शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

शिव स्वरोदय

शिव स्वरोदय

 

आचार्य परशुराम राय

'शिव स्वरोदय' स्वरोदय विज्ञान पर अत्यन्त प्राचीन ग्रंथ है। इसमें कुल 395 श्लोक हैं। यह ग्रंथ शिव-पार्वती संवाद के रूप में लिखा गया है। शायद इसलिए कि सम्पूर्ण सृष्टि में समष्टि और व्यष्टि का अनवरत संवाद चलता रहता है और योगी अन्तर्मुखी होकर योग द्वारा इस संवाद को सुनता है, समझता है और आत्मसात करता हैं। इस ग्रंथ के रचयिता साक्षात् देवाधिदेव भगवान शिव को माना जाता है। यहाँ शिव स्वरोदय के श्लोकों का हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद दिया जाएगा। आवश्यकतानुसार व्याख्या भी करने का प्रयास किया जाएगा। वैसे यह ग्रंथ बहुत ही सरल संस्कृत भाषा में लिखा गया है।

इसमें बतायी गयी साधनाओं का अभ्यास बिना किसी स्वरयोगी के सान्निध्य के करना वर्जित है। केवल निरापद प्रयोगों को ही पाठक अपनाएँ।

महेश्वरं नमस्कृत्य शैलजां गणनायकम्।

गुरुं च परमात्मानं भजे संसार तारकम्।।1।।

अन्वय -- महेश्वरं शैलजां गणनायकं संसारतारकं

गुरुं च नमस्कृत्य परमात्मानं भजे।

अर्थ:- महेश्वर भगवान शिव, माँ पार्वती, श्री गणेश और संसार से उद्धार करने वाले गुरु को नमस्कार करके परमात्मा का स्मरण करता हूँ।

English Translation : First I salute Lord Shiva , Divine Mother Parvati, Shri Ganesha and Guru, who liberates us from the worldly bondage, i.e. birth and death, I surrender to The Cosmic Soul.

देवदेव महादेव कृपां कृत्वा ममोपरि।

सर्वसिद्धिकरं ज्ञानं वदयस्व मम प्रभो।।2।।

अन्वय -- देवदेव महादेव यम प्रभो यमोपरि कृपां कृत्वा

सर्वसिद्धिकरं ज्ञानं वदयस्व।

अर्थ:- माँ पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हे देवाधिदेव महादेव, मेरे स्वामी, मुझ पर कृपा करके सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाले ज्ञान प्रदान कीजिए।

English Translation : Divine Mother Parvati said to Lord Shiva, “O lord of gods and my Master, you are requested to tell me the knowledge, which bestows all powers.”

कथं बह्माण्डमुत्पन्नं कथं वा परिवर्त्तते।

कथं विलीयते देव वद ब्रह्माण्डनिर्णयम्।।3।।

अन्वय -- देव, कथं ब्रहमाण्डं उत्पन्नं, कथं परिवर्तते, कथं

विलीयते वा ब्रहमाण्ड-निर्णयं च वद।

अर्थ:- हे देव, मुझे यह बताने की कृपा करें कि यह ब्रह्माण्ड कैसे उत्पन्न हुआ, यह कैसे परिवर्तित होता है, अन्यथा यह कैसे विलीन हो जाता है, अर्थात् इसका प्रलय कैसे होता है और ब्रह्माण्ड का मूल कारण क्या है?

English Translation : “O Lord, please tell me how this universe was created, how it gets changed, how it gets desolved and who decides this universe, i.e. what prime cause of this universe is.”

तत्त्वाद् ब्रह्याण्डमुत्पन्नं तत्त्वेन परिवर्त्तते।

तत्त्वे विलीयते देवि तत्त्वाद् ब्रह्मा़ण्डनिर्णयः।।4।

अन्वय-- ईश्वर उवाच - देवि, तत्वाद् ब्रह्माण्डम् उत्पन्नं, तत्वेन

परिवर्त्तते, तत्वे (एव) विलीयते, तत्वाद् (एव)

ब्रह्माण्डनिर्णय: (च)।

अर्थ:- भगवान बोले - हे देवि, यह ब्रह्माण्ड तत्व से उत्पन्न होता है, तत्व से परिवर्तित होता है, तत्व में ही विलीन हो जाता है और तत्व से ही ब्रह्माण्ड का निर्णय होता है, अर्थात् तत्व ही ब्रह्माण्ड का मूल कारण है। (इस प्रकार सृष्टि का अनन्त क्रम चलता रहता है)

English Translation : Lord Shiva said to Her, “O Divine Power, this universe was created by tattva (The Supreme Being), it is sustained by this and it is ultimately dissolved in this only. Tattva is the only cause of this creation, and thus the process of this creation continues without any end.”

तत्वमेव परं मूलं निश्चितं तत्त्ववादिभिः।

तत्त्वस्वरूपं किं देव तत्त्वमेव प्रकाशय।।5।।

अन्वय --देव्युवाच – देव, परं मूलं तत्वम् निश्चितम् एव कथम? तत्ववादिभि: तत्वस्वरूपं किम्? (तत्) तत्वं प्रकाशय।

अर्थ:- हे देव! किस प्रकार (सृष्टि, स्थिति, संहार एवं इनके निर्णय) का मूल कारण तत्व हैं? तत्ववादियों ने उसका क्या स्वरूप बताया है? वह तत्व क्या है?

English Translation : The Goddess said to Lord Shiva, “ O Lord, in what way The Tattva is is the prime cause (of creation, its changes, its dissolve and decision about all these three). How it has been described by the sages who are seer of it. What This Tattva is really.”

