सोमवार, 1 अगस्त 2011

सेंमल सी फूल गई बदली


नवगीत

सेंमल सी फूल गई बदली
श्यामनारायण मिश्र

पछुआ की बांह थाम कर
घाटी में झूल गई बदली।

भीतर की बंद चित्रशाला का
            कौन खोल जाता है द्वार सा।
बूंदों से धुला हुआ मन
      बिछने को होता है
                  खेत पर जुआर सा।
सूरज ने  छोर  क्या छुआ
सेंमल सी फूल गई बदली।

पर्वत पर नई चढ़ी हरियाली
            टुकुर-टुकुर छौनों सी ताकने लगी।
लहरों की नई-नई रेवड़ को
            भाग  दौड़कर नदी हांकने  लगी।
कजली के  बोल क्या उठे
रास्ता सा भूल गई बदली।

देखो जी यादगार घड़ियों के
            नपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
साल भर कोई कहीं रह ले
      बरसात के बस चार दिन
                  घर लौट आने के।
फिर  तुम गए मौसम गया
जाने किस कूल गई बदली।

30 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति और जन-मानस के अटूट सम्बन्धों की चर्चा से ओत-प्रोत, नये बिम्बों से सँवरा और भाषा की ताजगी में नहाया हुआ गीत बड़ा ही कोमल और मनोरंजक है। साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूबसूरत रचना , समयानुकूल भी , आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. पेड़ पौधों को यह जीवन्त रूप देकर आपने प्रकृति को अद्भुत गतिशीलता दे दी है।

    जवाब देंहटाएं
  4. सावन के मौसम में इतना प्यारा गीत पाकर आजकी सुबह खिल उठी। मैं झूम रहा हूँ :

    नैसर्गिक अनुभव हुआ
    नवगीत गुनगुनाने लगे
    शब्दो ने मन को छुआ
    तो बार बार गाने लगे

    बच्चों की बस आ गयी
    चढ़कर स्कूल गयी बदली
    :)

    जवाब देंहटाएं
  5. देखो जी यादगार घड़ियों के
    नपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
    साल भर कोई कहीं रह ले
    बरसात के बस चार दिन
    घर लौट आने के।
    फिर तुम गए मौसम गया
    जाने किस कूल गई बदली।


    शानदार अनुपम अभिव्यक्ति.
    बरसात के मौसम का सुखद अहसास कराती हुई.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. देखो जी यादगार घड़ियों के
    नपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
    साल भर कोई कहीं रह ले
    बरसात के बस चार दिन
    घर लौट आने के।
    to aur ab kya kahna ...

    जवाब देंहटाएं
  7. कोमल /मनमोहक अभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही मनभावन गीत लिखा है…………आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. देखो जी यादगार घड़ियों के नपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
    साल भर कोई कहीं रह ले
    बरसात के बस चार दिन घर लौट आने के।फिर तुम गए मौसम गयाजाने किस कूल गई बदली।

    बहुत सुंदर रचना ...
    पढ़कर झूम गया मन ..

    जवाब देंहटाएं
  11. क्या सुन्दर गीत! कलम चूमने का मन करता है!

    जवाब देंहटाएं
  12. सुन्दर और मनमोहक गीत शेयर किया आपने...
    सादर आभार...

    जवाब देंहटाएं
  13. फिर तुम गए मौसम गया
    जाने किस कूल गई बदली।

    बहुत ही अच्छा, कर्णप्रिय व भावपूर्ण नवगीत...आभार..

    जवाब देंहटाएं
  14. प्राकृतिक उपादानों से विप्रलंभ शृंगार की सुंदर अभिव्यक्ति। मिश्रजी के गीत पढकर मन हिलोरें लेने लगता है।

    जवाब देंहटाएं
  15. सूरज ने छोरक्या छुआ, सेंमल सी फूल गई बदली
    देखो जी यादगार घड़ियों के
    नपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
    साल भर कोई कहीं रह ले
    बरसात के बस चार दिन
    घर लौट आने के।बहुत खूबसूरत अंदाज़ की रचना श्यामनारायण मिश्र जी की आपने सुनवाई .आप इस साहित्य को सर्व -कालिक,स्थाई बना रहें हैं .बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  16. सुन्दर प्रकृति गीत... बहुत बढ़िया... मिश्र जी का संकलन निकालिए....

    जवाब देंहटाएं
  17. आदरणीय मनोज जी हार्दिक अभिवादन -इस रचना के पोर पोर में जादुई रंग भरा है अल्हड सी विरहिणी का पक्ष ले उनके प्रियतम को बुला गयी
    सुन्दर शब्द संयोजन सावन की मस्ती कजरी ..
    बधाई हो

    साल भर कोई कहीं रह ले
    बरसात के बस चार दिन
    घर लौट आने के।
    फिर तुम गए मौसम गया
    जाने किस कूल गई बदली।

    जवाब देंहटाएं
  18. देखो जी यादगार घड़ियों के
    नपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
    साल भर कोई कहीं रह ले
    बरसात के बस चार दिन
    घर लौट आने के।
    वाह बहुत ही बेहतरीन ,सार्थक रचना / इतने अच्छी रचना के लिए बधाई आपको /खूबसूरत /

    जवाब देंहटाएं
  19. मनोज जी
    रचना बहुत ही खूबसूरत लगी. धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  20. देखो जी यादगार घड़ियों के
    नपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
    साल भर कोई कहीं रह ले
    बरसात के बस चार दिन
    घर लौट आने के।
    फिर तुम गए मौसम गया
    जाने किस कूल गई बदली।
    Behad sundar rachana!

    जवाब देंहटाएं
  21. बहुत खूबसूरत सार्थक रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  22. पर्वत पर नई चढ़ी हरियाली
    टुकुर-टुकुर छौनों सी ताकने लगी।
    लहरों की नई-नई रेवड़ को
    भाग दौड़कर नदी हांकने लगी।
    कजली के बोल क्या उठे
    रास्ता सा भूल गई बदली।
    bahut hi badhiya ,prakriti se mujhe behad lagao hai ,aap aaye khushi hui ,koshish karte rahe to umeed kayam rahegi .

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।