सोमवार, 18 जनवरी 2010

श्रद्धा की मधुशाला

हरिवंश राय बच्चन -- एक मतवाला कवि, जिसने हिंदी साहित्य के सर्वाधिक समृद्ध काल-खंड छायावाद में भी सभी वाद से इतर अपनी राह बनायी... ! उसी राह पर बनाई मधुशाला... और पता नहीं कितनी पीढ़ियों को पकड़ाया काव्यामृत का प्याला.... ! जन-मन में रमने वाला एक ऐसा कवि जिस पर एक महानायक के पिता की छवि कभी हाबी नहीं हो सकी ! 18 जनवरी 2003 को बच्चन जी 'माटी का तन, मस्ती का मन और पल भर का जीवन' छोड़ कर यम साकीबाला के सहचर हो लिए ! अब न रहे वो पीने वाले, अब ना रही वो मधुशाला !! मित्रों, आज हालावाद को हिंदी साहित्य में प्रतिष्ठित करने वाले लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन की पुण्य-तिथि ! महाकवि की इच्छा 'पितृपक्ष में पुत्र उठाना अर्घ्य न पर कर में प्याला........' के सम्मान में हमारे ब्लॉग-सहयोगी श्री परशुराम राय जी प्रस्तुत कर रहे हैं स्वरचित…..

!! श्रद्धा की मधुशाला !!

-- परशुराम राय


डा. हरिवंश राय बच्चन की पुण्य तिथि १८ जनवरी पर श्रद्धांजलि


साकी बाला के हाथों में

भरा पात्र सुरभित हाला

पीने वालों के सम्मुख था

भरा हुआ मधु का प्याला

मतवालों के मुख पर फिर क्यों

दिखी नहीं थी जिज्ञासा

पीने वाले मतवाले थे

फिर भी सूनी मधुशाला ।। 1 ।।


मधु का कलश भावना का था

नाम आपका था हाला

पीने वाले प्रियजन तेरे

कान कान था मधुप्याला

तेरी चर्चा की सुगंध सी

आती थी उनके मुख से

यहॉ बसी थी तेरी यादें

और सिसकती मधुशाला ।। 2 ।।


छूट गए सब जग के साकी

छूट गई जग की हाला

छूट गए हैं पीने वाले

छूट गया जग का प्याला

बचा कुछ भी, सब कुछ छूटा

जग की मधुबाला छूटी

छोड़ गए तुम अपनी यादें

प्यारी सी यह मधुशाला ।। 3 ।।


मृत्यु खड़ी साकी बाला थी

हाथ लिए गम का हाला

जन-जन था बस पीनेवाला

लेकर सॉसों का प्याला

किंकर्तव्यमूढ़ सी महफिल

मुख पर कोई बोल थे

चेहरों पर थे गम के मेघ

आँखों में थी मधुशाला ।। 4 ।।


पंचतत्व के इस मधुघट को

छोड़ चले पीकर हाला

कूच कर गए इस जगती से

लोगों को पकड़ा प्याला

बड़ी अजब माया है जग की

यह तो तुम भी जान चुके

पर चिंतित तू कभी होना

वहाँ मिलेगी मधुशाला ।। 5 ।।


वहाँ मिलेंगे साकी तुमको

स्वर्ण कलश में ले हाला

इच्छा की ज्वाला उठते ही

छलकेगा स्वर्णिम प्याला

करें वहॉ स्वागत बालाएँ

होठों का चुम्बन देकर

होगे तुम बस पीने वाले

स्वर्ग बनेगा मधुशाला ।। 6 ।।


मन बोझिल था, तन बोझिल था

कंधों पर था तन प्याला

डगमग-डगमग पग करते थे

पिए विरह का गम हाला

राम नाम है सत्य बोला

रट थी सबकी जिह्वा पर

अमर रहें बच्चन जी जग में

अमर रहे यह मधुशाला ।। 7 ।।


दुखी न होना ऐ साकी तू

छलकेगी फिर से हाला

मुखरित होंगे पीने वाले

छलकेगा मधु का प्याला

नृत्य करेंगी मधुबालाएँ

हाथों में मधुकलश लिए

सोच रहा हूँ कहीं बुला ले

फिर से तुमको मधुशाला ।। 8 ।।


क्रूर काल साकी कितना हूँ

भर दे विस्मृति का हाला

खाली कर न सकेगा फिर भी

लोगों की स्मृति का प्याला

इस जगती पर परिवर्तन के

आएँ झंझावात भले

अमर रहेंगे साकी बच्चन

अमर रहेगी मधुशाला ।। 9 ।।


अंजलि का प्याला लाया हूँ

श्रद्धा की भरकर हाला

भारी मन है मुझ साकी का

ऑखों में ऑसू हाला

मदपायी का मतवालापन

ठहर गया क्यूँ पाता नहीं!

