314. व्यक्तिगत शोक का वर्ष
गांधी जी के भतीजे और क़रीब 25
वर्षों से उनके निकटतम सहयोगी मगनलाल भाई थोड़े समय की बीमारी के बाद 23
अप्रैल 1928 को पटना में चल बसे। गांधी जी ने दक्षिण अफ़्रीका में
फीनिक्स आश्रम की स्थापना करके सामुदायिक रहन-सहन का जो पहला प्रयोग किया था। उनकी
इस योजना में मगनभाई ने प्रबंधक की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारत लौटकर
अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना और उसके संचालन में भी वे अपरिहार्य थे। फिलहाल
वह बिहार में खादी के संगठन का काम देख रहे थे। मगनभाई के निधन से गांधीजी को गहरा
सदमा लगा। उन्होंने अपनी दिनचर्या बदल दी। वे सिर्फ़ प्रार्थना सभा में भाग लेते।
बाक़ी के आश्रम जीवन से वे लगभग एक सप्ताह तक अलग रहे। उनकी अपनी कुटिया से लगभग 200 गज
की दूरी पर मगनभाई की कुटिया थी। उसमें वे लगभग बंद से ही हो गए थे। हमेशा शोक में
डूबे रहे। “यंग इंडिया” में उन्होंने दिल को छूने वाला आलेख “माइ
बेस्ट कॉमरेड गॉन” लिखकर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा,
"जिसे मैंने अपना उत्तराधिकारी माना था, वह
अब नहीं रहा। मगनलाल के. गांधी, मेरे एक चाचा के पोते, 1904 से मेरे काम में मेरे साथ थे। मगनलाल के पिता ने अपने
सभी बेटों को इस काम के लिए समर्पित कर दिया। मृतक इस महीने की शुरुआत में बंगाल
गए थे, बिहार में ड्यूटी के दौरान उन्हें तेज बुखार हुआ और नौ
दिनों की बीमारी के बाद पटना में उनकी मृत्यु हो गई।
"मगनलाल गांधी 1903 में मेरे साथ दक्षिण अफ्रीका गए थे, ताकि
कुछ धन कमा सकें। लेकिन स्टोरकीपिंग करते हुए उन्हें मुश्किल से एक साल ही हुआ था
कि उन्होंने मेरे द्वारा आत्म-निर्भर गरीबी के आह्वान पर फीनिक्स सेटलमेंट में
शामिल हो गए और मेरे साथ जुड़ने के बाद कभी भी लड़खड़ाने या असफल नहीं हुए। प्रिंटिंग
प्रेस में काम करने के बाद, उन्होंने आसानी से और जल्दी से छपाई की कला के रहस्यों में
महारत हासिल कर ली। हालाँकि उन्होंने पहले कभी कोई औजार या मशीन नहीं संभाली थी, लेकिन वे इंजन रूम, मशीन रूम और कंपोजिटर की मेज पर खुद को सहज
पाते थे। वे इंडियन ओपिनियन के गुजराती संपादन में भी समान रूप से सहज थे। चूँकि
फीनिक्स योजना में घरेलू खेती भी शामिल थी, इसलिए वे एक अच्छे किसान बन गए।
"जब सत्याग्रह का जन्म हुआ, तो
वे सबसे आगे थे। उन्होंने मुझे वह अभिव्यक्ति दी, जिसे
मैं दक्षिण अफ्रीकी संघर्ष के लिए पूर्ण अर्थ देने के लिए खोज रहा था, और
जिसे बेहतर शब्द की कमी के कारण मैंने बहुत अपर्याप्त, यहां
तक कि भ्रामक शब्द 'निष्क्रिय प्रतिरोध' के रूप में पहचाना। काश मेरे पास वह सुंदर पत्र होता, जो
उन्होंने मुझे तब लिखा था, जिसमें उन्होंने नाम सुझाने के लिए अपने कारण बताए थे।
उन्होंने संघर्ष के पूरे दर्शन को चरण दर चरण तर्क दिया और पाठक को अपने चुने हुए
नाम तक अप्रतिरोध्य रूप से पहुँचाया।
"संघर्ष के दौरान वे कभी भी काम से थके नहीं, किसी
भी काम से पीछे नहीं हटे और अपनी निडरता से उन्होंने अपने आस-पास के हर व्यक्ति को
