बुधवार, 16 अप्रैल 2025

322. नमक सत्याग्रह, दांडी मार्च-4

राष्ट्रीय आन्दोलन

322. नमक सत्याग्रह, दांडी मार्च-4



1930

इस विरोध मार्च ने भारत में विदेशी हुक़ूमत के पतन का भावनात्मक और नैतिक आधार दिया। गांधी जी का नमक आंदोलन और दांडी पदयात्रा आधुनिक काल के शांतिपूर्ण संघर्ष का सबसे अनूठा उदाहरण है। यह गांधी जी के ही नेतृत्व और प्रशिक्षण का चमत्कार था कि लोग अंग्रेजी हुकूमत की लाठियों के प्रहार को अहिंसात्मक सत्याग्रह से नाकाम बना गए। यह एक ऐसा सफल आंदोलन था जिसने न सिर्फ ब्रिटेन को बल्कि सरे विश्‍व को स्तब्ध कर दिया था। नमक अपने आप में कोई बहुत महत्वपूर्ण चीज नहीं था, लेकिन यह राष्ट्रीयता का प्रतीक बन गया। लोग नमक बनाने के लिए संघर्ष नहीं कर रहे थे बल्कि उसके जरिए वे यह साबित कर रहे थे कि सरकारी दमन बहुत दिनों तक नहीं चल सकता।

5 मई को गांधीजी की गिरफ़्तारी और गिरफ़्तारी के बाद नमक सत्याग्रह की प्रगति

असहयोग आन्दोलन की तरह अधिकृत रूप से स्वीकृत राष्ट्रीय अभियान के अलावा भी विरोध की असंख्य धाराएँ थीं। देश के विशाल भाग में किसानों ने दमनकारी औपनिवेशिक वन कानूनों का उल्लंघन किया जिसके कारण वे और उनके मवेशी उन्हीं जंगलों में नहीं जा सकते थे जहाँ एक जमाने में वे बेरोकटोक घूमते थे। कुछ कस्बों में फैक्ट्री कामगार हड़ताल पर चले गए, वकीलों ने ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार कर दिया और विद्यार्थियों ने सरकारी शिक्षा संस्थानों में पढ़ने से इनकार कर दिया। 1920-22 की तरह इस बार भी गाँधीजी के आह्वान ने तमाम भारतीय वर्गों को औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध अपना असंतोष व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया। जवाब में सरकार असंतुष्टों को हिरासत में लेने लगी। नमक सत्याग्रह के सिलसिले में लगभग 60,000 लोगों को गिरफ़्तार किया गया।

समुद्र तट की ओर गाँधी जी की यात्रा की प्रगति का पता उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए तैनात पुलिस अफ़सरों द्वारा भेजी गई गोपनीय रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इन रिपोर्टों में रास्ते के गाँवों में गाँधी जी द्वारा दिए गए भाषण भी मिलते हैं जिनमें उन्होंने स्थानीय अधिकारियों से आह्वान किया था कि वे सरकारी नौकरियाँ छोड़कर स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हो जाएँ। वसना नामक गाँव में गाँधी जी ने ऊँची जाति वालों को संबोधित करते हुए कहा था कि यदि आप स्वराज के हक में आवाज उठाते हैं तो आपको अछूतों की सेवा करनी पड़ेगी। सिर्फ़ नमक कर या अन्य करों के खत्म हो जाने से आपको स्वराज नहीं मिल जाएगा। स्वराज के लिए आपको अपनी उन गलतियों का प्रायश्चित करना होगा जो आपने अछूतों के साथ की हैं। स्वराज के लिए हिंदू, मुसलमान, पारसी और सिख, सबको एकजुट होना पडेगा। ये स्वराज की सीढ़ियाँ हैं। पुलिस के जासूसों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि गाँधी जी की सभाओं में तमाम जातियों के औरत-मर्द शामिल हो रहे हैं। उनका कहना था कि हजारों वॉलंटियर राष्ट्रवादी उद्देश्य के लिए सामने आ रहे हैं। उनमें से बहुत सारे ऐसे सरकारी अफ़सर थे जिन्होंने औपनिवेशिक शासन में अपने पदों से इस्तीफ़ा दे दिए थे। सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में जिला पुलिस सुपरिंटेंडेंट ;पुलिस अधीक्षक ने लिखा था कि गाँधी शांत और निश्चिंत दिखाई दिए। वे जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, उनकी ताकत बढ़ती जा रही है। जिस-जिस राह से वे गुजरे, वहां के ग्राम अधिकारी अपने पदों से त्यागपत्र देने लगे।

‘काली हुक़ूमत’ के ख़िलाफ़ संघर्ष पूरे जोश पर था। गांधीजी उन दिनों दांडी से 3 मील दूर कराड़ी नामक स्थान पर थे। उन्होंने 4 मई की रात को वायसराय को पत्र लिखा। सत्याग्रह के सिद्धान्त के अनुसार सरकार जितना दमन और ग़ैरक़ानूनी काम करेगी उतना ही हम दुख और पीड़ा उठाएंगे। स्वेच्छा से सही गई पीड़ा की सफलता निश्चित है। हिंसा अहिंसा से ही जीती जा सकती है। आपसे विनती है कि नमक कर ख़त्म कर दें। पत्र लिखने के बाद और नियमित कार्य ख़त्म करके गांधीजी एक आम के वृक्ष के नी बने शेड में एक चारपाई पर सो गए।

