श्रमकर पत्थर की शय्या पर
---मनोज कुमार
दिन जीते जैसे सम्राट, चैन चाहिए कंगालों की।
रहते मगन रंग महलों में, ख़बर नहीं भूचालों की।
तरु के नीचे श्रमकर सोये, पत्थर की शय्या पर।
दिन भर स्वेद बहाया, अब घर लौटे हैं थककर।
शीतलता कुछ नहीं हवा में, मच्छर काट रहे हैं।
दिन भर की झेली पीड़ाएं, कह-सुन बांट रहे हैं।
अम्बर बन गया वितान, चिंता नहीं दुशालों की।
जब से अर्ज़ा महल, तभी से तुमने नींद गंवाई।
सुख-सुविधा के जीवन में, सब आया नींद न आई।
कोमल सेज सुमन सी, करवट लेते रात ढ़लेगी।
समिधा करो कलेवर की, तब यह जीवन अग्नि जलेगी।
दुख शामिल रहता हर सुख में, उक्ति सही मतवालों की।
किसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
सुख व शांति उसी ने पाई, जिसने स्वेद बहाया।
सार्थक सृजन हेतु करना है, त्याग हमें आराम का।
अब तक जो जिया अलस, वह जीवन है विश्राम का।
सुख सुविधाओं के जंगल में, गुंजलिका जंजालों की।
किसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
जवाब देंहटाएंसुख व शांति उसी ने पाई, जिसने स्वेद बहाया।
सार्थक सृजन हेतु करना है, त्याग हमें आराम का।
अब तक जो जिया अलस, वह जीवन है विश्राम का।
सुख सुविधाओं के जंगल में, गुंजलिका जंजालों की।
श्रमिक दिवस पर. बेहतरीन और सटीक रचना है.
सुन्दर और सार्थक कविता
जवाब देंहटाएंdinkar ki kavita see lag rahi hai.. bahut badhiya... shrammev jayate
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबुधवारीय चर्चा-मंच पर |
charchamanch.blogspot.com
जांगर की प्रतिष्ठा में , जाने
जवाब देंहटाएंकेतना लेख लिखायल
सुरसती का स्वेद बोले
घायल की गति जाने घायल
किसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
जवाब देंहटाएंसुख व शांति उसी ने पाई, जिसने स्वेद बहाया।
सार्थक सृजन हेतु करना है, त्याग हमें आराम का।
अब तक जो जिया अलस, वह जीवन है विश्राम का।
सुख सुविधाओं के जंगल में, गुंजलिका जंजालों की।. .श्रमिक दिवस पर सुन्दर और सार्थक कविता!!!!!!!!
किसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
जवाब देंहटाएंसुख व शांति उसी ने पाई, जिसने स्वेद बहाया।... सत्य वचन
आज श्रमिक दिवस पर सटीक अभिव्यक्ति है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ......
श्रमिक दिवस पर एक उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंश्रमिक दिवस पर एक सटीक, सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंश्रमिक दिवस पर बहुत ही लाजबाब सुंदर प्रस्तुति.....मनोज जी बहुत२ बधाई
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
ek ek shabd shram diwas ka udaahran roop hai. sunder, utkrisht prastuti.
जवाब देंहटाएंइस सामयिक सुन्दर प्रविष्टि के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना !!
जवाब देंहटाएंस्वेद बहा कर ही निद्रा आती है...महल-दोमहले में तो पसीना बहन शर्म की बात है...फिर भले नींद ना आये...सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसामयिक कविता के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रासंगिक भाव लिए कविता ......सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंकिसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
जवाब देंहटाएंसुख व शांति उसी ने पाई, जिसने स्वेद बहाया।
सार्थक सृजन हेतु करना है, त्याग हमें आराम का।
बहुत सार्थक बात कह रही है आपकी रचना ....!!
दिन भर में थकाना ज़रूरी है क्योंकि थकने के बाद ही चैन की नींद आती है ....
मजदूर दिवस पर शुभसंदेश देती रचना ...
शुभकामनायें ....
श्रमिकों के दर्द भरे भावों को हूबहू उतार दिया है...!
जवाब देंहटाएंअब जितनी नीतियां या चिंताएं हैं,उद्योगपतियों के लिए हैं !
...कल टिप्पणी करने की कोशिश असफल हुई,नए इंटरफेस में अभी कुछ खामियां हैं !
श्रमिक दिवस पर सटीक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंवे धरती में गति लाते हैं।
जवाब देंहटाएंउच्च कोटि की कृति के लिए हार्दिक बधाई..संवेदना तो यथास्थान है ही श्रमिकों के लिए..
जवाब देंहटाएंकिसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
जवाब देंहटाएंसुख व शांति उसी ने पाई, जिसने स्वेद बहाया।
सार्थक सृजन हेतु करना है, त्याग हमें आराम का।
अब तक जो जिया अलस, वह जीवन है विश्राम का।
सुख सुविधाओं के जंगल में, गुंजलिका जंजालों की।
ये फलसफा है ज़िन्दगी .
बुधवार, 2 मई 2012
" ईश्वर खो गया है " - टिप्पणियों पर प्रतिवेदन..!
http://veerubhai1947.blogspot.in/
लम्बी तान के ,सोना चर्बी खोना
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_02.html
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_02.html
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहा पसीना सींच धरा को,भले क्लेश,प्रमुदित प्रतिक्षण
जवाब देंहटाएंरे अधिनायक,देख ज़रा,कैसे जीता है जन-गण-मन!
सामयिक भाव,सार्थक अभिव्यक्ति,लाजबाब प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अंदाज में श्रमिकों के दशा को उजागर करती सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंमजदूर दिवस पर इससे बेहतर अभिव्यक्ति संभव नहीं.. शिद्दत से एहसास करवाने वाली रचना!!
जवाब देंहटाएंकिसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
जवाब देंहटाएंसुख व शांति उसी ने पाई, जिसने स्वेद बहाया।
सार्थक सृजन हेतु करना है, त्याग हमें आराम का।
अब तक जो जिया अलस, वह जीवन है विश्राम का।
सुख सुविधाओं के जंगल में, गुंजलिका जंजालों की।
मजदूर दिवस पर बेहतर अभिव्यक्ति सुन्दर रचना
किसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
जवाब देंहटाएंसुख व शांति उसी ने पाई,जिसने स्वेद बहाया।
श्रनिक दिवस पर प्रस्तुत यह कविता आपके मजदूरों के प्रति गहरी संवेदना को इंगित करने के साथ-साथ हर पुरूष को कर्मयोगी बनने का सेदेश देता है । समीचीन पोस्ट की प्रस्तुति के लिए आपका विशेष आभार ।
किसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
जवाब देंहटाएंसुख व शांति उसी ने पाई, जिसने स्वेद बहाया।
- जीवन का मूल-मंत्र यही है. बिना श्रम सब-कुछ पा लेने की लिप्सा ही आज की दुनिया में विषमतायें फैला रही है !