प्रणय के स्रोत का अनवरत कल-कल
श्यामनारायण मिश्र
गलियों में
रंगों के ताल-नदी-झरने हैं,
छज्जों पर
कुंकुम का लहराता बादल है।
आज क्यों?
तुम्हारी खिड़की पर परदे,
द्वारे पर सांकल है।
मुंह अंधेरे के उठे हैं
प्यार के छौने,
टेसुओं की सुर्ख टहनी
टेरती है।
एक नटखट
शोख आदत छटपटाती
गली-कूंचों में तुम्हें
क्यों हेरती है?
बस्तियों से दूर
पर्वत पर प्रणय के स्रोत का
अनवरत कल कल है।
मुझे,
ओछे संस्कारों के
ठहाकों, कीच-कांदो में
डुबाती एक पागल भीड़।
तुम्हें,
अंधी मान्यताओं के खते खोखल
औ विचारों के कटीले नीड़।
फिर वही मन है
वही यौवन,
वही टेसू का दहकता
हुआ जंगल है।
आ सकोगी
छद्म का रंगीन
घेरा तोड़कर
एक आदिम पर्व का निर्वाह करने।
कई जन्मों से
पड़ी वीरान घाटी में
चिर प्रणय का
फिर नया संगीत भरने।
आज पांवों में
वही गति है
फिर शिलाओं का
प्रथम संघात मादल है।
*** *** ***
चित्र : आभार गूगल सर्च
कवि की कल्पनायें भी कितनी मुक्त और मादक होती हैं !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंआ सकोगी
छद्म का रंगीन
घेरा तोड़कर
एक आदिम पर्व का निर्वाह करने।
जल की तरह बहाने वाला प्रेम .... अनवरत और अविरल
वाह: निश्छल सा बहता प्रेम सागर..आभार..
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार श्रीमान जी ||
बहुत बढ़िया प्रस्तुती, श्यामनारायण मिश्र जी की सुंदर रचना,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
मोहक..
जवाब देंहटाएंअनोखा और मनमोहक काव्य है ...
जवाब देंहटाएंकल ही हिंदी नव गीत के जनक माने जाने वाले देवेन्द्र शर्मा इन्द्र जी से श्याम नारायण मिश्र जी के जीवन और नवगीत पर बातचीत हुई.... देवेन्द्र जी श्याम नारायण जी के गीत से बहुत प्रभावित थे... आज का गीत बहुत बढ़िया है...
जवाब देंहटाएंआप से पिछली मुलाक़ात में मैंने कहा था ना, अरुण जी!!
हटाएंआ सकोगी
जवाब देंहटाएंछद्म का रंगीन
घेरा तोड़कर
एक आदिम पर्व का निर्वाह करने।
वाह क्या बात है बहुत सुंदर यथार्थ
मन को कही गहरे में छू गई यह रचना !
मुझे,
जवाब देंहटाएंओछे संस्कारों के
ठहाकों, कीच-कांदो में
डुबाती एक पागल भीड़।
निश्छल प्रेम की पास में बंधी अनोखी दास्तान
आ सकोगी
जवाब देंहटाएंछद्म का रंगीन
घेरा तोड़कर
एक आदिम पर्व का निर्वाह करने।
कई जन्मों से
पड़ी वीरान घाटी में
चिर प्रणय का
फिर नया संगीत भरने।
वाह.....
बहुत सुन्दर....मनमोहक रचना.
सादर
अनु
सुंदर भाव सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंआमन्त्रण के स्वर बहते, कुछ मधुर मधुर, कुछ मदिर मदिर।
जवाब देंहटाएंइन नवगीतों को पढ़कर स्व.पंडित श्यामनारायण मिश्र जी के साथ कविगोष्ठियों के दिन याद आते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...बहा ले जा रही है कविता अपने प्रवाह मे अपने संग ...
जवाब देंहटाएंश्यामनरायण जी की कविताओँ में अलग ही एह्सास होते हैं ...!!
आ सकोगी
जवाब देंहटाएंछद्म का रंगीन
घेरा तोड़कर
एक आदिम पर्व का निर्वाह करने।
बस वाह!
बहुत ही मनमोहक गीत !
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव संयोजन मेरे लिए तो निशब्द करती बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंकलकल करता बहता प्रेम का दरिया
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रेम गीत..
जवाब देंहटाएंवसंत ऋतु के आगाज़ जैसी मादकता लिए खुबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआ सकोगी
जवाब देंहटाएंछद्म का रंगीन
घेरा तोड़कर
एक आदिम पर्व का निर्वाह करने।
.....लाज़वाब अभिव्यक्ति..
बहुत ही सुन्दर गीत है ।
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDAR GEET AAGRAH BHARA....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत।
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