ज्योति-छंद फूटते नहीं
श्यामनारायण मिश्र
राजा की खंडहर हवेली से
सन्नाटा आकर
बैठा दालानों में पालथी जमाकर।
जाने क्या कह दिया हवा ने
गुमसुम हो बैठी है चीज़ें
आकृतियां सहमी सी लगती हैं
ओझे के गंडे ताबीजें।
संवेदन कोने में
खड़ा हुआ जैसे
कड़ी सज़ा सुनने को रुका हुआ चाकर।
मनहूसी गलियों में
धान के पुआलों सी
जगह जगह ढेर हुई।
कल तक तो चंगा था
सूरज को आने में
जाने क्यों देर हुई।
किरणों के
ज्योति-छंद फूटते नहीं
टोने सा पढ़ता है कौन बुदबुदाकर।
अपने ही भीतर
मन सुरंग खोदे
या मेले रोपे।
सांसों में गूंज रही
इस आदिम धुन को
किसके आंचल-बाहों सौंपे।
अंगुली के धरते ही
क्षितिज पार जाती थीं लहरें
पत्थर हो गई वह झील थरथराकर।
*** *** ***
चित्र : आभार गूगल सर्च
अंगुली के धरते ही
जवाब देंहटाएंक्षितिज पार जाती थीं लहरें
पत्थर हो गई वह झील थरथराकर।
गहरी संवेदना अभिव्यक्त हुई है इन पंक्तियों में ...!
कल तक तो चंगा था
जवाब देंहटाएंसूरज को आने में
जाने क्यों देर हुई।
किरणों के
ज्योति-छंद फूटते नहीं
टोने सा पढ़ता है कौन बुदबुदाकर......
बहुत बढ़िया...........
बेहतरीन रचना.
सादर.
महान कवि की माला का एक चमकता मोती ।
जवाब देंहटाएंआभार ।।
जीवन में ठहराव से, ठहरी हवा -किरण ।
कुरुक्षेत्र-मन बिकल है, चलिए प्रभू शरण ।।
बहुत खूबसूरत गीत पढ़वाने का आभार..
जवाब देंहटाएंपढ़ने को मिला ,आभार !
जवाब देंहटाएंअपने ही भीतर
जवाब देंहटाएंमन सुरंग खोदे
या मेले रोपे।
सांसों में गूंज रही
इस आदिम धुन को
किसके आंचल-बाहों सौंपे।
अंगुली के धरते ही
क्षितिज पार जाती थीं लहरें
पत्थर हो गई वह झील थरथराकर।
बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,सुन्दर रचना...
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
कल तक तो चंगा था
जवाब देंहटाएंसूरज को आने में
जाने क्यों देर हुई।
किरणों के
ज्योति-छंद फूटते नहीं
टोने सा पढ़ता है कौन बुदबुदाकर।
संवेदनशील गीत.... बढ़िया...
जवाब देंहटाएंराजा की खंडहर हवेली से
जवाब देंहटाएंसन्नाटा आकर
बैठा दालानों में पालथी जमाकर।
प्रारंभ से ही ऐसा समां बंधा ...सांस ही रुक गयी हो मानो ....
बहुत ही भावपूर्ण ...सुंदर रचना ...
आभार .
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......
जवाब देंहटाएंगहरी संवेदना समेटे सुंदर रचना बार बार पढ़ती रही !
जवाब देंहटाएंदिल को छू गयी यह कविता.. ऐसा लगता है मानो एक मधुर संगीत बज रहा हो और उसकी स्वर-लहरियाँ कविता के रूप में बिखरी हों.. बस महसूसने वाली कविता!!
जवाब देंहटाएंमनोज जी बहुत ही भावपूर्ण ...सुंदर अभिव्यक्ति.. ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत ... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .........
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .........
जवाब देंहटाएंराज्यमहल का माहौल राज्य भर में पसर जाता है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंमन के अंदर चलते उहापोह को शब्दों के जाल में बाँधने का सुंदर प्रयास इस मधुर गीत के माध्यम से हुआ है.
जवाब देंहटाएंबधाई मिश्र जी.
diiptka jii nen sahii kaha, ati sundar prstuti
जवाब देंहटाएंज्योति-छंद फूट रही है..
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti ke liye aabhar!
जवाब देंहटाएंsambednaaon ko jagaane wala ek shandaar geet...sadar badhayee...
जवाब देंहटाएंअभिनव बिम्बों से सुसज्जित भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
आभार