गुरुवार, 31 मई 2012

आँच – 111 पर – बन जाना


आँच – 111
आँच – 111 पर – बन जाना
हरीश प्रकाश गुप्त

     रमाकांत सिंह छत्तीसगढ़ के अकलतरा से हैं। पेशे से शिक्षक हैं। उनका एक ब्लाग है जरूरत, जिसमें वह नियमित रूप से अपनी कविताएँ पोस्ट करते रहते हैं। उनकी समस्त कविताओं में सम्वेदना है। भावनाएँ भी हैं, आशा भी है और पीड़ा की अनुभूति भी है जिसे यथार्थ के धरातल पर परखा जा सकता है। अभी हाल ही में, पिछले माह, इस ब्लाग पर उनकी एक कविता प्रकाशित हुई थी बन जाना। जीवन की कठिन राह में आशा और स्फूर्ति का संचार करती और संघर्षों पर विजय पाती यह कविता प्रेरक है। उनके अनुसार उन्होंने यह कविता अपनी बहन को उसके जन्मदिन पर समर्पित की थी। सोद्देश्य लिखी गई यह कविता वैसे तो वैयक्तिक है परंतु यह व्यक्तिनिष्ठता की परिधि से बाहर भी व्यापक अर्थ रखती है और यहाँ इसके प्रभाव को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। उनकी यह छोटी सी कविता आज की आँच का विषय है।

     जीवन की डगर बहुत लम्बी है और कठिन भी है और इन्हीं कठिन रास्तों से होकर सभी को जाना है। बड़े लक्ष्यों को हासिल करने के रास्ते कभी आसान नहीं हुआ करते। ये कठिन रास्ते पग-पग पर हमारे लिए मुश्किलें खड़ी करते है, चुनौतियाँ देते हैं और हमारी परीक्षा लेते हैं। कभी-कभी ये इतने दुष्कर और दुरूह होते हैं और हमको इतना विचलित कर देते हैं कि लक्ष्य से भटकाव की स्थिति आ जाती है। लक्ष्यों के प्रति जीवन का यह संघर्ष हमारी नियति है क्योंकि हम इनसे मुँह नहीं मोड़ सकते। तब हमारी मनःस्थिति ही हमारा मार्गदर्शन करती है। लक्ष्य के प्रति निष्ठा और समर्पण तथा मानसिक दृढ़ता (धैर्य) ही हमारा सम्बल होती है। यदि हमारे लक्ष्य स्पष्ट हैं तो कोई भी बाधा क्यों न आए हमें लक्ष्य से कोई डिगा नहीं सकता, सफल होने से कोई रोक नहीं सकता। बस हमें स्वयं को इतना मजबूत और दृढ़प्रतिज्ञ बनाने की आवश्यकता है। इस भावभूमि पर रचित रमाकांत की यह कविता बन जाना प्रेरक संदेश से परिपूर्ण है।

     यदि कविता के शिल्प पर दृष्टिपात करें तो कुछ-एक प्रयोगों को छोड़कर यह हमें बहुत आकर्षित नहीं करती। कविता में आठ-छह-दो, कुल सोलह पंक्तियाँ हैं। हो सकता है कि कवि ने इन्हें आठ-आठ के संयोजन में लिखा हो और टंकण त्रुटि से आठ-छह-दो में विभक्त हो गईं हों। पूरी कविता में असमान मात्राएँ - बीस से लेकर छब्बीस तक हैं। इसीलिए अधिकाँश स्थानों पर न लय बन पाई है और न ही प्रवाह और यह पद्यांश गीत तथा कविता के बीच भटक सा गया है। कहीं पर उद्देश्य का भी लोप है जो अर्थान्वेषण में बाधक बनता है जैसे - तू भी बन जाना, हाथों को थाम के,  तू भी बन जाना, हर सुबह शाम से और तू भी बन जाना, कर्मों को बांध के और हम फिर सदा मिलेंगे, पर चेहरे अनजान से आदि। यदि यहाँ प्रश्न करें कि क्या?” तो उत्तर में न कोई बिम्ब है और न ही कोई प्रतीक जो अर्थ को संगति प्रदान करे। इन्हीं पंक्तियों में मात्राओं की सबसे अधिक कमी है, अर्थात 20-21 ही हैं जो स्वयमेव अपनी आवश्यकता को पुष्ट करती हैं। यहाँ कवि स्वयं दिग्भ्रमित सा लगता है। डगर स्त्रीवाची  है जबकि कविता में पुल्लिंग प्रयोग हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि कवि के मानस में तो इसकी स्पष्ट प्रतीति है लेकिन शब्दों में यह अभिव्यक्त नहीं हो सकी है। अतः पाठक के स्तर पर अस्पष्टता है।

     जीवन में सफलता के संदेश का भाव समेटे रमाकांत की इस छोटी सी कविता के भाव में सहजता है और व्यापकता है साथ ही यह संवेदित भी करती है तथापि इसे शिल्प की कसौटी पर और कसे जाने की आवश्यकता है।

