न हिस्सों में लपेट लेते, ताकि अंग्रेज़ अधिकारी उसे ज़ब्त न कर सकें। पुलिस को उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों से नमक अलग करने के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ता।

नमक सत्याग्रह का प्रसार

गांधीजी ने अपने संदेश में कहा, वर्तमान में भारत का स्वाभिमान सत्याग्रहियों के हाथों में मुट्ठीभर नमक के रूप  में प्रतीकमय हो गया है। पहले हम इसे धारण करें, फिर तोड़ें लेकिन नमक का कोई स्वैच्छिक समर्पण न हो। लोगों ने विदेशी कपड़े और अन्य चीज़ों का भी बहिष्कार करना शुरू कर दिया। शराब की दुकानों पर धरना दिया जाता। लोगों की गिरफ़्तारियां होती। गांधीजी उन्हें बधाई देते हुए कहते, क़ैद और इस तरह की बातें ऐसी परीक्षाएं हैं, जिसमें से सत्याग्रही को गुज़रना ही पड़ता है। 13 अप्रैल को गांधीजी ने महिलाओं की सभा को संबोधित करते हुए उन्हें भी राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल होने के लिए कहा। देखते ही देखते आन्दोलन में लाखों महिलाएं भी शामिल हो गयी थीं।

गिरफ्तारियाँ और अँग्रेज़ी हुक़ूमत की नृशंसता

आन्दोलन के फैलने से ब्रिटिश हुकूमत परेशान थी। कुछ ही दिनों में लाखों लोगों को जेल में ठूंस दिया गया। 31 मार्च तक 35,000 से अधिक लोग गिरफ़्तार कर लिए गए थे। जवाहरलाल नेहरू को 14 अप्रैल को गिरफ़्तार कर 6 महीनों के लिए जेल भेज दिया गया। नमक-क़ानून को भंग करने के अपराध में जिनको सज़ाएं दी गईं उनमें राजाजी, पं. मदनमोहन मालवीय, जे.एम. सेनगुप्त, बी.जी. खेर, के.एम. मुंशी, देवदास गांधी, महादेव देसाई और विट्ठलभाई पटेल आदि प्रमुख नेता थे। पुलिस ने कई जगह गोलियां भी चलाई। पूरे देश में अग्रेज़ी हुक़ूमत ने नृशंसता का नंगा नाच किया। गांधीजी ने लोगों से अंग्रेज़ों के दमन का जवाब संयम से देने के लिए कहा। गांधीजी ने अपने संदेश में कहा, वर्तमान में भारत का स्वाभिमान सत्याग्रहियों के हाथों में मुट्ठीभर नमक के रूप  में प्रतीकमय हो गया है। पहले हम इसे धारण करें, फिर तोड़ें लेकिन नमक का कोई स्वैच्छिक समर्पण न हो। लोगों ने विदेशी कपड़े और अन्य चीज़ों का भी बहिष्कार करना शुरू कर दिया। शराब की दुकानों पर धरना दिया जाता। लोगों की गिरफ़्तारियां होती। गांधीजी उन्हें बधाई देते हुए कहते, क़ैद और इस तरह की बातें ऐसी परीक्षाएं हैं, जिसमें से सत्याग्रही को गुज़रना ही पड़ता है। 13 अप्रैल को गांधीजी ने महिलाओं की सभा को संबोधित करते हुए उन्हें भी राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल होने के लिए कहा। अब आन्दोलन में लाखों महिलाएं भी शामिल हो चुकी थीं।

आन्दोलन के फैलने से ब्रिटिश हुकूमत परेशान थी। कुछ ही दिनों में लाखों लोगों को जेल में ठूंस दिया गया। पर सिपाही टूट पड़ते। उनकी ज़बर्दस्त पिटाई की जाती। सिपाहियों की क्रूरता बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन लोगों ने गांधीजी द्वारा दी गई अहिंसा का पाठ हमेशा याद रखा। कई जगहों पर अहिंसक भीड़ पर पुलिस ने गोलियां भी बरसाईं। भीड़ में महिला और बच्चे भी होते थे। लेकिन लोग न तो भागते और न ही हिंसा पर उतारू होते। जब अगली पंक्ति के लोग गोली खाकर गिर पड़ते तो पिछले लोग गोलियों का सामना करने के लिए आगे आ जाते। लाशों की ढेर में किसी भी सत्याग्रही की पीठ पर गोली नहीं लगी होती। यह सब गांधीजी की अभूतपूर्व प्रेरणा का ही परिणाम था। गांधीजी द्वारा आरंभ किया हुआ आन्दोलन सफल हुआ।

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मनोज कुमार

 

पिछली कड़ियां-  राष्ट्रीय आन्दोलन

संदर्भ : यहाँ पर

 

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