निरंजनो निराकार एको देवो महेश्वरः।

तस्मादाकाशमुत्पन्नमाकाशाद्वायुसंभवः।।6।।

अन्वय -- ईश्वर उवाच - निरञ्जन: निराकार: एक: देव: महेष्वर:

(तदेव तत् तत्वम्)। तस्माद् (एव) आकाशम् उत्पन्नम्

आकाशाद् वायु: सम्भव:।

अर्थ:- हे देवि, अजन्मा और निराकार एक मात्र देवता महेश्वर हैं, वे ही इस जगत प्रपंच के मूल कारण हैं। उन्हीं देव से सर्वप्रथम यह आकाश उत्पन्न हुआ और आकाश से वायु उत्पन्न हुआ।

English Translation : Lord Shiva said to Her, “O Goddess, Lord Maheshwar, who is without birth and form, is the only tattva and prime cause for creation, sustainability and dissolvability of this universe. First, the ether was created and thereafter air there from.”

वायोस्तेजस्ततश्चापस्ततः पृथ्वीसमुद्भवः।

एतानि पंचतत्त्वानि विस्तीर्णानि पंचधा ।।7।।

अन्वय --वायो: तेज: तत: आप: तत: पृथिव्या: (तत्वम्) समुद्भव: (भवति)। एतानि पञ्चतत्वानि विस्तीर्णानि पञचधा।

अर्थ:- वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी का उद्भव हुआ। इन पाँच प्रकार से ये पंच महाभूत विस्तृत होकर (समष्टि रूप से) सृष्टि करते हैं।

English Translation : “Tejas, the fire, was created by Vayu, the air. Tejas created by Apas, the water, and water created earth. And thus these five tattvas were evoluted.

तेभ्यो ब्रह्माण्डमुत्पन्नं तैरेव परिवर्त्तते।

विलीयते च तत्रैव तत्रैव रमते पुनः।।8।।

अन्वय -- तेभ्यो ब्रह्माण्डम् उत्पन्नं, तै: एव परिवर्तते, विलीयते

तत्रैव एव, तत्र एव च रमते पुन:।

अर्थ:- उन्हीं पंच महाभूतों से ब्रह्माण्ड उत्पन्न होता है, उन्हीं के द्वारा परिवर्तित होता है और उन्हीं में विलीन हो जाता है तथा सृष्टि का क्रम सतत् चलता रहता है।

English Translation : This universe is created by these five tattavas. They only cause changes in the universe and this is dissolved in the them to create changes further. Thus this creation continues endlessly.

पंचतत्त्वमये देहे पंचतत्त्वानि सुन्दरि।

सूक्ष्म रुपेण वर्त्तन्ते ज्ञायन्ते तत्त्वयोगिभिः।।9।।

अन्वय -- (हे) सुन्दरि, पंचतत्वमये देहे पंचतत्वानि सूक्ष्मरूपेण

वर्तन्ते, तत्वयोगिभि: ज्ञायन्ते।

अर्थ:- हे सुन्दरि, इन्हीं पाँच तत्वों से निर्मित हमारे शरीर में ये पाँचों तत्व सूक्ष्म रूप से सक्रिय रहते हैं, जिनसे हमारे शरीर में परिवर्तन होता रहता है। इनका पूर्ण ज्ञान तत्वदर्शी योगियों को ही होता है। यहाँ तत्वायोगी का अर्थ तत्व की साधना कर तत्वों के रहस्यों के प्रकाश का साक्षात् करने वाले योगियों से है।

English Translation : O Beauty Explorer Goddess, these tattavas exist in the subtle form in the body made of them only. They cause changes there too. They open their secrets before those yogis who meditate on them as per instructions of their masters (Guru).

23 टिप्‍पणियां:

  1. bahut bahut dhanyvad........
    nice to know about GRANTH SHIV SWARODAYA .

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  2. एक बहुत ही उपयोगी जानकारी। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    बदलते परिवेश में अनुवादकों की भूमिका, मनोज कुमार,की प्रस्तुति राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

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  3. इस ग्रन्थ के बारे मे पहली बार जाना है बेशक स्वरोदय के बारे मे पहले पडःअ भी है। बहुत ग्यानवर्द्धक रहेगी इसकी अगली कडिया। धन्यवाद।

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  4. बहुत ज्ञानवर्धक प्रशंशनीय प्रयास...आभार..

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  5. ज्ञानवर्धक आलेख। यह ब्लॉगजगत के लिए धरोहर होगी। आभार।

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  6. ये तो बहुत ही अच्छी जानकारी है .
    पढ़कर अच्छा लगा . आभार ....

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  7. ये तो बहुत ही अच्छी जानकारी है .
    पढ़कर अच्छा लगा . आभार ....

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  8. और, अब तीनों भाषाओं में शिव स्वरोदय। कितना श्रमसाध्य है यह।
    आपके अमूल्य प्रयासों और अथक परिश्रम की सराहना करनी होगी।
    आभार।

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  9. बहुत ही अच्छी जानकारी , धन्यवाद

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  10. स्वरोँ के विषय मेँ जानकारी पाकर अच्छा लगा। इसी तरहा इस विषय को आगे बढ़ाते रहेँ । हमारे आदरणीय एवं मित्र बहुत ही लाभान्वित होँगे अगर सभी साथ-साथ इसका अभ्यास भी करते रहेँ। -: VISIT MY BLOG :- तपा सकेँ अगर सोना तो हृदय मेँ अगन होनी चाहिए।............गजल को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।

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  11. सुन्दर लेखन व मौजूं बातों को देखकर सराहना किए बिना यहाँ से जा न सका!

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