मंगलवार, 31 जुलाई 2012

आज के दौर में

अरुण चंद्र रॉय की कविता ईश्वर पर दी गई टिप्पणी से निकली कविता ...


आज के दौर में 

जिसमें 

बल है 

छल है 

बहाने हैं 

वह ईश्वर है


या फिर ये कहें कि 

जो होता जा रहा है 

निरंकुश 

वह ईश्वर है 


या फिर यह मान लें 

कि 

सुरक्षित है सत्ता 

इसलिए वह अपने को 

ईश्वर 

समझ बैठा है 

सीधा कम 

ज़्यादा ऐंठा है। 


सत्ताधारी ... 

जो लोगों को 

सुख कम 

       अधिक बवाल देता है 

एक न एक दिन 

ईश्वर उसकी 

सब कस बल निकाल देता है।


14 टिप्‍पणियां:

  1. सत्ताधारी ...
    जो लोगों को
    सुख कम
    अधिक बवाल देता है
    एक न एक दिन
    ईश्वर उसकी
    सब कस बल निकाल देता है।.... यही सच है

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  2. मनोज जी मैं अपनी कविता को यहीं से शुरू की थी लेकिन इस कटाक्ष को हैंडल न कर सका और फिर यह कविता बन गई... आपकी कविता मूल कविता से कहीं अधिक प्रभावशाली और मीनिंगफुल है...कविता को विस्तार देने के लिए आभार...

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  3. या फिर ये कहें कि

    जो होता जा रहा है

    निरंकुश

    वह ईश्वर है

    आपने अरुण चन्द्र जी की कविताओं को अद्भुत और सार्थक विस्तार दिया है . निःशब्द

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  4. आज के दौर में
    जिसमें
    बल है
    छल है
    बहाने हैं
    वह ईश्वर है

    जो मनुष्य की किसी भी परिभाषाओं में
    फिट नहीं होता वही इश्वर है ...
    (ये भी परिभाषा ही है क्या करे मज़बूरी है)

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  5. छल का बल ढल ढल जाता है,
    जब विरुद्ध हो फल आता है।

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  6. सही कहा आपने
    इतिहास में झांके तो निरंकुशता का अंत कितना दर्दनाक रहा है ..
    घड़ा कितना भरेगा,,, हर चीज की सीमा होती है ...

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  7. 'एक न एक दिन
    ईश्वर उसकी
    सब कस बल निकाल देता है।'
    - हाँ ईश्वर तो पाप का घड़ा भरने पर फोड़ेगा लेकिन उससे पहले जो उस अत्याचार के विरुद्ध खड़ा हो जाये ,संभव है वह भी नईश्वर कहलाने लगे ! .

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  8. छल बल व सत्ता पाकर वह खुद को ईस्वर समझने लगता है । सही बात ।

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  9. निरंकुशता का कितना दर्दनाक अंत,,,,

    रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

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