गिरफ़्तार होने वालों में गाँधी जी भी थे

4-5 की मध्य रात्रि में 12.45 बजे झोंपड़ी में सोते समय गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारी के ठीक पहले उन्होंने अहिंसात्मक विद्रोह की दूसरी और पहले से अधिक उग्र योजना बनाई थी। यह थी, धरसाना के सरकारी नमक डिपो पर धावा बोलना और उस पर कब्जा करना। लेकिन सूरत के जिलाधिकारी के नेतृत्व में पिस्टलों से लैस दो पुलिस अधिकारियों और राइफलों से लैस 30 पुलिसवालों ने शिविर पर धावा बोल दिया। सोये हुए गांधीजी पर टार्च की रोशनी फेंकते हुए ब्रिटिश अधिकारी ने पूछा, क्या तुम ही मोहनदास करमचंद गांधी हो? उनके हां कहने पर उन्हें 1827 की धारा XXV के तहत उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। गांधीजी सामान बांधने लगे और पण्डित खरे से अपना पसंदीदा भजन ‘वैष्णव जन’ गाने के लिए कहा। रात के 1 बजकर 10 मिनट पर उन्हें यरवदा केन्द्रीय जेल ले जाने के लिए बाहर खड़ी गाड़ी में ले जाया गया। उनकी इस तरह से की गई गिरफ़्तारी पर मीराबेन ने कहा था, रात के नीरव अंधकार में वे चोरों की भांति आए व उन्हें चुरा कर ले गए। क्योंकि जब उन्होंने उन पर हाथ डालना चाहा तो उन्हें बहुसंख्यक लोगों से भय हुआ, क्योंकि उनके लिए वह एक पैगम्बर थे।

गांधीजी को बम्बई जाने वाली ट्रेन में चढ़ाया गया। तय यह था कि उन्हें बोरिवली में उतार कर कार से यरवदा सेंट्रल जेल, पुणे ले जाया जाएगा। विदेशी पत्रकारों को इसकी भनक लग गई। वे बोरिवली स्टेशन पर जमा हो गए। एक पत्रकार ने गांधीजी से पूछा, क्या आपकी गिरफ़्तारी से पूरे देश में झगड़े-फसाद होंगे? गांधीजी ने कहा, नहीं, मुझे ऐसी आशंका नहीं है। उन्हें एक पर्दे वाली कार में यरवदा जेल ले जाया गया। न कोई मुकदमा, न कोई फैसला और न ही कोई क़ैद की अवधि ही तय थी। उन्हें तबतक जेल में रखा जाना था, जब तक सरकार इसे ज़रूरी समझती।

गांधी जी की गिरफ़्तारी के बाद नमक सत्याग्रह की प्रगति

गांधीजी की गिरफ्तारी के एक पखवाड़े के बाद 2500 स्वयंसेवकों ने धरसाना के सरकारी नमक डिपो पर धावा किया। गांधीजी की गिरफ़्तारी और नज़रबंदी के बाद पूरे देश में व्यापक रूप से हड़ताल व बंद का आयोजन किया गया, लेकिन लोग अहिंसा पर क़ायम रहे। बंबई में लगभग 50,000 मिल मज़दूरों ने काम करने से इंकार कर दिया। रेलवे कामगारों ने भी आंदोलन में हिस्सा लिया। सरकारी सेवाओं से त्यागपत्र देने का सिलसिला चल पड़ा। कलकत्ता में पुलिस ने भीड़ पर गोली चलाई। अनेक लोगों को गिरफ़्तार किया। पेशावर में सैनिक नाके बंदी कर दी गई। उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रान्त में सेना, विमान, टैंक व गोला-बारूदों का जमकर उपयोग किया गया।

धरसाना पर हमला

गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद बड़ौदा के पूर्व-न्यायविद अब्बास तैयबजी ने गांधीजी के उत्तराधिकारी के रूप में सत्याग्रह का काम संभाला। अब्बास तैयबजी करडी से धरसाना के नमक कारखाने तक पहुंचने का नेतृत्व करने के लिए चले ही थे कि सूरत के ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस सुपरिन्टेण्डेण्ट ने तैयबजी और अन्य सत्याग्रहियों को गिरफ़्तार कर लिया और उन्हें बस में बिठाकर जलालपुर ले जाया गया।

तैयबजी के बाद सरोजिनी नायडू उनकी उत्तराधिकारिणी बनीं। जब तैयबजी गिरफ़्तार हुए उस समय सरोजिनी नायडू इलाहाबाद में कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की बैठक में भाग ले रही थीं। अब्बास तैयबजी के गिरफ़्तार होने की सूचना मिलते ही, वह धरसना के लिए निकल पड़ीं।

