सोमवार, 16 जुलाई 2012

समय के देवता!


समय के देवता!
                 श्यामनारायण मिश्र
समय के देवता!
थोड़ा रुको,
मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूं।
तुम्हारे पुण्य-चरणों की
महकती धूल में
आस्था के बीज बोना चाहता हूं।

उम्र भर दौड़ा थका-हारा,
विजन में श्लथ पड़ा हूं।
विचारों के चके उखड़े,
धुरे टूटे,
औंधा रथ पड़ा हूं।

आंसुओं से अंजुरी भर-भर,
तुम्हारे चरण धोना चाहता हूं।


धन-ऋण हुए लघुत्तम
गुणनफल शून्य ही रहा।
धधक कर आग अंतस
हो रहे ठंडे, आंख से
बस धुंआ बहा।

तुम्हारे छोर पर क्षितिज पर,
अस्तित्व खोना चाहता हूं।

19 टिप्‍पणियां:

  1. महकती धूल में बोया बीज सुन्दर वृक्ष बन अमर है..अस्तित्व का प्रमाण..अति सुन्दर कृति..

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  2. समय के देवता!
    थोड़ा रुको,
    मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूं।
    तुम्हारे पुण्य-चरणों की
    महकती धूल में
    आस्था के बीज बोना चाहता हूं।.... अति प्रभावशाली भाव

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  3. बहुत सुन्दर........
    धन-ऋण हुए लघुत्तम
    गुणनफल शून्य ही रहा।
    धधक कर आग अंतस
    हो रहे ठंडे, आंख से
    बस धुंआ बहा।

    अंतिम सत्य तो यही है....

    अनु

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  4. बहुत सुन्दर........
    धन-ऋण हुए लघुत्तम
    गुणनफल शून्य ही रहा।
    धधक कर आग अंतस
    हो रहे ठंडे, आंख से
    बस धुंआ बहा।
    गहन भाव लिए अनुपम अभिव्‍यक्ति ... आभार

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  5. तुम्हारे पुण्य-चरणों की
    महकती धूल में
    आस्था के बीज बोना चाहता हूं।

    बहुत सुंदर गीत ....

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  6. धन-ऋण हुए लघुत्तम
    गुणनफल शून्य ही रहा।.... सुन्दर पंक्तियाँ.. बहुत बढ़िया गीत

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  7. समय के देवता!
    थोड़ा रुको,
    मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूं।
    तुम्हारे पुण्य-चरणों की
    महकती धूल में
    आस्था के बीज बोना चाहता हूं।

    बहुत सुंदर सन्देश देती है यह पंक्तियाँ
    आस्था के बीज बोने से समय के साथ चलना थोडा
    आसान हो जाता है !

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  8. तुम्हारे छोर पर क्षितिज पर,
    अस्तित्व खोना चाहता हूं।

    इस तरह से खोने का अपना ही आनंद है ...
    मैं भी खोना चाहूँगा ...
    सार्थक व संदेशपूर्ण रचना !!

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  9. धन्य भाग्य |
    सुन्दर कृति के
    प्रस्तुति के लिए
    आभार ||

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  10. धन-ऋण हुए लघुत्तम
    गुणनफल शून्य ही रहा।
    धधक कर आग अंतस
    हो रहे ठंडे, आंख से
    बस धुंआ बहा।

    तुम्हारे छोर पर क्षितिज पर,
    अस्तित्व खोना चाहता हूं।

    आपकी गणना ने देवों के ही नहीं मानव के भी मन मोह लिए

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  11. श्यामनारायण जी की सुन्दर रचना बड़ी भाई.

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  12. समय के देवता!
    थोड़ा रुको,
    मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूं।
    तुम्हारे पुण्य-चरणों की
    महकती धूल में
    आस्था के बीज बोना चाहता हूं।

    समय के देवता से आस्था के बीज के अंकुरण की जरूरत अब सबको महसूस होने लगी है। बहुत सुंदर । धन्यवाद।

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  13. धन-ऋण हुए लघुत्तम
    गुणनफल शून्य ही रहा।
    धधक कर आग अंतस
    हो रहे ठंडे, आंख से
    बस धुंआ बहा।...bilkul sahi kaha hai aapne..prabhshali rachna..sadar badhayee ke sath

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  14. अत्यंत प्रभावी रचना ... उत्कृष्ट भाव लिए लाजवाब रचना ..

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  15. समय रथों पर हो आरूढ, वीर भेदते हैं जग को।

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