अपनी ही माटी से
श्यामनारायण मिश्र
पेट और मुंह की
पैशाचिक धुन पर
हदर-दुदुर नाच रहे लोग
मन की सारंगी
छेड़ो तो चैन मिले।
नारों के रटने में
सारी गतिविधियों के
मधुमय लय वर्तुल टूटे।
मंच तक पहुंचने में
सारे आदर्शों के
चमकीले छत्र-चंवर छूटे।
गुंबद-मीनारों की
शक्लों में खड़े हुए
जहां-तहां ढोंग के किले।
तोड़ो ये गमले
धरती पर रोपो
नये नस्लवाली
झूमे हरियाली।
जांतों से यंत्रों तक
आने दो गाने की
धुरी वह पुरातन
प्राचीन वह प्रणाली।
अपनी ही माटी से
स्रोत अगर फूटे तो
शायद यह सदियों से
धरी हुई छाती पर
जलती चट्टान
कुछ हिले।
*** *** ***
चित्र : मनोज कुमार
बहुत सुंदर रचना है !
जवाब देंहटाएंआभार .......
गाये कोई राग मधुर,
जवाब देंहटाएंमन पा जाये प्राण प्रचुर।
अपनी ही माटी से
जवाब देंहटाएंस्रोत अगर फूटे तो
शायद यह सदियों से
धरी हुई छाती पर
जलती चट्टान
कुछ हिले।
बहुत ही सुंदर......
भाव पूर्ण सुन्दर रचना.......आभार....
जवाब देंहटाएंमुग्ध करते भाव ..प्रवाह में बहाती हुई रचना को पढ़कर ह्रदय स्वत: झुक जाता है..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.................
जवाब देंहटाएंसादर.
bahut sundar geet... man ko chhu jate hain...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत ... आभार
जवाब देंहटाएंअपनी ही माटी से
जवाब देंहटाएंस्रोत अगर फूटे तो
शायद यह सदियों से
धरी हुई छाती पर
जलती चट्टान
कुछ हिले।
बहुत सुन्दर ...हृदयस्पर्शी ....
अपनी ही माटी से
जवाब देंहटाएंस्रोत अगर फूटे तो
शायद यह सदियों से
धरी हुई छाती पर
जलती चट्टान
कुछ हिले।
कितना सटीक...
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंअरुन (arunsblog.in)
अपनी ही माटी से
जवाब देंहटाएंस्रोत अगर फूटे तो
शायद यह सदियों से
धरी हुई छाती पर
जलती चट्टान
कुछ हिले।
मन को छूती हुई पंक्तियां ।
अपनी ही माटी से
जवाब देंहटाएंस्रोत अगर फूटे तो
शायद यह सदियों से
धरी हुई छाती पर
जलती चट्टान
कुछ हिले।
बहुत सही सार्थक रचना मुझे तो लगाई गई फूल की तस्वीर भी बहुत सुंदर लग रही है
अपनी ही माटी से
जवाब देंहटाएंस्रोत अगर फूटे तो
शायद यह सदियों से
धरी हुई छाती पर
जलती चट्टान
कुछ हिले।
बहुत सुंदर रचना ,मन पवित्र सा करती हुई ,छल कपट की दुनिया से दूर .......और तस्वीर भी सुंदर ......जासौन के फूल,इनकी महत्ता इतनी है ये देवी को चढ़ाये जाते हैं ....
प्राचीन वह प्रणाली।
जवाब देंहटाएंअपनी ही माटी से
स्रोत अगर फूटे तो
शायद यह सदियों से
धरी हुई छाती पर
जलती चट्टान
कुछ हिले।
प्राचीन वह प्रणाली।
अपनी ही माटी से
स्रोत अगर फूटे तो
शायद यह सदियों से
धरी हुई छाती पर
जलती चट्टान
कुछ हिले।देशी धरती पे देशी फले फूले ...तब ही घूरे के भी दिन फिरें ...सुन्दर भाव रचना विचार को उत्तेजन देती .
.कृपया यहाँ भी पधारें -
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
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