अंजलि में लेकर बैठा हूँ,

श्रद्धा की यह मधुशाला ।। 10 ।।


*******


27 टिप्‍पणियां:

  1. श्रद्धा की मधुशाला बहुत सुंदर लगी....

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  2. बहुत अच्छी लगी राय जी की यह रचना । शुभकामनाएं

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  3. श्रद्धा की मधुशाला अच्छी लगी , आभार !!

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  4. "मधुशाला" पढ़वाने के लिए आभार.

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  5. छूट गए सब जग के साकी

    छूट गई जग की हाला

    छूट गए हैं पीने वाले

    छूट गया जग का प्याला

    बचा न कुछ भी, सब कुछ छूटा

    जग की मधुबाला छूटी

    छोड़ गए तुम अपनी यादें

    प्यारी सी यह मधुशाला ...........
    vaah,adbhut .

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  6. -- परशुराम राय जी डा. हरिबंश राय बच्चन की पुण्य तिथि पर आपकी तरफ़ से यह श्रद्धा की मधुशाला !! काफ़ी सटीक और सच्ची श्रद्धांजलि है। डा. हरिबंश राय बच्चन को कोटि-कोटि नमन।

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  7. बहुत सुंदर लगी श्रद्धा की मधुशाला ....

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  8. श्री बच्चन जी के लिए आपके ये श्रद्धा सुमन ...अच्छे लगे...
    सुन्दर प्रस्तुति...!!

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  9. Isse sundar aur shraddhnajali aur kya ho sakti hai bhala....Waah !!!

    Bahut hi sundar likhi hai....bahut bahut sundar !!!

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  10. बहुत सुंदर रचना के साथ बच्चन जी को दी गई यह श्रद्धांजलि अद्बितीय है। डा. हरिबंश राय बच्चन को कोटि-कोटि नमन।

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  11. bahut sunder tareeka shruddhanjalee dene ka !sunder bhav ke sath utanee hee sunder aapkee abhivyaktee!

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  12. मधुशाला के रचयिता को नमन ,और आपका आभार इस प्रस्तुति के लिये

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  13. हरिवंश राय बच्चन जी को दी गयी श्रधांजलि बहुत अच्छी लगी ! श्रद्धा की मधुशाला पढवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! बहुत सुन्दर रचना ! हर एक पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी !

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  14. शुक्रिया

    "खाली कर न सकेगा फिर भी
    लोगों की स्मृति का प्याला"

    वाकई में ’मधुशाला’ एक सुन्दर रचना हैं, श्री हरिवंश राय बच्चन साहब की.

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  15. भारी मन है मुझ साकी का
    ऑखों में ऑसू हाला
    मदपायी का मतवालापन
    ठहर गया क्यूँ पाता नहीं!
    अंजलि में लेकर बैठा हूँ,
    श्रद्धा की यह मधुशाला ।।
    Achi prastuti...

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत अच्छी लगी राय जी की यह रचना । शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  17. श्री बच्चन जी के लिए आपके ये श्रद्धा सुमन ...अच्छे लगे...
    सुन्दर प्रस्तुति...!!

    जवाब देंहटाएं
  18. अंजलि का प्याला लाया हूँ श्रद्धा की भरकर हाला भारी मन है मुझ साकी का ऑखों में ऑसू हाला मदपायी का मतवालापन ठहर गया क्यूँ पाता नहीं! अंजलि में लेकर बैठा हूँ, श्रद्धा की यह मधुशाला ।। 10 ।।
    बहुत अच्छी लगी राय जी की यह रचना । शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  19. पर बढती तासीर सुरा की समय साथ के बढ़ने से .......
    अभी रहेगी युगों-युगों तक चिर-यौवना मधुशाला...... !!!

    मधुशाला के प्रथम प्रतिष्ठाता को हाला भर कर श्रद्धा की अंजलि
    और 'अभिनव बच्चन को प्याला भर कर शुक्रिया....................!!

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  20. Behad achhee rachna hai..sach, Harivanshrai Bachhan ji ajaraamar hain...!

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  21. श्री बच्चन जी के लिए आपके ये श्रद्धा के सुमन अच्छे लगे। सुन्दर प्रस्तुति...!!

