अरने आमादे हैं
श्यामनारायण मिश्र
किसे-किसे रोकूं
आग में नहाने से।
पीछे की सारी
सीख की किताबों के
गट्ठर पर बैठे ये बौने।
जाने किस
दुर्वासा-ध्येय के प्रयोजन में
गढ़ने को आतुर हैं आग के
खिलौने।
घर में बारूद भर
तैमूर के भतीजे
बाज नहीं आने के
बीड़ी सुलगाने से।
गुंबद में
आतंकित करते हो-हल्ले
संसद की बौनी तरकीबें।
शान्ति के
हरीरे-दूधिया कछारों पर
गिरती हैं ध्वंस की जरीबें।
खौर-खूंद करने को
अरने आमादे हैं
क्या होगा वंशी-बीन के बजाने
से।
युद्ध की भयानक
स्थिति से दिये गए
सारे संदेश, कृष्ण पूजा के पाट
हुए।
दिग्दर्शक नक्शे फैलाए बैठे
हैं
राहगीर भगदड़ में सब बारह बाट
हुए।
इतनी उम्मीद लिए
रस्ते पर बैठा हूं
कोई तो लौटेगा गीत गुनगुनाने
से।
*** *** ***
चित्र : आभार गूगल सर्च
खौर-खूंद करने को
जवाब देंहटाएंअरने आमादे हैं
क्या होगा वंशी-बीन के बजाने से।
शानदार प्रस्तुति.
मिश्र जी के गीत मन को छू जाते हैं.... बार बार कहने से भूल जाता हूं.. क्यों न मिश्र जी का संकलन निकलते हैं... हम तैयार हैं...
जवाब देंहटाएंgeet gungunate hee sahityakaar ke kad ka andaaj anayaas hee ho jaat hai.. aisi rachnayein man me utpann hui kisi bhee mithya kalpana ko tod deti hai aaur kahti hai pyaare abhi to talwe lal hee hue hain...abhi to chale padenge ..phir phootenge ..itni stareey juwan kahne ke sanklp ko pukhta karta hua aaur satat praytnsheel rahne kee prerna deta sarthak geet
जवाब देंहटाएंघर में बारूद भर
जवाब देंहटाएंतैमूर के भतीजे
बाज नहीं आने के
बीड़ी सुलगाने से'
.........
संसद की बौनी तरकीबें'
- कहीं है कोई समाधान ?
कोई तो लौटेगा गीत गुनगुनाने से।
जवाब देंहटाएंक्या बात है ...
आभार पढवाने के लिए भाई जी !
सुन्दर ||
जवाब देंहटाएंआभार ||
वाह! यह कविता आज के हालात पर भी सटीक बैठती है.. और अंत में आशा का राग - कोई तो लौटेगा गीत गुनगुनाने से - मन को मोह गया। श्यामनारायण मिश्र की उम्दा रचनाओं से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंइतनी उम्मीद लिए
जवाब देंहटाएंरस्ते पर बैठा हूं
कोई तो लौटेगा गीत गुनगुनाने से।
बहुत अच्छी प्रस्तुति,....मनोज जी,..
RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
बहुत शानदार प्रस्तुति......मनोज जी..
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही यह गुनगुनाना किसी न किसी हृदय को छेड़ेगा।
जवाब देंहटाएंइतनी उम्मीद लिए
जवाब देंहटाएंरस्ते पर बैठा हूं
कोई तो लौटेगा गीत गुनगुनाने से।
बहुत सुंदर रचना हमेशा कि तरह .......
गुंबद में
जवाब देंहटाएंआतंकित करते हो-हल्ले
संसद की बौनी तरकीबें।
अपने वक्त से संवाद करता वातावरण प्रधान नव गीत .
गुंबद में
आतंकित करते हो-हल्ले
संसद की बौनी तरकीबें।
बढ़िया प्रस्तुति हर माने में अव्वल .
सोमवार, 7 मई 2012
भारत में ऐसा क्यों होता है ?
http://veerubhai1947.blogspot.in/
तथा यहाँ भीं सर जी -
चोली जो लगातार बतलायेगी आपके दिल की सेहत का हाल
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
गोली को मार गोली पियो अनार का रोजाना जूस
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_07.html
अमानवीय धुंध भरे जीवन में मानवता की आश लिए मिश्र जी गीतों को शब्द देने में लगे रहे। यह गीत इसका ज्वलन्त उदाहरण है।
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना है यह स्वर्गीय मिश्र जी की!! फिर कहूँगा कि समय से आगे के कवि!!
जवाब देंहटाएंघर में बारूद भर
जवाब देंहटाएंतैमूर के भतीजे
बाज नहीं आने के
बीड़ी सुलगाने से।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ... आप हमेशा सुंदर रचनाओं को पढ़वाते है .... आभार
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है!! बहुत उम्दा...बधाई
जवाब देंहटाएंइसे भी देखने की जेहमत उठाएं शायद पसन्द आये-
फिर सर तलाशते हैं वो
बहुत सुन्दर गीत...
जवाब देंहटाएंखौर-खूंद करने को
जवाब देंहटाएंअरने आमादे हैं
क्या होगा वंशी-बीन के बजाने से।
अद्भुत रचना स्वर्गीय मिश्र जी की, शानदार प्रस्तुति
सुंदर !!
जवाब देंहटाएंघर में बारूद भर
जवाब देंहटाएंतैमूर के भतीजे
बाज नहीं आने के
बीड़ी सुलगाने से।बारहा पढने को आतुर मन रहता है इन रचनाओं को .आभार ..कृपया यहाँ भी पधारें -
बुधवार, 9 मई 2012
शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर
http://veerubhai1947.blogspot.in/
रहिमन पानी राखिये
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
इतनी उम्मीद लिए
जवाब देंहटाएंरस्ते पर बैठा हूं
कोई तो लौटेगा गीत गुनगुनाने से।
मिश्र जी की रचनाएँ बहुत ही प्रभावशाली और गहन चिंतन के लिए विवश करती हैं .......रचना तक पहुचाने के लिए हार्दिक आभार .|
मिश्र जी के गीत मन को छूते हैं....
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