15 मई को वह 50 स्वयंसेवकों के साथ डिपो की ओर रवाना हुईं। पुलिस ने उन्हें बीच रास्ते में ही रोक दिया। वह धरने पर बैठ गईं। दूसरे दिन पुलिस ने बलप्रयोग से उन्हें हटा दिया। स्वयंसेवकों को गिरफ़्तार कर लिया गया। 21 मई को 3000 स्वयंसेवकों ने सरोजिनी नायडू व साबरमती आश्रम के वयोवृद्ध नेता इमाम साहेब के नेतृत्व में धरसाना डिपो पर हमला किया। उनके कूच करने से पहले कवयित्री सरोजिनी नायडू ने प्रार्थना कराई और गांधीजी की शिक्षा पर दृढ़ता से अमल करने और अहिंसा पर दृढ़ रहने का आग्रह किया। डिपो के चारों तरफ कांटेदार तार लगा दिए गए थे और खाई खोद दी गई थी। गांधीजी के पुत्र मणिलाल के पीछे जैसे ही स्वयंसेवकों का पहला जत्था आगे बढ़ा, पुलिस अधिकारियों ने उन्हें दूर हट जाने की आज्ञा दी। स्वयंसेवक चुपचाप आगे बढ़े। पुलिस के सैकड़ों जवान उन पर टूट पड़े और डंडे बरसाने लगे। ‘न्यूफ़्रीमैन’ का अमरीकी संवाददाता बैब मिलर ने उस नृशंस लाठीचार्ज का आंखों देखा वर्णन इस तरह किया थाः अठारह वर्षों से मैं दुनिया के बाइस देशों में संवाददाता का काम कर चुका हूं, लेकिन जैसा हृदय-विदारक दृश्य मैंने धरसाना में देखा, वैसा और कहर देखने को नहीं मिला। कभी-कभी तो दृश्य इतना रोमहर्षक और दर्दनाक हो जाता कि मैं देख भी नहीं पाता और मुझे कुछ क्षणों के लिए आंखें बन्द कर लेनी पड़ती थी। स्वयंसेवकों का अनुशासन कमाल का था। गांधीजी की अहिंसा को उन्होंने रोम-रोम में बसा लिया था

पुलिस सत्याग्रहियों पर लोहे की नोक वाली लाठियों से प्रहार कर रहे थे। एक भी सत्याग्रही ने अपने बचाव के लिए हाथ नहीं उठाया। धरती सत्याग्रहियों से पट गई। पहले दस्ते के बाद दूसरा दस्ता आगे बढ़ा। उनपर भी बर्बरतापूर्ण प्रहार किया गया। सरोजिनी नायडू और मणिलाल को गिरफ़्तार कर लिया गया। अस्थायी अस्पताल में 320 लोग घायल पड़े हुए थे। घायलों की चिकित्सा का कोई प्रबंध नहीं था। कई लोगों की मौत हो गई। मिलर की रिपोर्ट युनाइटेड प्रेस के तहत जब विश्व-भर के 1350 से अधिक समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई, तो सनसनी फैल गई।

दो दिनों तक सत्याग्रह रोक दिया गया, ताकि नए सत्याग्रही आ जाएं। किन्तु पुलिस ने नए स्वयंसेवकों को नहीं आने दिया। जो सत्याग्रही वहां थे, वे 6 जून तक बार-बार नमक फ़ैक्टरी में घुसने का प्रयत्न करते रहे। सत्याग्रही नमक की ढेरी से नमक लाने में असफल रहे। लेकिन इस आन्दोलन का लक्ष्य केवल नमक छीनना नहीं था, बल्कि दुनिया को बताना था कि ब्रिटिश शासन का आधार हिंसा और क्रूरता है। सरकार की दमनकारी नीति से लोग झुकने के बजाए सत्याग्रह पर और भी दृढ़ हो गए। सारे देश में लोग या तो नमक बनाते या नमक कारख़ानों पर हमला बोलते।

बंबई उपनगर के वडाला के नमक डिपो पर पन्द्रह हज़ार स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह किया। 18 मई को 470 सत्याग्रहियों को गिरफ़्तार कर लिया गया। इसी तरह का धावा सनिकट्टा नमक फैक्ट्री पर भी किया गया जिसमें 10,000 प्रदर्शनकारियों ने भाग लिया।

विदेशों में प्रतिक्रिया

पनामा के भारतीय व्यापारियों ने 24 घंटे के लिए अपना काम ठप्प कर दिया। सुमात्रा में भी ऐसा ही हुआ। नैरोबी में भारतीयों ने दुकानें बन्द कर दी। अमेरिका से 102 पादरियों ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को एक तार भेजा कि गांधीजी और भारतीयों के साथ मैत्रीपूर्ण फैसला कर लेना चाहिए। यूरोपीय समाचार पत्र तो इन खबरों से रंगे ही रहते थे। विदेशी कपड़ों के बहिष्कार का प्रभाव इंग्लैंड का कपड़ा उद्योग पर साफ दिखने लगा था। क़रीब न के बराबर कपड़ा भारत में बिक रहा था। लंकाशायर की कई मिलें बन्द पड़ी थीं।

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मनोज कुमार

 

पिछली कड़ियां-  राष्ट्रीय आन्दोलन

संदर्भ : यहाँ पर

 

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