शान्तनु के देश में
श्यामनारायण मिश्र
देखने की
डालकर आदत अंधेरे में,
देखता हूं
पास ही बिखरे पड़े हैं
रोशनी के सभी साधन
यहीं डेरे में।
सिर्फ़ मेरे चाहने से
कुछ नहीं होगा पितामह !
शान्तनु के शिश्नजीवी देश में
आपकी
मेरी तरह यह बाद वाली पीढ़ियां
सोई पड़ी हैं
एक दुर्योधन खड़ा है तैश में।
क़त्ल होते जा रहे अभिमन्यु
षडयंत्र के दुष्चक्र घेरे में।
सात घोड़ों की
सवारी से नहीं उतरा
अभी तक रोशनी का देवता।
लोग
टोने-टोटके की सीढ़ियां
सर पर उठाए
ढूंढ़ते हैं स्वर्ग जाने का पुराना रास्ता।
एक छोटा ही सही
दीपक जलाकर टेरता हूं
लौटना कोई नहीं अब चाहता
फिर से बसेरे में।
*** *** ***
चित्र : आभार गूगल सर्च
वाकई प्राचीन प्रतीकों के साथ आज की कविता! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंएक छोटा ही सही
जवाब देंहटाएंदीपक जलाकर टेरता हूं
लौटना कोई नहीं अब चाहता
फिर से बसेरे में।
बहुत सुंदर रचना ...!!
ओजपूर्ण भावपूर्ण कविता
जवाब देंहटाएंवाह....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना....
सादर.
अद्भुत बिम्ब/संकेत... क्या सुंदर कविता...
जवाब देंहटाएंपढ़ता रचना सोचता, हो बैठा तल्लीन।
वर्तमान दिखला रहा, आईना प्राचीन।
सादर आभार।
टोटकों से आक्रांता डर जाते तो क्या बात थी..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ||
टोने-टोटके की सीढ़ियां
जवाब देंहटाएंसर पर उठाए
ढूंढ़ते हैं स्वर्ग जाने का पुराना रास्ता।
अतीत खुद को दोहराता ही रहता है। सुन्दर कविता।
प्रतीकों के माध्यम से युग-चित्रण - प्रभावी बन पड़ा है .
जवाब देंहटाएंएक छोटा ही सही
जवाब देंहटाएंदीपक जलाकर टेरता हूं
लौटना कोई नहीं अब चाहता
फिर से बसेरे में।
किन्तु,
एक छोटीसी किरण भी काफी है
सूरज के उस स्त्रोत तक पहुँचने को,
सुंदर रचना ....आभार !
एक छोटीसी किरण भी काफी है
जवाब देंहटाएंसूरज के उस स्त्रोत तक पहुँचने को,
बहुत सुन्दर रचना ....आभार !
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आकर चर्चामंच की शोभा बढायें
जवाब देंहटाएंलौटना कोई नहीं अब चाहता
जवाब देंहटाएंफिर से बसेरे में…………सत्य को उदघाटि्त करती सुन्दर प्रस्तुति
आज की रचना श्याम नारायण मिश्रा जी की और कविताओं से अलग ही रंग लिए हुये है .... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंएक छोटीसी किरण भी काफी है
जवाब देंहटाएंसूरज के उस स्त्रोत तक पहुँचने को,
बेहतरीन ...
सात घोड़ों की
जवाब देंहटाएंसवारी से नहीं उतरा
अभी तक रोशनी का देवता।
अद्भुत बिम्ब/संकेत
वाह॥ मज़ा आगया आज यह पोस्ट पढ़कर आज इस कविता के माध्यम से युग चित्रण का एक अलग ही रंग देखने को मिला। आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंI read your post interesting and informative. I am doing research on bloggers who use effectively blog for disseminate information.My Thesis titled as "Study on Blogging Pattern Of Selected Bloggers(Indians)".I glad if u wish to participate in my research.Please contact me through mail. Thank you.
जवाब देंहटाएंhttp://priyarajan-naga.blogspot.in/2012/06/study-on-blogging-pattern-of-selected.html
क्या बात है .बहुत ही अव्वल दर्जे की रचना पढवाई -सिर्फ़ मेरे चाहने से
जवाब देंहटाएंकुछ नहीं होगा पितामह !
शान्तनु के शिश्नजीवी देश में
आपकी
मेरी तरह यह बाद वाली पीढ़ियां
सोई पड़ी हैं
अभिनव प्रयोग .
एक छोटा ही सही दीपक जला कर टेरता हूं
जवाब देंहटाएंलौटना कोई नही चाहता इस बसेरे में ।
सटीक सामयिक भी ।