सोमवार, 30 अप्रैल 2012

अपनी ही माटी से


अपनी ही माटी से

श्यामनारायण मिश्र

पेट और  मुंह की
पैशाचिक धुन पर
हदर-दुदुर नाच रहे लोग
मन की सारंगी
     छेड़ो तो चैन मिले।

नारों के रटने में
सारी गतिविधियों के
     मधुमय लय वर्तुल टूटे।
मंच तक पहुंचने में
सारे आदर्शों के
     चमकीले छत्र-चंवर छूटे।
गुंबद-मीनारों की
शक्लों में खड़े हुए
     जहां-तहां ढोंग के किले।

तोड़ो ये गमले
धरती पर रोपो
     नये नस्लवाली
          झूमे हरियाली।
जांतों से यंत्रों तक
आने दो गाने की
     धुरी वह पुरातन
          प्राचीन वह प्रणाली।
अपनी ही माटी से
स्रोत अगर फूटे तो
शायद यह सदियों से
धरी हुई छाती पर
     जलती चट्टान
          कुछ हिले।
***  ***  ***
चित्र : मनोज कुमार

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना है !
    आभार .......

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  2. गाये कोई राग मधुर,
    मन पा जाये प्राण प्रचुर।

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  3. अपनी ही माटी से
    स्रोत अगर फूटे तो
    शायद यह सदियों से
    धरी हुई छाती पर
    जलती चट्टान
    कुछ हिले।

    बहुत ही सुंदर......

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  4. भाव पूर्ण सुन्दर रचना.......आभार....

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  5. मुग्ध करते भाव ..प्रवाह में बहाती हुई रचना को पढ़कर ह्रदय स्वत: झुक जाता है..

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  6. अपनी ही माटी से
    स्रोत अगर फूटे तो
    शायद यह सदियों से
    धरी हुई छाती पर
    जलती चट्टान
    कुछ हिले।

    बहुत सुन्दर ...हृदयस्पर्शी ....

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  7. अपनी ही माटी से
    स्रोत अगर फूटे तो
    शायद यह सदियों से
    धरी हुई छाती पर
    जलती चट्टान
    कुछ हिले।
    कितना सटीक...

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  8. अपनी ही माटी से
    स्रोत अगर फूटे तो
    शायद यह सदियों से
    धरी हुई छाती पर
    जलती चट्टान
    कुछ हिले।
    मन को छूती हुई पंक्तियां ।

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  9. अपनी ही माटी से
    स्रोत अगर फूटे तो
    शायद यह सदियों से
    धरी हुई छाती पर
    जलती चट्टान
    कुछ हिले।
    बहुत सही सार्थक रचना मुझे तो लगाई गई फूल की तस्वीर भी बहुत सुंदर लग रही है

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  10. अपनी ही माटी से
    स्रोत अगर फूटे तो
    शायद यह सदियों से
    धरी हुई छाती पर
    जलती चट्टान
    कुछ हिले।

    बहुत सुंदर रचना ,मन पवित्र सा करती हुई ,छल कपट की दुनिया से दूर .......और तस्वीर भी सुंदर ......जासौन के फूल,इनकी महत्ता इतनी है ये देवी को चढ़ाये जाते हैं ....

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  11. प्राचीन वह प्रणाली।
    अपनी ही माटी से
    स्रोत अगर फूटे तो
    शायद यह सदियों से
    धरी हुई छाती पर
    जलती चट्टान
    कुछ हिले।
    प्राचीन वह प्रणाली।
    अपनी ही माटी से
    स्रोत अगर फूटे तो
    शायद यह सदियों से
    धरी हुई छाती पर
    जलती चट्टान
    कुछ हिले।देशी धरती पे देशी फले फूले ...तब ही घूरे के भी दिन फिरें ...सुन्दर भाव रचना विचार को उत्तेजन देती .

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    सोमवार, 30 अप्रैल 2012

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