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  22. छूट गए सब जग के साकी
    छूट गई जग की हाला
    छूट गए हैं पीने वाले
    छूट गया जग का प्याला
    बचा न कुछ भी, सब कुछ छूटा
    जग की मधुबाला छूटी
    छोड़ गए तुम अपनी यादें
    प्यारी सी यह मधुशाला
    डा. हरिबंश राय बच्चन को कोटि-कोटि नमन।

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  23. mdhushaala ko main kayi baar padh chuka hun aur sun chuka hun... bachchan sahab mere sabse priya kaviyon mein agrani hai aur meri prerna bhi... unko meri or se sahriday shradhanjli...

    manoj ji bahut bahut dhanyavaad aapka...

    kabhi samay nikaal kar apna bahumulya samay mere blog ko v dene ka kast karein... main kritarth rahunga aapka...

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  24. वहाँ मिलेंगे साकी तुमको
    स्वर्ण कलश में ले हाला
    इच्छा की ज्वाला उठते ही
    छलकेगा स्वर्णिम प्याला
    करें वहॉ स्वागत बालाएँ
    होठों का चुम्बन देकर
    होगे तुम बस पीने वाले
    स्वर्ग बनेगा मधुशाला
    Bahut hi sundar likhi hai....bahut bahut sundar !

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  25. क्रूर काल साकी कितना हूँ
    भर दे विस्मृति का हाला
    खाली कर न सकेगा फिर भी
    लोगों की स्मृति का प्याला
    इस जगती पर परिवर्तन के
    आएँ झंझावात भले
    अमर रहेंगे साकी बच्चन
    अमर रहेगी मधुशाला
    बहुत सुन्दर रचना ! हर एक पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी !

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  26. नमस्‍कार राय साहब,

    यह ब्‍लाग (मनोज) तो आप ही के ज़रिये आज पढ़ने को मिल रहा है. सच कहूँ तो आपकी इस रचना का बड़ा इंतज़ार था. शायद शुरू के दो-तीन लोगों में मैं रहा हूँगा जिसे यह रचना आपने लिखते ही सुनाई थी. आज जैसे ही रचना देखी लगा आप सामने सोफे पर आमने-सामने बैठे रचना सुना रहे हों. सारी स्‍मृतियॉं एक चलचित्र बनकर ऑंखों के आगे चल रही हैं. संभवत: रचना सुनाने का समय भी इतनी ही रात्रि का रहा होगा. मुझे याद है यह रचना आपने रेल यात्रा करते समय लिखी थी. वह भी शायद बच्‍चन जी की पुण्‍यतिथि पर. मेरे अब तक की साहित्‍यिक गतिविधियों के दौरान शायद ही इतनी सटीक रचना बच्‍चन जी की मधुशाला या उनके जीवन के फलसफे पर किसी ने लिखी होगी. यह कहूँगा कि हम सब मिलकर जैसी श्रद्धांजलि बच्‍चन जी को देना चाहते थे वह आपने इसे लिखकर दे दी है. हम सब इस खास रचना के लिए आभारी हैं. मैं इस ब्‍लाग के माध्‍यम से लिखना चाहूँगा कि भले ही कम रचनाएं आपने लिखीं होंगी पर उन रचनाओं का शिल्‍प, कथ्‍य और गांभीर्य पाठक में एक पात्रता की मॉंग करता हैं. रचनाएं पढ़कर पाठक को लगता है कि मेरा भी क्‍लास ऊँचा हो गया है. बहुत तीव्र अनुभूतियॉं आपके काव्‍य में मैंने महसूस की हैं, बल्‍िक कहूँगा कि आधुनिक काव्‍य में शास्‍त्रीय ढंग से बिम्‍बों का प्रयोग बहुत कम ही कवि इतने ढंग से कर पाते हैं. मुझे याद है आप कविता समझने का तरीका भी बताया करते थे. यह कोरी प्रशंसा नहीं अपितु दशाधि वर्षों से भी अधिक समय से आप से जुड़े रहने और कई घण्‍टों व दिनों की चर्चाओं के बाद यह कह रहा हूँ. मुनासिब बात कहना और मुनासिब व्‍यवहार करना यह आपका स्‍वभाव है जो आपकी रचनाएं बोलती हैं. जब कविता बोलने लग जाए तो समझने के लिए कुछ अधिक शेष नहीं रह जाता. रह जाता है तो बस उसे अपनाना.


    आपकी और भी रचनाओं, खासकर अन्‍यान्‍य विषयों पर लेखों की प्रतीक्षा है. आशा है आप अपने विचारों से हमें लाभान्‍वित करते रहेंगे. मनोज कुमार जी को भी बधाई कि बहुत सराहनीय कार्य यह ब्‍लाग आरंभ कर उन्‍होंने किया है. यह उनका ब्‍लाग नहीं बल्‍िक हम सबका ई-चबूतरा है जिस पर हमसब साथ नहीं बैठते बल्‍कि हमारे लिखे विचार बैठ बतियाते हैं.


    होमनिधि शर्मा

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