दफ़्तर के अंध महासागर में
श्यामनारायण मिश्र
पश्चिम में
फैल गया
संध्या का कुंकुम,
देहरी पर
मन होगा
खिड़की पर तुम,
गले हुए लोहे की लाल झील तैरूं
फिर चांदनी नहाऊं,
घर आऊं।
रोज़ नये सपनों की
डोंगियां तिराता
हूं
दफ़्तर के अंध
महासागर में।
प्रहर गये रात
लौट आता हूं
बस ख़ाली हाथ
लिये
अलसाये घर
में।
बिना रास वाले काग़ज़ के घोड़ों को
किसी तरह
फेरूं
तो जी में जी पाऊं
घर आऊं
देखूं तब
ओठों पर खिला
हुआ जावा
कुसुम।
*** *** ***
चित्र : आभार गूगल सर्च
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई ||
बहुत अच्छी कविता है। मिश्र जी ने शब्दों से जादू किया है।
जवाब देंहटाएंकितनी सुन्दर कवितायें चुनते हैं आप !
जवाब देंहटाएंमिश्र जी कविताओं का जबाब नहीं ,.....लाजबाब रचना,......
जवाब देंहटाएंबिना रास वाले काग़ज़ के घोड़ों को
जवाब देंहटाएंकिसी तरह फेरूं
तो जी में जी पाऊं
घर आऊं
देखूं तब
ओठों पर खिला
हुआ जावा कुसुम।
बहुत सुंदर भाव .... आभार इस रचना के लिए
मिश्र जी की सुन्दर कविता पढ़वाने के लिए आभार....
जवाब देंहटाएंपहली दो पंक्तियां पढ़कर ही मन मुग्ध हो गया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंपश्चिम में
जवाब देंहटाएंफैल गया
संध्या का कुंकुम,
देहरी पर
मन होगा
खिड़की पर तुम,
vaah khubsurat panktiya,sundar rachna .....
ओह्ह गज़ब ..बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंकमाल की कविता है.. लगभग यही भाव मैंने कई साल पहले अपने किसी मित्र के सामने व्यक्त किये थे.. आज मेरे भाव कविता बनकर निखर गए हैं.. मिश्र जी को नमन!!
जवाब देंहटाएंकविता तो बस झंकार भर देती है ह्रदय में.
जवाब देंहटाएंरोजमर्रे की जिन्दगी में रसवत् कल्पना की इमारत खड़ी करने में मिश्रजी की लेखनी काफी समर्थ है, इसका यह एक ज्वलन्त उदाहरण है।
जवाब देंहटाएंकिसी भी कविता में मौलिकता उसी समय देखने को मिलती है जब कवि का भाव अमल और धवल होता है एवं कविता के हर शब्द अपने साथ कवि के मन में रचे बसे भावों को आद्योपांत अपनी पूर्ण समग्रता में आगे की ओर ले जाते हैं। मिश्र जी की कविता की कुछ खास एसी ही विशेषता है जो उनकी रचनाधर्मिता को हर कविता में एक नया आयाम प्रदान करती है। भाव-प्रवण कविता बहुत ही अच्छी लगी । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबिना रास वाले काग़ज़ के घोड़ों को
जवाब देंहटाएंकिसी तरह फेरूं
तो जी में जी पाऊं
घर आऊं
देखूं तब
ओठों पर खिला
हुआ जावा कुसुम।
There is a undercurrent in all his poetic expression deep felt emotions and personification of nature.
सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआभार
सुंदर नवगीत
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंकविता अच्छी है... सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंरोज़ नये सपनों की
जवाब देंहटाएंडोंगियां तिराता हूं
दफ़्तर के अंध महासागर में।
बहुत सुंदर नवगीत....
मिश्र जी की सुन्दर कविता प्रस्तुति के लिए आभार.!
जवाब देंहटाएंमिश्र जी की रचनाओं से सहज रूप से एक सेतु निर्मित हो जाता है..
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