चल बेटे चल
श्यामनारायण मिश्र
चल बेटे चल
और किनारे चल।
बड़े बड़ों की राह में,
देते नहीं दखल।
कर मत अभी,
बहुत लिखने के
नाटक का उद्घाटन।
सीख
छंद की तलवारों का
थोड़ा तू संचालन।
गीत महाभारत है इसमें
टिकना नहीं सरल।
शब्द सिर्फ़ डग नहीं
उठाकर
बेमतलब मत झूम।
शब्द शब्द के
दांव पैंतरे
पहले कर मालूम।
समझे बिना ब्यूह
मुश्किल है
करना उथल पुथल।
शब्द नहीं रोड़े
इनको तू
फेंक नहीं बेकार।
गढ़ते हैं
छंदों की दीवार।
काव्य नगर में
तब गीतों के
बनते ताजमहल।
लोरी तो क्या,
गद्य, मर्सिया तक भी
गा न सकेगा।
ज्वार क्रांति के,
बालू का ये
दरिया ला न सकेगा।
गीत समय के साथ बहेगा
मत कर कोलाहल।
*** *** ***
चित्र : आभार गूगल सर्च
बेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंआभार
अनु
अच्छी सीख दी है, जरूरी भी है ।
जवाब देंहटाएंमन के तारों को झंकृत करने वाला एक बेहतरीन - नवगीत !
जवाब देंहटाएंसीख
जवाब देंहटाएंछंद की तलवारों का
थोड़ा तू संचालन।
गीत महाभारत है इसमें
टिकना नहीं सरल।
बहुत सुंदर गीत
मन को छूती हुई रचना... बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंज्वार क्रांति के,
जवाब देंहटाएंबालू का ये
दरिया ला न सकेगा।
गीत समय के साथ बहेगा
मत कर कोलाहल।
बहुत सुंदर रचना ...आभार ...!!
बड़ों का ज्ञान देती बाल कविता..
जवाब देंहटाएंज्वार क्रांति के,
जवाब देंहटाएंबालू का ये
दरिया ला न सकेगा।
गीत समय के साथ बहेगा
मत कर कोलाहल।
Ye to ham sabhee ke liye ek seekh hai!
गीत समय के साथ बहेगा
जवाब देंहटाएंमत कर कोलाहल।
bilkul sahi... sundar rachna ...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार को ३१/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंलोरी तो क्या,
जवाब देंहटाएंगद्य, मर्सिया तक भी
गा न सकेगा।
ज्वार क्रांति के,
बालू का ये
दरिया ला न सकेगा।
गीत समय के साथ बहेगा
मत कर कोलाहल।
अमर सन्देश देती रचना
सीख
जवाब देंहटाएंछंद की तलवारों का
थोड़ा तू संचालन।
बहुत बढ़िया सीख
सीख भरी रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर ...
श्यामनारायण मिश्र जी की सन्देश देती लाजबाब प्रस्तुति के लिए ,,,,आभार
जवाब देंहटाएंRECENT POST,,,इन्तजार,,,