साहस और आशा से भर दिया। जब हर कोई जेल चला गया, जब
फीनिक्स में जेल जाना मेरे लिए एक पुरस्कार की तरह था, तब
वे एक बहुत भारी काम को अपने कंधों पर उठाने के लिए वहीं रुक गए।
"भारत लौटने पर, उन्होंने ही फिर से आश्रम को उसी सादगीपूर्ण तरीके से
स्थापित करना संभव बनाया, जिस तरह से इसकी स्थापना की गई थी। यहाँ उन्हें एक नए और
अधिक कठिन कार्य के लिए बुलाया गया। वे इसके लिए सक्षम साबित हुए। अस्पृश्यता उनके
लिए बहुत कठिन परीक्षा थी।
“वे
मेरे हाथ, पैर और मेरी आंखें थे। दुनिया को शायद ही मालूम हो कि मेरी तथाकथित
महानता मूक, समर्पित, सक्षम और पवित्र स्त्री-पुरुष कार्यकर्ताओं के अथक और उबाऊ
श्रम पर कितनी निर्भर है। उन सबमें मगनलाल मेरे लिए सबसे महान, सर्वश्रेष्ठ और
सबसे पवित्र थे।
“जब
मैं ये पंक्तियां लिख रहा हूं, मुझे अपने प्रिय का शोक करती विधवा का विलाप सुनाई
से रहा है। उसे शायद ही एहसास होगा कि उससे कहीं ज़्यादा मैं बेसहारा हो गया हूं।
उन्होंने कभी मुझे धोखा नहीं दिया, मेरी उम्मीदों पर हमेशा खरे उतरे। वे
उद्यमशीलता की प्रतिमूर्ति थे। वे भौतिक, नैतिक और आध्यात्मिक, सभी पहलुओं से आश्रम के पहरुए थे। उनका
जीवन मेरे लिए एक प्रेरणा है। वे नैतिकता के प्रभाव और वर्चस्व के जीवन्त उदाहरण
थे। उन्होंने दिखाया कि देश सेवा, मानवता की सेवा और ईश्वर की प्राप्ति या उसका
बोध, सब पर्यायवाची बाते हैं। उनकी मृत्यु हो चुकी है मगर वे अपने कार्यों में
जीवित हैं जिनकी छाप आश्रम के हर धूल-कण पर है।”
खादी के यंत्रशास्त्र में मगनभाई ने बहुत शोध किया था। उनकी
स्मृति में वर्धा के खादी-ग्रामोद्योग संग्रहालय को गांधीजी ने ‘मगन-संग्रहालय’
नाम दिया।
गांधीजी के लिए यह एक दुखद वर्ष था, उनके पोते रसिक, हरिलाल के बेटे, की
फरवरी की शुरुआत में मृत्यु हो गई, जिससे
वे बहुत दुखी हो गए। लड़के को मरने में बहुत समय लगा, और वह अंत तक बहादुर और सौम्य था। देवदास ने उसका पालन-पोषण किया और नियमित रूप
से रिपोर्ट भेजी,
लेकिन गांधी ने बीमारी की
शुरुआत से ही अनुमान लगा लिया था कि वह ठीक नहीं होगा। उन्होंने लिखा, "मेरे दिल की गहराई में रसिक की मृत्यु के लिए
कोई दुख नहीं है।" उन्होंने खुद से कहा, दुख केवल एक मोह है, और उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं है। सभी लोग मरते हैं; फिर उन्हें मृत्यु से क्यों डरना चाहिए? मृत्यु के बाद मनुष्य का पुनर्जन्म होता है, या फिर वह शाश्वत प्रकाश में प्रवेश करता है, और केवल यही दो संभावनाएँ हैं। इसलिए उन्हें
रसिक के लिए नहीं रोना चाहिए। इसलिए वह उन पत्रों में उस लड़के की मृत्यु के बारे
में बताता है जो शांत और सुंदर था और शायद उसके नक्शेकदम पर चलता; और जितना अधिक वह दिखावा करता है कि वह शोक के
एक कण से भी रहित है,
उतना ही अधिक वह रोता है।
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- राष्ट्रीय
आन्दोलन
संदर्भ : यहाँ पर
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