16 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय भाई साहब shri harish gupt जी आपके द्वारा मेरी रचना बन जाना को समीक्षा के लायक समझा गया. उसे आप जैसा प्रबुद्ध व्यक्ति समीक्षा के मंच पर ले आयेमैं आपका ह्रदय से आभारी हूँ..मेरी अधिकांश रचनाएँ १९७५ से १९८० के मध्य की हैं .जहाँ मेरी भावनाएं काम कराती थीं , तब मुझमें छंद रचना की कोई हैसियत
    नहीं थी ,आज भी मैं इस योग्य नहीं की किसी रचना को दावे के साथ किसी श्रेणी में रख सकूँ . वो तो आप सब का प्रेम और आशीर्वाद है कि लिखने कि हिम्मत जुटा लेता हूँ . गलतियों का एहसास है किन्तु रचनाओं को मूलत पूर्व जैसा ही पोस्ट किया गया है, जिसमे पुराने तिथियों का अंकन किया गया है.
    आपसे मेरा व्यक्तिगत आग्रह कि बन जाना कविता को वर्णानुसार तथा मात्रा अनुसार सुधारकर नया स्वरुप देने की कृपा करें जो गेय बन जाये .
    आपको इस कविता में शब्दों तथा मात्राओं में सुधार का पूर्ण अधिकार इस कमेन्ट से दिया जाता है साथ ही प्रकाशन कभी भी कर सकते हैं.
    आपने रचना को यह मंच देकर संमानित किया उसके लिए प्रणाम स्वीकार करें.

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  2. बन जाना कविता की समीक्षा पढी । आपकी इस समीक्षा ने कवि का उत्साह बढाया ही है । कवि शायद जीवन में कुछ बन जाने की बात कह रहे हैं ।

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  3. आपकी समीक्षा ने रचना कार का उत्साह बढ़ाया है,
    बढ़िया समीक्षा की आपने ,,,,,,

    RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,

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  4. कवि-ब्‍लागर शायद कई बार वैसी गंभीरता से काम नहीं करते, जैसी अपेक्षित होती है. अपनी भावनाओं को रखते हैं, लेकिन यह साहित्यिक अभिव्‍यक्ति के रूप में सार्वजनिक हो रही है, यह बहुत साफ उनके ध्‍यान में नहीं होता, आपकी समीक्षा-पोस्‍ट कवियों को सजग करते हुए आत्‍म-मूल्‍यांकन का मौका देती हैं, बधाई.

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  5. रचनाकार को आपकी समीक्षा अच्छी लगी, यही काफी है । धन्यवाद ।

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  6. हरीश प्रकाश गुप्ता जी की समीक्षा और आँच पर आज रमाकांत सिंह की रचना पाकर अच्छा लगा , रमाकांत सिंह को बधाई !
    उनकी रचनाएं आकर्षित करती है और इस आँच के बाद निस्संदेह वे और निखरेंगे !
    शुभकामनायें उनको और आभार हरीश भाई को !

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  7. बढिया समीक्षा, आज बाबू साहब आँच पर चढ गए। आँच का कार्य ही कुंदन बनाना है।

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  8. रमाकांत जी हमें हमेशा आकर्षित करते रहे हैं। उनकी रचनाएं भावनाओं के जल से सींचित होती हैं, इसलिए शिल्प की तरफ़ मैं ध्यान ही नहीं देता। भाव जब दिल को छू ले तो इसी में कविता की सार्थकता है और कवि की सहृदयता।
    कवि की सहृदयता तो इस बात से और स्पष्ट हो जाती है कि उन्होंने आज की समीक्षा को इतने पोजिटिव विचारों के साथ ग्रहण किया है। कवि और समीक्षक दोनों को आभार!

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  9. रमाकांत सिंह जी से अभी हाल ही में उनकी टिप्पणियों के द्वारा परिचय हुआ... सधी हुई, भावपूर्ण और सार्थक टिप्पणियों से उनके व्यक्तित्व का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है.. व्यक्तिगत कारणों से यह कविता छूट गयी थी मुझसे.. किन्तु गुप्त जी ने जिस तरह कविता की विशेषताएं और कमियाँ बतायीं वह रमाकांत जी के मार्गदर्शन के लिए आवश्यक हैं.. आँच पर इस कविता को स्थान दिया जाना एक गर्व का विषय है..
    रमाकांत जी अकलतरा के हैं जहाँ से मेरे अग्रज श्री राहुल सिंह जी भी आते हैं अतः वहाँ की हवा में संवेदनाएं बिखरी हैं यह निष्कर्ष निकालना अतिशयोक्ति न होगी.. मेरी शुभकामनाएँ कवि के लिए!!

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  10. बहुत सार्थक समीक्षा .... सुन्दर प्रस्तुति

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  11. बहुत ही सार्थक और सुन्दर समीक्षा ....

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  12. सार्थक समीक्षा लगी.रमाकांत जी को ज्यादा नहीं पढ़ा अभी.पर अब अवश्य पढेंगे.

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  13. सुंदर समीक्षा....
    रमाकांत जी को पढ़ना सदा सुखद होता है....
    उन्हें सादर बधाई/शुभकामनायें....

    सादर।

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  14. kavita ki isase behtar samiksha mushkil hai. aapne bahut achchhi kasauti par ise kasha hai.......

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आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।