मनोज जी मैं अपनी कविता को यहीं से शुरू की थी लेकिन इस कटाक्ष को हैंडल न कर सका और फिर यह कविता बन गई... आपकी कविता मूल कविता से कहीं अधिक प्रभावशाली और मीनिंगफुल है...कविता को विस्तार देने के लिए आभार...
'एक न एक दिन ईश्वर उसकी सब कस बल निकाल देता है।' - हाँ ईश्वर तो पाप का घड़ा भरने पर फोड़ेगा लेकिन उससे पहले जो उस अत्याचार के विरुद्ध खड़ा हो जाये ,संभव है वह भी नईश्वर कहलाने लगे ! .
सत्ताधारी ...
जवाब देंहटाएंजो लोगों को
सुख कम
अधिक बवाल देता है
एक न एक दिन
ईश्वर उसकी
सब कस बल निकाल देता है।.... यही सच है
मनोज जी मैं अपनी कविता को यहीं से शुरू की थी लेकिन इस कटाक्ष को हैंडल न कर सका और फिर यह कविता बन गई... आपकी कविता मूल कविता से कहीं अधिक प्रभावशाली और मीनिंगफुल है...कविता को विस्तार देने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता :)
जवाब देंहटाएंया फिर ये कहें कि
जवाब देंहटाएंजो होता जा रहा है
निरंकुश
वह ईश्वर है
आपने अरुण चन्द्र जी की कविताओं को अद्भुत और सार्थक विस्तार दिया है . निःशब्द
आज के दौर में
जवाब देंहटाएंजिसमें
बल है
छल है
बहाने हैं
वह ईश्वर है
जो मनुष्य की किसी भी परिभाषाओं में
फिट नहीं होता वही इश्वर है ...
(ये भी परिभाषा ही है क्या करे मज़बूरी है)
छल का बल ढल ढल जाता है,
जवाब देंहटाएंजब विरुद्ध हो फल आता है।
सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंइतिहास में झांके तो निरंकुशता का अंत कितना दर्दनाक रहा है ..
घड़ा कितना भरेगा,,, हर चीज की सीमा होती है ...
'एक न एक दिन
जवाब देंहटाएंईश्वर उसकी
सब कस बल निकाल देता है।'
- हाँ ईश्वर तो पाप का घड़ा भरने पर फोड़ेगा लेकिन उससे पहले जो उस अत्याचार के विरुद्ध खड़ा हो जाये ,संभव है वह भी नईश्वर कहलाने लगे ! .
power corrupts, absolute power corrupts absolutely.
जवाब देंहटाएंछल बल व सत्ता पाकर वह खुद को ईस्वर समझने लगता है । सही बात ।
जवाब देंहटाएंसही बात
जवाब देंहटाएंrachna shandaar hai
जवाब देंहटाएंनिरंकुशता का कितना दर्दनाक अंत,,,,
जवाब देंहटाएंरक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
सार्थक ...
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